सुरक्षित नहीं पाकिस्तान में रह गये हिन्दू-सिख

नि:संदेह वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण दिन था जिस दिन भारत का विभाजन हुआ। उस समय अकेले पंजाब में ही दस लाख से ज्यादा लोग मार दिए गए। उस समय के कुछ लोग जो अब दुनिया में नहीं रहे, यह बताते थे कि बच्चों, जवानों का कत्ल किया गया, बेटियों का अपहरण, दुष्कर्म हुआ। निश्चित ही मुसलमान भी इस नर-संहार में मारे गए होंगे। विभाजन को 75 वर्ष बीत गए, परन्तु पाकिस्तान में बसे हिंदू-सिखों पर जुल्म आज तक बंद नहीं हुआ। कट्टरता में अंधे इस्लाम समर्थकों द्वारा आज भी पाकिस्तान में धर्म अस्थानों को तोड़ना, उनके मंदिरों, मूर्तियों, ग्रंथों का अपमान करना और हिन्दू-सिखों की बेटियों को अपहृत कर उनका धर्म परिवर्तन करना और फिर निकाह के नाम पर किसी से भी उनकी शादी कर देना, आज भी जारी है। 
अभी अगस्त के तीसरे सप्ताह की घटना है कि एक सिख बेटी दीना कौर जब अध्यापिका के नाते अपनी ड्यूटी पर जा रही थी, उसका अपहरण हुआ। दूर किसी गांव में ले जाकर उसका धर्म परिवर्तन किया गया और फिर उसे एक गरीब रिक्शा वाले की पत्नी बना दिया गया। सारा समाज चीख रहा है, लड़की के माता-पिता और हिंदू-सिख समाज न्याय मांग रहा है, परन्तु वहां की पुलिस न्याय देने को तैयार नहीं। दीना कौर को दीना बीबी बनाकर उससे यह बयान दिलवा दिया गया कि वह अपनी इच्छा से उस लड़के से शादी कर रही है जो उसे पसंद था। सरकार यह हिम्मत नहीं कर पा रही कि एक बार तो इस बेटी को उसके मां-बाप के पास भेज दिया जाए।  दीना कौर ही पहली ऐसी लड़की नहीं है। मार्च 2021 के एक महीने में ही चार लड़कियों का यही हाल हुआ था—अपहरण, धर्म परिवर्तन, जब्री शादी और फिर वैसा ही बयान जैसा दीना कौर ने दिया। 2019 में भी दो बहनों का यही हश्र किया गया। 
2019 से लेकर 2021 तक जो कुछ भी हुआ, वह इमरान खान के शासनकाल में हुआ, जो अपने आपको बड़ा मानवतावादी कहता था। ताज़ा घटना में सिंध प्रांत के एक ही परिवार की 13 और 19 वर्ष की दो लज़कियों को कट्टरपंथियों ने उठा लिया। भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा भी ऐसी घटनाओं की बहुत आलोचना तो की जाती है, परन्तु पाकिस्तान सरकार ऐसी आलोचनाओं की कोई परवाह नहीं करती। 
एक सर्वेक्षण के अनुसार एक वर्ष में एक हज़ार हिंदू, सिख और ईसाई लड़कियों को कट्टरपंथी अगवा करते हैं और उन सब बेचारियों की किस्मत लगभग एक जैसी रहती है। कौन नहीं जानता कि कराची के एक होस्टल में डेंटल सर्जन बन रही एक बेटी मार दी गई थी। इसी तरह पूजा नामक एक लड़की को गोली मार दी गई। मंदिरों, गुरुद्वारों, ग्रंथों और मूर्तियों पर कट्टरपंथी हमले करते हैं, पर ईश निंदा का कानून केवल अल्पंसख्यकों पर ही लागू होता है। जानकारी यह है कि साम्प्रदायिक झगड़े रोकने के लिए 1920 में अंग्रेज़ों ने ईश निंदा कानून बनाया था। उसमें यह प्रावधान रहा कि ईश निंदा के अपराधी को फांसी, उम्र कैद, जुर्माना या दोनों ही हो सकते हैं, परन्तु उम्र कैद भोगने के बाद भी जो जेल से रिहा होगा, उसकी ज़िंदगी की कोई सुरक्षा वहां की सरकार नहीं दे पाती। 
एक सर्वेक्षण के अनुसार ईश निंदा के केस अधिकतर झूठे होते हैं, परन्तु उनमें से बरी होने के लिए कई वर्ष और लाखों रुपये खर्च करके ही कोई बेचारा बच सकता है। विडम्बना यह देखिए कि ईश निंदा कानून एकतरफा है। 
सच्चाई यह है कि पाकिस्तान में रहने वाला हर हिंदू एवं सिख भारत आना चाहता है। यह शायद उनके लिए संभव न हो। अभी भी दिल्ली में पाकिस्तान से आए 480 हिंदू बैठे हैं। वे वापस नहीं जाना चाहते। बंगलादेश में भी हिन्दू मंदिर तोड़े गए, पुजारी मारे गए। पाकिस्तान में यह रोज़ की बात है। अफगानिस्तान में भी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती रहती हैं।  विभाजन के समय पाकिस्तान में हिंदू-सिख बहुत बड़ी संख्या में थे। सिंध प्रांत तो सबसे ज्यादा हिंदुओं, हिंदू संस्कृति, सभ्यता एवं मंदिरों का केंद्र रहा है। परन्तु आज हिंदू और सिख कहां गए? उनका जब्री धर्म परिवर्तन हुआ, अपहरण हुए, हत्याएं हुईं और आज दो प्रतिशत भी हिन्दू-सिख वहां नहीं रहे। आश्चर्य है कि पाकिस्तान में कोई मानवाधिकारी नहीं या वे डर से खामोश हैं। दुनिया भर के मानवाधिकारी क्यों चुप हैं?