प्रधानमंत्री पद की बढ़ती दावेदारियां

कुर्मी जाति के कुछ नेताओं ने इस बात पर बहुत खुशी व्यक्त की है कि नितीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन रहे हैं। पर इन लोगों के पास यह कोई योजना नहीं है कि नितीश कुमार प्रधानमंत्री किसलिए बनेंगे, क्या करेंगे, उससे देश का कौन सा नया भला होगा? यदि नितीश कुमार का समर्थन इस नाते है कि वह पिछड़ी जाति से हैं तो वह नरेंद्र मोदी पहले से हैं। यदि नितीश कुमार का समर्थन वे इसलिए कर रहे हैं कि वह सवर्णों को सबक सिखाएंगे तो पहली बात तो यह कि प्रधानमंत्री का पद प्रशासन और पुलिस के लिए नहीं होता। वह विदेश, रक्षा, गृह और दूरसंचार के लिए मुख्यत: होता है। फिर यह भी कि किस मुंह से ले लोग सवर्ण जातियों को जातिवादी कह रहे हैं? नितीश कुमार का समर्थन यदि इसलिए कर रहे हैं कि वह स्थिर सरकार देंगे तो इतिहास बताता है कि ऐसे लोग एक साल से अधिक कभी शासन नहीं कर पाए और सबसे घटिया शासन किए हैं।
नितीश कुमार के समर्थन में बिहार के एक कुर्मी विचारक ने लिखा कि सभी लोग प्रधानमंत्री को टैग करके पूछें कि देश की हालत उनके आठ साल के शासन के बाद भी खराब क्यो हैं। हालाँकि यह कोरा झूठ है पर फिर भी इसे सत्य मान लें तो प्रश्न यह है कि फिर डेढ़ दशक के शासन के बाद बिहार में जो स्थिति है, उसके लिए किसको टैग किया जाये? यदि कुर्मियों का यह आरोप है कि मोदी ने उन के साथ छल किया है तो फिर कुर्मियों की मुख्यभूमि मराठवाड़ा में एकनाथ शिंदे को, मध्य प्रदेश में सिंधिया को, गुजरात में भूपेन्द्र पटेल को कैसे स्थापित किया? 
उत्तर प्रदेश में कुर्मी राजनीति करने वाली एक पार्टी के पति और पत्नी, दोनों कैसे महत्वपूर्ण स्थान पर विराजमान हैं? यदि नितीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे यह स्वप्न है कि वह मोदी जी से अधिक पसंद किए जाने वाले नेता हैं तो जदयू के अन्य प्रदेशों में कितने वोट हैं, इसकी भी चर्चा आवश्यक है। यदि सेक्यूलर प्रवृत्ति के कुर्मी यह कहते हैं कि मोदी ने गुजरात दंगे कराए तो सुप्रीम कोर्ट की बात भूल ही जाइए। उस समय के रेल मंत्री रहे नितीश कुमार ने खुद कहा था कि इन घटनाओं में मोदी जी का कोई लेना देना नहीं है।  यदि किसी को लगता है कि कुर्मी, यादव और मौर्य को मिलाकर नितीश को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है तो एक लोकसंस्कृति विज्ञानी के रूप में मेरी यह बात याद रखें। खेत लगाने वालों और खेत चराने वालों में किसी प्रकार से लम्बी दोस्ती जमीन पर नहीं टिक सकती। नितीश कुमार को केवल जाति के नाम पर प्रधानमंत्री का दावा पेश करने वाले वस्तुत: वे कुर्मी हैं जिन्हें यह नहीं पता कि नितीश को वे कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं? किसके बल पर बिठाना चाहते हैं? जिसके बल पर बिठाना चाहते हैं, वह कौन सी कीमत वसूल करेगा। कितने दिन यह सरकार चलेगी, इससे देश को क्या मिलेगा, और समाज को क्या मिलेगा? दुर्भाग्य से इन लोगों में समझ का घोर अभाव है और इनके चक्कर में समदर्शी लोग भी बदनाम होंगे। (अदिति)