पड़ोसी की सहायता

पड़ोसी देश पाकिस्तान में एकाएक हुई भारी वर्षा एवं उपजी बाढ़ ने इतना अधिक नुकसान कर दिया है जिससे तत्काल सम्भल पाना उसके लिए अतीव कठिन होगा। यदि कुछ ही समय में करोड़ों लोग बाढ़ से प्रभावित होकर उजड़ जायें अथवा सैकड़ों लोगों की जान चली जाये तथा बड़ी संख्या में लोग घायल हो जायें, घरों, दुकानों, व्यापारिक संस्थानों एवं सड़कों आदि के विनाश के मंज़र देखने को मिलें तो इस भीषण घेरे में आये आम लोगों की स्थिति के संबंध में अनुमान ही लगाया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार विनाश के इस मंज़र में 3 करोड़ से भी अधिक लोग प्रभावित हो चुके हैं तथा प्रत्येक पक्ष से इस देश का अरबों रुपये का नुकसान हो चुका है। 
पाकिस्तान के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने एकाएक भारत के 1300 करोड़ रुपये के बराबर की राशि की अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान के लिए सहायता की अपील की है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि विनष्ट हुये इस ढांचे के पुनर्निर्माण के लिए 80 हज़ार करोड़ रुपये से भी अधिक की आवश्यकता होगी। कुछ अन्य देशों के अतिरिक्त कनाडा एवं चीन ने भी भारी आर्थिक सहायता भेजने की घोषणा की है परन्तु बिल्कुल निकटवर्ती पड़ोसी होने के कारण भारत की ओर से जतायी चिन्ता भी समझ आ सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि पाकिस्तान की प्रत्येक पक्ष से सहायता की जानी चाहिए। एक सूचना के अनुसार सिंध,दक्षिणी पंजाब एवं बलोचिस्तान में इस आपदा ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि वहां सब्ज़ियों की भारी कमी खटक रही है। पाकिस्तान के वित्त मंत्री ने भी इस दशा को देखते हुये यह बयान दिया है कि फसलों का भारी विनाश हो जाने के कारण सब्ज़ियों सहित खाने-पीने की वस्तुओं की एकाएक भारी कमी के कारण भारत से ये वस्तुएं मंगवाई जा सकती हैं। 
दूसरी ओर स्थिति यह है कि अगस्त 2019 में भारत सरकार की ओर से जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किये जाने की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान सरकार ने भारत के साथ प्रत्येक प्रकार के आदान-प्रदान पर रोक लगा दी थी। भारत ने भी पहले पाकिस्तान की धरती पर होने वाली राष्ट्र-विरोधी आतंकवादी कार्रवाइयों को देखते हुये व्यापार में इसे दिया गया तरजीही राष्ट्र का दर्जा वापिस ले लिया था परन्तु इसके बावजूद पाकिस्तान की ओर से समय-समय पर कपड़ों, दवाइयों, चीनी, सब्ज़ियों, मसालों एवं चाय आदि का आयात किया जाता रहा है। इसके मुकाबले भारत की ओर से वहां से किया जाता आयात काफी कम रहा है। विगत समय में पाकिस्तान में राजनीतिक परिवर्तन भी हुआ है। इस वर्ष के प्रारम्भ में इमरान खान की सरकार का तख्ता पलट कर शहबाज़ शऱीफ के नेतृत्व वाली सरकार बनी थी परन्तु इमरान खान की ओर से निरन्तर इसके विरुद्ध जेहाद शुरू किये रखने के कारण यह सरकार अभी तक पूर्णतया स्थिर नहीं हो सकी। जहां तक आतंकवादी गतिविधियों का संबंध है, चाहे इस मामले में एजेंडा पाकिस्तान की सेना तैयार करती है जिस पर विगत कई दशकों से क्रियान्वयन किया जाता रहा है, परन्तु फिर हमने शहबाज़ शऱीफ के नेतृत्व वाली सरकार की ओर से समय-समय पर आतंकवाद के विरुद्ध व्यक्त की गई भावना को अवश्य महसूस किया है। 
नवाज़ शऱीफ के कार्यकाल के समय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा बस के माध्यम से की गई लाहौर यात्रा की भी बड़ी चर्चा हुई थी परन्तु पाकिस्तान की सेना सदैव वहां की निर्वाचित सरकार पर भारी पड़ती रही है तथा दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध बनाने का विरोध करती रही है। इसीलिए निर्वाचित सरकारों का अक्सर सैनिक तानाशाह तख्ता पलटते रहे हैं। नवाज़ शऱीफ की ओर से दोनों देशों के बीच शांति के लिए किये गये यत्नों को भी एक प्रकार से रद्द करते हुये सेना की ओर से उन्हेें गद्दी से उतार दिया गया था।  
परन्तु हम महसूस करते हैं कि इसके बावजूद पाकिस्तानी अवाम का एक बड़ा भाग कश्मीर समस्या को लेकर भारत के साथ शत्रुता सहेज रखने के पक्ष में नहीं है। समय-समय पर ऐसी शत्रुता में से निकले दुष्परिणामों को पाकिस्तान के लोगों ने देखा है। इसलिए उपजी इस आपदा के दृष्टिगत भारत को प्रत्येक स्थिति में शत्रुता की इस लम्बी दास्तां को दर-किनार करके पाकिस्तान की प्रत्येक पक्ष से सहायता करने के लिए उसी प्रकार आगे आना चाहिए जिस प्रकार श्रीलंका पर उपजे भारी संकट में भारत एक बड़े सहायक के तौर पर उसके साथ खड़ा हुआ था। चाहे आगामी लम्बी अवधि तक पाकिस्तान के आर्थिक पक्ष से स्थिर होने की आशा नहीं की जा सकती परन्तु भारत को इस समय अपना उचित कर्त्तव्य निभाने से संकोच नहीं करना चाहिए।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द