पराली को खपाने के लिए सर्वाधिक लाभदायक है पूसा डीकम्पोज़र

पंजाब में लगभग 26 लाख हैक्टेयर पर धान की काश्त हुई है। इसमें बासमती की काश्त शामिल नहीं जिसके लगभग 4.86 लाख हैक्टेयर रकबे पर किये जाने की संभावना है। धान के अधीन काश्त रकबे पर लगभग 200 लाख टन पराली तथा अवशेष को निपटाने की समस्या दरपेश है। किसानों ने धान की कटाई कर गेहूं की बिजाई करनी होती है, जिसकी तैयारी के लिए बहुत कम समय रह जाता है। वे पराली एवं अवशेषों को आग लगा कर निपटा लेते हैं। 
अक्तूबर में ही आग लगनी शुरू हो जाती है जो नवम्बर तक चलती है। पराली एवं अवशेषों को जलाने से वातावरण प्रदूषित होता है और इसका धुआं मनुष्य के  स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। यह आस-पास के क्षेत्रों में कई बार दिल्ली तक भी वातावरण को प्रदूषित कर देता है। चाहे पंजाब द्वारा यह दलील दी जाती है कि पंजाब में लगाई आग का धुआं दिल्ली नहीं पहुंचता, परन्तु धुएं से पंजाब की आर्थिकता तो प्रभावित होती ही है। इन महीनों में व्यापारी तथा पर्यटक भी पंजाब आने से गुरेज़ करते हैं। 
इस समस्या का समाधान करने के लिए पराली या अवशेषों को जलाया न जाए। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने एक बायोएन्ज़ाइम ‘पूसा डीकम्पोज़र’ के रूप में तैयार किया है। यह पराली वाले खेत में स्प्रे किया जाता है। संस्थान के डायरैक्टर तथा उपकुलपति डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार यह 20-25 दिन में पराली को गला देता है। भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा कर अगली फसल की बिजाई के लिए तैयार कर देता है। पराली जलाने को रोकने के लिए यह बड़ी सस्ती तकनीक विकसित की गई है। इस पूसा डीकम्पोज़र के अढ़ाई एकड़ रकबे पर इस्तेमाल के लिए 4 कैप्सूलों की आवश्यकता है। इन कैप्सूलों का मूल्य लगभग 200 रुपये है। इनका घोल 25 लिटर मात्रा में 2.5 एकड़ करने पर छिड़काव के लिए पर्याप्त है। पूसा डीकम्पोज़र 8 आर्गेनिज़्म का संगठन है, जिसका छिड़काव पराली को गला कर खाद बना देता है और इस प्रकार यह खाद भूमि के स्वास्थ्य तथा उपजाऊ शक्ति में सुधार लाती है। 
गत वर्ष यूपीएल की स्प्रे मशीनों का इस्तेमाल कर पंजाब के 14 चुनिंदा ज़िलों में 2,30,000 एकड़ रकबा पूसा डीकम्पोज़र से ट्रीट किया गया था। बठि,ंडा, मानसा, मुक्तसर, बरनाला, फरीदकोट, तरनतारन, गुरदासपुर, मोगा, लुधियाना, पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, नवांशहर, कपूरथला, रूपनगर तथा जालन्धर ज़िलों के 11500 किसानों ने इस तकनीक का लाभ उठाया था। हरियाणा को मिला कर पूसा डीकम्पोज़र का इस्तेमाल 4 लाख 20 हज़ार हैक्टेयर रकबे पर किया गया और कुल 25000 किसानों ने इससे लाभ उठाया। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था ने यह सेवा पंजाब तथा हरियाणा के किसानों को देने के लिए यू.पी.एल. के साथ टाईअप किया और यू.पी.एल. ने अपनी सहायक कम्पनी नर्चर फार्म के माध्यम से मशीनों से स्प्रे करके किसानों को यह सेवा मुफ्त उपलब्ध की। 
किसानों का कहना है कि पूसा डीकम्पोज़र के छिड़काव से उन्हें धान की पराली एवं अवशेषों को आग नहीं लगानी पड़ी और उनकी गेहूं की फसल भी बढ़िया हुई। मलोट के निकट कट्टीयां वाला गांव में ‘आईएआरआई फैलो अवार्ड’ के लिए चुने गये गुरमीत सिंह ने अपनी 10 एकड़ ज़मीन पर पूसा डीकम्पोज़र इस्तेमाल किया। उसका कहना है कि उसने गेहूं में डीएपी के डेढ़ थैले की अपेक्षा एक थैला तथा यूरिया के 2.5 थैलों की बजाय 1.5 थैले इस्तेमाल किया और उसे गेहूं का उत्पादन भी अधिक प्राप्त हुआ। 
यू.पी.एल. के चेयरमैन पदम भूषण राजू शरौफ ने बताया कि इस वर्ष यू.पी.एल. पंजाब, हरियाणा तथा दिल्ली में 10 लाख एकड़ रकबे पर पूसा डीकम्पोज़र की सेवा अपनी 700 बूम स्प्रेयर मशीनों से किसानों को उपलब्ध करेगी। कम्पनी ने 1000 के लगभग वर्कर सेवा लेने वाले किसानों की सूची बनाने एवं उन्हें जानकारी तथा इस संबंधी पूरी सहायता उपलब्ध करने के लिए अपनी सहायक कम्पनी से तैनात किये हैं। 
गत वर्ष यू.पी.एल. द्वारा अधिकतर ऐसे किसानों को यह सेवा उपलब्ध की गई है, जिन्होंने वर्ष 2018 तथा 2020 के मध्य पराली को आग लगाई थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी पूसा डीकम्पोज़र के इस्तेमाल की सेवा दिल्ली के किसानों को मुफ्त उपलब्ध की थी, जिस पर 20 लाख रुपये से भी कम खर्च आया, परन्तु प्रदूषण के मामले में लाभ काफी अधिक हुआ। 
किसानों को यू.पी.एल. तथा आईएआरआई द्वारा तैनात किये गए कृषि मित्रों के माध्यम से कैम्प लगा कर इस तकनीक की पूरी जानकारी देने के बाद ही उनसे पूसा डीकम्पोज़र के इस्तेमाल की सहमति ली जाती है। पंजाब सरकार द्वारा आग लगाने से रोकने हेतु लगभग 90000 भिन्न-भिन्न प्रकार की मशीनें किसानों को उपलब्ध की जा चुकी हैं और छोटे किसानों को किराये पर देने के लिए लगभग 19000 कस्टम हायर केन्द्र खोले गए हैं, जिसके लिए केन्द्र सरकार ने वर्ष 2018-2021 के मध्य 1145 करोड़ रुपये सब्सिडी के तौर पर पंजाब सरकार को दिया। इसके बावजूद गत वर्ष धान की पराली को आग लगाने की 71304 घटनाएं हुईं। आग की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई। इस वर्ष केन्द्र सरकार किसानों को मशीनें देने के लिए 275 करोड़ रुपये और दे रही है जबकि पंजाब सरकार ने इससे अधिक राशि की मांग की थी। हालांकि मशीनों की खरीद एवं आपूर्ति में हुए घोटाले की जांच की जा रही है। 
पंजाब सरकार इस वर्ष किसानों को पराली न जलाने हेतु उत्साहित करने के लिए नकद सब्सिडी देने संबंधी भी विचार कर रही है। कृषि एवं किसान भलाई विभाग के डायरैक्टर डा. गुरविन्दर सिंह ने बताया कि विभाग द्वारा पूसा डीकम्पोज़र की आज़माइशें भी इस वर्ष बड़े पैमाने पर की जाएंगी ताकि इस तकनीक का पराली को जलाने से रोकने के लिए इस्तेमाल  किया जा सके। इस संबंधी विभाग यू.पी.एल. के साथ भी योजना बन रहा है ताकि डीकम्पोज़र तकनीक से अधिक से अधिक किसान लाभ उठा सकें।