अब कांग्रेस को अपने भविष्य का फैसला करने दे गांधी परिवार

देश की 137 वर्ष पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस पार्टी इस समय बेहद बड़े संकट में से गुज़र रही है। आगामी समय में देश की राजनीति में इसका प्रभावी अस्तित्व बना रहेगा या नहीं, इस संबंध में भी राजनीतिक गलियारों में प्रश्न उठने शुरू हो गये हैं। यहां यह वर्णननीय है कि 1885 में अस्तित्व में आई इस पार्टी द्वारा देश की आज़ादी के संघर्ष में अहम योगदान डाला गया था तथा आज़ादी के बाद इसने राष्ट्रीय तथा प्रांतीय स्तर पर अलग-अलग राज्यों में दशकों तक शासन किया है।
परन्तु इसकी वर्तमान स्थिति यह है कि एक के बाद एक इसके छोटे-बड़े नेता पार्टी को छोड़ कर अन्य पार्टियों खास तौर पर भाजपा में शामिल होते जा रहे हैं। पार्टी के भीतर निराशा का आलम है तथा देश की राजनीति में भी यह दिन-प्रतिदिन प्रभाव खो रही है। परन्तु दूसरा पक्ष यह भी है कि चाहे विगत लोकसभा चुनावों में इसने सिर्फ 52 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसकी कारगुज़ारी ज्यादा अच्छी नहीं रही थी परन्तु इसके बावजूद इन चुनावों में देश के 12 करोड़ लोगों ने इस पर अपना विश्वास व्यक्त किया था। बड़ी संख्या में लोग जो देश में लोकतंत्र, धर्म-निरपेक्षता तथा संघीय ढांचे में विश्वास रखते हैं तथा संघ एवं भाजपा द्वारा अपनाई जा रही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की नीतियों तथा उनकी अंधी कार्पोरेट पक्षीय आर्थिक नीतियों से चिंतित हैं, वह सभी कामना करते हैं कि कांग्रेस अपनी संगठनात्मक त्रुटियां दूर करे, नई तथा प्रभावशाली नेतृत्व लेकर आगे आये तथा देश की राजनीति में अपना पहले वाला स्थान पुन: हासिल करे। परन्तु ऐसे करोड़ों शुभचिन्तकों की आशाओं पर यह पार्टी आगामी समय में खरा उतर सकेगी या नहीं इसके संबंध में फिलहाल कुछ कह पाना बेहद कठिन प्रतीत होता है। इस समय तो यही प्रतीत होता है कि जिस तरह इस पार्टी के संगठनात्मक चुनाव को लेकर जो टकराव बढ़ता रहा है, उससे यह आगामी दिनों में और भी कमज़ोर हो सकती है।
कांग्रेस की कार्यकारिणी द्वारा नये अध्यक्ष के चुनाव हेतु 22 अगस्त को कार्यक्रम घोषित किया गया था। इसके अनुसार 22 सितम्बर को पार्टी अध्यक्ष के चुनाव हेतु अधिसूचना जारी की जाएगी तथा नामांकन शुरू हो जाएंगे। घोषित कार्यक्रम के अनुसार 17 अक्तूबर को चुनाव होगा तथा यदि एक से अधिक प्रत्याशी भाग लेते हैं तो परिणाम 19 अक्तूबर को घोषित किये जाने की सम्भावना है। परन्तु चुनावों में पारदर्शिता की कमी को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं आनंद शर्मा, मुनीष तिवारी, शशि थरूर तथा कार्ति चिदम्बरम द्वारा प्रश्न उठाये जा रहे हैं। इन नेताओं की मुख्य एतराज़ यह है कि जो डैलीगेट राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में भाग लेने हेतु योग्य हैं, उनकी सूची कांग्रेस पार्टी की वैबसाइट पर डाली जानी चाहिए, ताकि जिन प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ना है वह डैलीगेटों तक सम्पर्क कर सकें तथा पार्टी के विधान अनुसार अपने नामांकन पत्र दाखिल करवाने हेतु फार्मों पर पुष्टि करवाने के लिए सही डैलीगेटों से हस्ताक्षर करवा सकें। इन नेताओं का कहना है कि यदि प्रत्याशियों के पास पहले डैलीगेटों की सूची नहीं होगी तो वह अपने नामांकन पत्रों पर सही डैलीगेटों से पुष्टि नहीं करवा सकेंगे तथा यदि डैलीगेटों की सूची की अनुपस्थिति में ़गैर-डैलीगेटों से वह पुष्टि करवा लेते हैं तो उनके नामांकन भी रद्द हो सकते हैं। इन नेताओं द्वारा यह भी प्रश्न उठाये जा रहे हैं कि अलग-अलग राज्यों में ब्लाक स्तर, तहसील स्तर, ज़िला स्तर तथा राज्य स्तर पर संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया कब पूर्ण हुई है तथा पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में भाग लेने वाले डैलीगेटों का राज्य स्तर पर चुनाव कब हुआ है, इस संबंध में कोई भी जानकारी  सामने नहीं आई। एक तरह से पार्टी अध्यक्ष के चुनाव हेतु चल रही इस प्रक्रिया को इन नाराज़ नेताओं ने बोगस ही करार दिया है। एक नाराज़ नेता मनीष तिवारी ने तो यहां तक कहा है कि इस तरह तो किसी क्लब का भी चुनाव नहीं होता।  परन्तु दूसरी तरफ पार्टी की चुनाव अथारिटी ने सार्वजनिक तौर पर पार्टी डैलीगेटों की सूची उपलब्ध करवाने से इन्कार कर दिया है तथा पार्टी के संगठनात्मक सचिव वेणुगोपाल ने कहा है कि जिन प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ना होगा, उनकी सूची उपलब्ध करवा दी जाएगी।
गत दिवस पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री गुलाम नबी आज़ाद, जिन्होंने 52 वर्ष तक पार्टी के साथ जुड़े रहने तथा केन्द्रीय मंत्री से लेकर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री तक के पदों पर रह कर ज़िम्मेदारी निभाई है ने पार्टी से त्याग-पत्र दे दिया था। उन्होंने भी पार्टी के संगठनात्मक तथा पार्टी अध्यक्ष के चुनावों को लेकर चल रही चुनाव प्रक्रिया संबंधी सोनिया गांधी को लिखे पत्र में कहा है कि ‘संगठनात्मक चुनावों की पूर्ण प्रक्रिया केवल दिखावा है, संगठन में किसी भी स्तर पर अब कोई सही चुनाव नहीं होता।  ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारी उस सूची पर हस्ताक्षर कर देते हैं, जो 24 अकबर रोड पर बैठी मंडली तैयार करती है। बूथ, ब्लाक, ज़िला तथा राज्य स्तर पर कोई वोटर सूची प्रकाशित नहीं होती। नामांकन नहीं मंगवाये जाते, छानबीन नहीं होती तथा न ही चुनाव होते हैं। यह एक तरह से फ्राड किया जा रहा है। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के नेतृत्व को सोचना चाहिए कि क्या आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ पर कांग्रेस इसकी पात्र है।’
श्री गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी के भीतर लोकतंत्र न होने संबंधी लगाये उपरोक्त गम्भीर आरोपों के अलावा पार्टी की कमज़ोर हो रही स्थिति संबंधी भी पत्र में सोनिया गांधी को लिखा है कि ‘2014 में आपके नेतृत्व में तथा बाद में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दो लोकसभा चुनाव शर्मनाक ढंग से हार चुकी है। 2014 से 2022 के मध्य हुए 49 विधानसभा चुनवों में पार्टी 39 चुनाव हार चुकी है। पार्टी ने सिर्फ 4 राज्यों में चुनाव जीते हैं और 6 राज्यों में उसे गठबंधन सरकार में ही शामिल होना पड़ा है। इस समय कांग्रेस सिर्फ 2 राज्यों में शासन कर रही है और 2 अन्य राज्यों में उसकी सरकार में मामूली भागीदारी है।’
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि  कांग्रेस की वर्तमान हाईकमान, जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी का ही बोलबाला है, पार्टी को चलाने में बुरी तरह असफल सिद्ध हो रही है। किसी समय नेहरू-गांधी परिवार कांग्रेस की शक्ति था। इस परिवार के नाम पर देश भर में कांग्रेस को वोट मिलते थे परन्तु इस समय कांग्रेस के लिए यह परिवार एक प्रकार से बोझ बन चुका है। इसके नाम पर देश भर में वोट मिलने बंद हो गए हैं तथा कांग्रेस को उचित नेतृत्व देने में भी यह परिवार बुरी तरह असफल होता दिखाई दे रहा है। आश्चर्यजनक बात है कि इसके बावजूद यह परिवार कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव आज़ाद, निष्पक्ष तथा पारदर्शी ढंग से करवा कर पार्टी को मज़बूत बनाने के लिए अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करने के बजाय किसी न किसी ढंग से अपनी पार्टी पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाए रखने को भी प्राथमिकता दे रहा है। गत लम्बी अवधि से सोनिया गांधी का यही यत्न रहा है कि राहुल गांधी कांग्रेस का नेतृत्व करने के समर्थ हो जाए, उसे पहले पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया और फिर पार्टी का अध्यक्ष भी बनाया गया, परन्तु फिर भी 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर वह कोई बेहतर कारगुज़ारी दिखाने में सफल नहीं हो सके। जिस ढंग से वह चुनाव अभियान चला रहे थे, उससे भी वरिष्ठ पार्टी नेता सहमत नहीं थे। इस कारण गुस्से में आकर 2019 के चुनावों के बाद राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से त्याग-पत्र दे दिया था। इसके बाद लम्बी अवधि तक पार्टी बिना अध्यक्ष से ही चलती रही तथा अंतत: सोनिया गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया तथा वह गत तीन वर्षों से कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में ही कार्य करती आ रही हैं। जबकि इस पूरी अवधि के दौरान पार्टी के भीतर तथा बाहर ये स्वर उठते रहे कि पार्टी के संगठनात्मक चुनाव करवा कर पार्टी का पूर्ण समय के लिए अध्यक्ष चुना जाए तथा पार्टी संघ तथा भाजपा की साम्प्रदायिक तथा अंधी कार्पोरेट पक्षीय नीतियों के खिलाफ जनमत बनाने के लिए खुल कर मैदान में आए। विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव भी पूरी ऊर्जा के साथ लड़े जाएं, परन्तु पार्टी हाईकमान ने इन बातों की ओर कभी भी अधिक ध्यान नहीं दिया। पार्टी के भीतर चल रही इस बेचैनी को लेकर ही 2020 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने एक ग्रुप की स्थापना की थी, जिसे जी-23 ग्रुप भी कहा जाता है। इस ग्रुप की ओर से गुलाम नबी आज़ाद द्वारा अब त्याग-पत्र देते समय सोनिया गांधी के नाम लिखे गये पत्र की भांति ही 2020 में सोनिया गांधी के नाम एक विस्तृत पत्र लिख कर कांग्रेस की आंतरिक कमज़ोरियों की ओर उनका ध्यान दिलाया था और उन्हें दूर करने की मांग की थी। इसके बावजूद कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी के उपरोक्त वरिष्ठ नेताओं द्वारा उठाए गये मुद्दों की ओर कभी भी गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया तथा न ही पार्टी को संगठनात्मक तौर पर सक्रिय करने के लिए कोई कार्यक्रम बनाया। 
इसका ही परिणाम है कि देश की यह सबसे पुरानी पार्टी इस समय एक प्रकार से अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है और लोगों को यह विश्वास नहीं बंध रहा कि यह पुरानी पार्टी देश की राजनीति में एक प्रभावी पक्ष के तौर पर पुन: वापसी कर सकेगी। अभी भी कांग्रेस हाईकमान विशेषकर नेहरू-गांधी परिवार के लिए यह अवसर है कि वह आज़ाद, निष्पक्ष तथा पारदर्शी ढंग से पार्टी के संगठनात्मक चुनाव करवाने के लिए सकारात्मक भूमिका अदा करे, नहीं तो इस पार्टी को अवसान की ओर जाने से कोई भी रोक नहीं सकेगा तथा 2024 के लोकसभा चुनाव जीतना तो इसके लिए दूर की बात होगी।