शरीर के पीछे की ओर से अपनी मांद बनाता है मुखौटा केकड़ा

 

केकड़े को मास्कड क्रैब कहते हैं। इसका शरीर अंडाकार होता है एवं इस पर एक पतला सा आवरण होता है। इसकी अधिकतम लम्बाई 4 सैंटीमीटर तक हो सकती है। मुखौटा केकड़ा अटलांटिक सागर के तटों पर बहुत बड़ी संख्या में मिलता है। यह रात्रिचर है। मुखौटा केकड़ा दिन के समय रेत के भीतर अपनी मांद में पड़ा रहता है और रात में बाहर निकलता है। इसकी पीठ पर झुर्रियों के समान बहुत सी डिज़ाइनें होती हैं जो देखने में प्राचीनकाल के योद्धाओं के मुखौटों के समान लगती हैं। इसी समानता के आधार पर इसे यह नाम दिया गया है। मुखौटा केकड़ा विश्व के बहुत बड़े भाग में पाया जाता है। इसकी लगभग 30 जातियां हैं। इनमें से कुछ जातियों के मुखौटे केकड़े विश्व के अधिकांश सागरों और महासागरों के तटीय भागों में मिल जाते हैं। मोमेजा वाईकार्निस एक ऐसा ही मुखौटा केकड़ा है। यह बहुत विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है।
मुखौटा केकड़े के सम्बन्ध में, जैसा कि अभी-अभी बताया गया है कि विश्च के सागरों और महासागरों के तटों पर इसकी लगभग 30 जातियां पाई जाती हैं। इन सभी की शारीरिक संरचना, भोजन, समागम, प्रजनन आदि से संबंधित आदतों और व्यवहारों में विशेष अंतर नहीं होता। इनमें पाई जाने वाली छोटी-छोटी भिन्नताओं के आधार पर इन्हें अलग-अलग जातियों का माना गया है। मुखौटा केकड़े की यूरोप वाली जाति की शारीरिक संरचना की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके शरीर की लम्बाई इसके शरीर की चौड़ाई से अधिक होती है।  इनके आगे के दो पैर चिमटे वाले और प्राय: लम्बे तथा अधिक शक्तिशाली होते हैं और पीछे के आठ पैर चलने वाले पैर होते हैं। मुखौटा केकड़े के चलने वाले पैरों के सिरे नुकीले होते हैं तथा इनकी लम्बाई इनके शरीर की लम्बाई के बराबर होती है। इसके आगे के दोनों पैरों अर्थात् चिमटे वाले पैरों की लम्बाई इसके शरीर से दुगनी अथवा इससे भी अधिक होती है। किंतु इसके चिमटे अधिक बड़े नहीं होते। मुखौटा केकड़े के शरीर का रंग कत्थईपन लिए हुए क्रीम जैसा होता है तथा इस पर झुर्रियोंदार डिज़ाइन होते हैं। इसके सभी पैरों का रंग भी इसके शरीर के रंग जैसा होता है।
मुखौटा केकड़े की श्वसन प्रणाली अति विशिष्ट एवं सभी केकड़ों से पूरी तरह अलग होती है। मुखौटा केकड़ा जब पानी की सतह पर होता है तो इसकी श्वसन नलिका के एक सिरे से पानी की धारा निकलती हुई साफ  दिखाई देती है। यह पानी इसके गलफड़ा कक्षों (गिल चैम्बर्स) से आता है। पानी की सतह पर मुखौटा केकड़े के सांस लेने का एंगल इस प्रकार का होता है कि सर्वप्रथम इसके पैरों के पास के छिद्रों से पानी इसके शरीर के भीतर पहुंचता है और सीधा गलफड़ा कक्षों तक जाता है। यहां पानी में घुली हुई ऑक्सीजन ले ली जाती है तथा शेष पानी संस्पर्शिकाओं में पहुंचा दिया जाता है। यहां से यह एक संस्पर्शिका के सिरे से शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है।
मुखौटा केकड़े में एक रोचक विशेषता पाई जाती है, जिसने इसे एक चर्चित केकड़ा बना दिया है। यह छछूंदर केकड़े और मेंढक केकड़े के समान उल्टा होकर अर्थात् अपने शरीर के पीछे की ओर से मांद बनाता है। यह रेत में पीछे के पैरों से मांद खोदता जाता है और भीतर घुसता जाता है। इस समय इसकी दोनों संस्पर्शिकाएं रेत के बाहर रहती हैं, जिससे पानी के साथ इसका सम्पर्क बना रहता है। मुखौटा केकड़े का एक अन्य रोचक गुण यह है कि मांद तैयार करते समय एवं मांद के भीतर इसका सांस लेने का ढंग पूरी तरह बदल जाता है। पानी की सतह पर सांस लेने के लिए यह अपने पैरों के पास के छिद्रों से पानी भीतर लेता है। यह पानी इसके गलफड़ा कक्षों के भीतर से होता हुआ संस्पर्शिका के एक छिद्र से बाहर निकल जाता है। किंतु मांद के भीतर इसका सांस लेने का एंगल उल्टा हो जाता है। इस समय यह अपनी संस्पर्शिका के छिद्र से पानी शरीर के भीतर खींचता है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर