कारवां गुज़र गया, गुब्बार देखते रहे

हमारे देखते ही देखते युग बदल गया। कभी इस देश में युग प्रवर्त्तक नेताओं की पहचान खादी का साधारण कुर्ता-पायजामा और बिवाइयां फटे पावों में पेशावरी चप्पल हुआ करती थी, जिसके तले चल चल कर घिस गये हों। अरे साहिब, तब अपने कपड़ों की परवाह किसे थी? बस अन्तस में एक ही धधकती ज्वाला रहती थी कि सदियों से अपने कन्धों पर कसा हुआ गुलामी का जुआ उतार फेंकना है। घर-द्वार  की परवाह किसे थी? क्रांति नारियां सर्वत्यागी और अमर बलिदानी थीं, और नव जन्मे क्रांति शिशु जैसे मां की कोख से ही यह घुट्टी लेकर पैदा होते थे, ‘अपने देश में अपना स्वराज।’
लो, यह हम किस युग की बातें करने लगे? यहां देखते ही देखते आज़ादी की पौन सदी बीत गयी। हमने इस व्यतीत का अमृत महोत्सव भी मना लिया, लेकिन अभी तक एक सौ चालीस करोड़ आबादी को राहत की सांस नहीं मिली। मिले तो बस उपलब्धियों और सफलता के आंकड़े। ये अपने किताबी प्रसारण में चकाचौंध की क्षमता रखते हैं लेकिन इन सब बरसों में यहां कतार में खड़ा आदमी न केवल वहां का वहां खड़ा है, बल्कि एक अकेले से वंचितों प्रवंचितों की भीड़ में अवश्य तबदील हो गया। 
हां, इस बीच इस कतार के शीर्षक में भी परिवर्तन आ गया। पहले यह कतार अपने लिये काम मांगते नौजवानों की भीड़ थी, जो आक्रोश भरे स्वर में चिल्लाती, ‘रोटी-रोज़ी दे न सके, वह सरकार निकम्मी है।’
अब यह कतार अपने लिये राहत, रियायत और अनुकम्पा तलाशती कतार बन गई। इनके अपने लिए चिल्लाते हुए नारे भी बदल गये। ‘सबको राहत, रियायत और मुफ्तखोरी। जो बांट न सके वह सरकार निकम्मी है।’ जो बरसों से काम का इंतज़ार कर रहे थे, वे अब सांझी रसोई में लगने वाले मुफ्त लंगर के लिए अपना नम्बर पक्का करने में लगे हैं।
खबर मिली है कि इस बरस सरकार ने मनरेगा के लिए धन आवंटन घटा दिया है अर्थात हर काम प्रार्थी परिवार के एक सदस्य के लिए सौ दिन काम देने की अनिवार्यता थी मनरेगा लेकिन अब इस दिशाहीन अनिवार्यता के तलबगारों की कमी हो गई। रोज़गार दिलाऊ विभाग के आंकड़ों ने फरमा दिया कि पहले जितने लोग काम मांगते थे, अब उससे केवल आधे रह गये, क्योंकि बाकी आधे अपना पांसा पलट कर उस कतार में खड़े हो गये जहां रियायती गेहूं बंटता है। गर्व से बताया गया है कि दुनिया में कोई ऐसा अन्य दरियादिल देश नहीं, जो एक साथ इतने लोगों को रियायती गेहूं बांट दे। 
लीजिए, दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में ज्यों-ज्यों विकास दर के आंकड़े गले से निकल कर ऊपरी उछाल लेने लगे, त्यों-त्यों कहा जाने लगा कि महामारी, मंदी और भगौड़े होते निवेश के इन दिनों में भी यह देश दुनिया में सबसे तेज़ गति से विकास करने वाले देशों में से एक है। यह एक ऐसा देश है जहां सार्वजनिक क्षेत्र को अलविदा कह कर त्वरित गति के नाम पर निजी क्षेत्र का स्वागतम ही नहीं, पूजा-अर्चना भी होने लगी है। घोषणा इन सब दिनों में एक समतावादी समाज बना देने की थी, लेकिन तरक्की के नाम पर ऐसे असमतावादी समाज की तस्वीर उभर कर सामने आ रही है, कि जहां चन्द अमीर और अमीर हो कर देश की तरक्की और आधुनिकीकरण के ज़िम्मेदार हो गये, और नब्बे प्रतिशत बहुसंख्या गरीब से फटीचर बन कर उन टूटे फुटपाथों पर अपना आसरा तलाशने लगी, कि जिन्हें कभी स्मार्ट बना देने का वायदा कर खुले हाथ सपना बांटने वाले मसीहाओं ने उनकी मूल ज़रूरी वस्तुओं पर कर ठोस दिये थे। 
बेशक इन बेआसरा लोगों के आंसू पोंछने और बनावटी मुस्कराहटें बांटने के लिए वायवीय रियायतों की बारात इनकी अंधेरी कोठरियों के बाहर ठिठक गयी है। इन रियायतों में मुफ्तखोरी की सुविधा है, इसलिए देश के सार्वजनिक प्रशासनिक और सरकारी मसीहाओं से लेकर न्यायालय के महाप्रभुओं तक ने इन्हें रेवड़ी संस्कृति कह कर इनसे छुटकारा पाने का संदेश दिया है। लेकिन इसके लिए ऊंचे भाषणों के अतिरिक्त किसी प्रांगण से किसी गम्भीर चिन्तन, अथवा उन्मूलन की लक्ष्मण रेखाएं बांधने का कोई सक्रिय कदम नहीं उठा। चुनाव की दुंदुभियां बजती हैं, और राजनीतिक दल अपने हिस्से का वोट बैंक बढ़ाने के लिए इस रेवड़ियों के ढेर को पहाड़ बना देने की चिन्ता में दुबले होते नज़र आने लगते हैं। 
हमारा वक्त कब बदलेगा, बरसों से उसी सड़क पर उसी मील पत्थर पर कवायद करता हुआ आदमी पूछ लेता है? लेकिन उसे उत्तर नहीं मिलता क्योंकि जिनके पास यह उत्तर था, वे तो क्रांति धर्मी जन-यात्रा बना कर पूरा देश जोड़ देने के लिए निकल गये हैं। सत्ताधीशों की वे कोई चिन्ता नहीं हैं क्योंकि इस जन-यात्रा के अग्रदूत ने हज़ारों रुपये की एक ऐसी टी-शर्ट पहन रखी है, जिसका सपना भी देखने का साहस आम आदमी के पास नहीं। क्रांति जवाबी जुमलों में उलझ रही है। हमारे अग्रदूत ने हज़ारों की टी-शर्ट पहनी, तो तुम्हारा मसीहा भी तो सोने की तारों से बुना लाखों का कुर्ता पहनता है। आम आदमी मुंह बाये इस गुज़रते कारवां को गुज़रता देखता है। उसके तन पर तो न पहले कुर्ता था, न आज है।