बहुत ही अनुशासित देश है सिंगापुर सिख समुदाय का है अहम स्थान

विगत दिनों टोरांटो कनाडा आने से पूर्व कुछ दिन सिंगापुर में व्यतीत करने का
अवसर मिला। यह चमकता-दमकता देश है। कहीं गंदगी का निशान तक दिखाई
नहीं देता। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रबन्ध श्रेष्ठ है। शहरीकरण होने के बावजूद चारों
ओर हरियाली ही दिखाई देती है। सड़क पर चलता हर व्यक्ति कानून का पालन
करता दिखाई देता है। दिन के समय सड़कों पर पुलिस शायद ही कहीं दिखाई दे।
परन्तु लोग जैसे आदतन ही ट्रैफिक नियमों का पालन करने वाले हों। आश्चर्यजनक
बात है कि भारत में किसी कायदे-कानून की परवाह न करने वाले भारतीय भी यहां
अन्यों को देख कर या कानून के अदृश्य डंडे के डर से पूरी तरह नियमों को मानते
ही दिखाई देते हैं। हालांकि सिंगापुर को भारत से 16 वर्ष बाद स्वतंत्रता मिली थी।
भारत 15 अगस्त, 1947 तथा सिंगापुर 13 अगस्त, 1963 को स्वतंत्र हुआ परन्तु
एक माह बाद ही मलेशिया का हिस्सा बन गया था। मौजूदा स्वतंत्र सिंगापुर 9
अगस्त, 1965 को अस्तित्व में आया जब वह फिर मलेशिया से अलग देश बन
गया।
परन्तु सिंगापुर का मुकाबला भारत जैसे क्षेत्रफल एवं जनसंख्या में विश्व में दूसरे
स्थान के देश के साथ तो किया ही नहीं जा सकता, क्योंकि भारत की जनसंख्या
140 करोड़ के निकट पहुंचने वाली है। जबकि सिंगापुर की जनसंख्या अभी 60
लाख का आंकड़ा भी नहीं पार कर सकी। फिर क्षेत्रफल के   हिसाब से भी भारत
विश्व में 8वें स्थान पर है तथा सिंगापुर 190वें स्थान पर, पानी सहित सिंगापुर का
कुल क्षेत्रफल 719 स्कवेयर फीट ही है जबकि भारत का 32 लाख 87 हज़ार 263
स्कवेयर फीट का विशाल क्षेत्रफल है। भारत तथा सिंगापुर में कुछ समानताएं भी हैं,
जिनमें सबसे बड़ी समानता दोनों देशों में बहुधार्मिक-आस्था वाले लोगों की आबादी
है। सिंगापुर में 31.1 प्रतिशत बौद्ध, 18.9 प्रतिशत ईसाई, 15.6 प्रतिशत मुस्लिम,
8.8 प्रतिशत ताओइस्ट, 5 प्रतिशत हिन्दू, लगभग 0.6 प्रतिशत अन्य धर्मों के लोग
तथा 20 प्रतिशत किसी भी धर्म को न मानने वाले लोग निवास करते हैं। भारत में
79.8 प्रतिशत हिन्दू, 14.2 प्रतिशत मुस्लिम, 2.3 प्रतिशत इसाई, 1.7 प्रतिशत
सिख तथा अन्य सभी धर्मों या किसी भी धर्म को न मानने वाले 2 प्रतिशत लोगों
की आबादी है।
परन्तु औसत उम्र के चलते सिंगापुर भारत से बहुत आगे है, सिंगापुर में औसत उम्र
86.35 वर्ष है तथा भारत में 70 वर्ष से भी कम। प्रति व्यक्ति आय सिंगापुर में
86 हज़ार 480 डॉलर है जबकि भारत में प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 6 हज़ार 390
डॉलर ही है। हां, भारत में महंगाई सिंगापुर से कम है। यह इस कारण है क्योंकि
भारत के पास अपने उपयोग हेतु अधिकतर समान अपने देश में ही उपलब्ध है।
जबकि सिंगापुर को तो खाने हेतु अनाज, सब्ज़ियां एवं पीने के लिए पानी तक
बाहरी देशों से मंगवाना पड़ता है।
यह ठीक है कि भारत अब विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।
परन्तु भारत की राजधानी दिल्ली से भी जनसंख्या में सिर्फ तीसरा हिस्सा होने तथा
कम क्षेत्रफल  का देश होने के बावजूद सिंगापुर विश्व की 9वीं सबसे बड़ी
अर्थ-व्यवस्था है। सिंगापुर भारत की तरह दवाइयों का बहुत बड़ा निर्यातक देश है।
परन्तु वह पेंटरोनैमीकल्ज़ में विश्व का 7वां सबसे बड़ा निर्यातक देश भी है।
सिंगापुर 2700 से अधिक ऐसे जटिल उत्पादों का निर्यात करता है, जिनके बिना
अमरीका जैसे बड़े देश भी अपनी इंजीनियरिंग, विमान निर्माण तथा चिकित्सा
उपकरणों का कार्य जारी नहीं रख सकते। सैमीकंडक्टरों की इस समय विश्व में
भारी कमी महसूस की जा रही है तथा सिंगापुर विश्व के कुल सैमीकंडक्टर उत्पादन
का 5वां हिस्सा अकेला ही बना रहा है। सिंगापुर के इस विकास का पूरा श्रेय इसके
नेता ली कुआनयू को जाता है, जो 1959 से 1990 तक लगातार 31 वर्ष सत्ता में
रह कर देश का नेतृत्व करते रहे। लोग काम को महत्त्व देते हैं, इसका अनुमान
सिंगापुर के आश्चर्यजनक विकास तथा पीपल्ज़ एक्शन पार्टी सिंगापुर के लगातार
जीतने से लगाया जा सकता है। 
सिंगापुर तथा सिख
इस देश में पंजाबियों की संख्या कोई ज्यादा नहीं है परन्तु जितनी भी है उसमें
सिख आधे से अधिक हैं। वर्ष 2010 की जनगणना के अनुसार सिंगापुर में सिखों
की संख्या 12 हज़ार 952 थी जो इस समय 15 हज़ार से अधिक मानी जाती है।
सिख पहली बार सिंगापुर में 1819 में सिपाहियों के रूप में पहुंचे थे। इतिहास के
अनुसार अंग्रेज़ों ने 1859 में 2 सिखों भाई महाराज सिंह तथा खड़क सिंह को पर्ल
हिल की जेल में सिंगापुर भेजा था। 1856 में भाई महाराज सिंह की मृत्यु के बाद
पर्ल हिल क्षेत्र में ही उनका अंतिम संस्कार करके समाधि बनाई गई थी। परन्तु
समाधि का स्थान कई बार बदला गया। अब उनकी स्मृति स्लिट रोड सिख टैम्पल
(गुरुद्वारा) में है। सिंगापुर में 1881 में पहली सिख पुलिस कौंटीगैंट नामक टुकड़ी
बनाई गई, जिसमें 54 सिख सिपाही भर्ती किये गये। बाद में पंजाब से आये सिखों
की बड़ी संख्या इस सिख पुलिस कौंटीगैंट (एस.पी.सी.) में शामिल की गई तथा यह
कई विद्रोह शांत करने में अग्रिणी रहे। 1930 में सिख अंग्रेज़ों की सिंगापुर में वायु
तथा जल सेना में भी भर्ती किये गये। सिंगापुर पहुंचे जो सिख सैनिक बनने की
शर्तें पूरी नहीं करते थे, वह गार्डों एवं अन्य कार्यों पर लग गये। परन्तु 1947 में
भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद 1950 तक बड़ी संख्या में सिख व्यापारी भी
सिंगापुर पहुंचे तथा वहां व्यापार करने लगे। 
1880 में सिख सिपाहियों ने पर्ल हिल क्षेत्र में पहला गुरुद्वारा बनाया। दूसरा
गुरुद्वारा तैनजौंग पगार डौक कम्पनी की सिख पुलिस फोर्स ने बनाया। परन्तु
1912 में यह स्थान सरकार ने एक्वायर करके इसके स्थान पर स्लिट रोड पर
जगह अलाट कर दी, जहां नये गुरुद्वारा साहिब का निर्माण किया गया। 1912 में
ही एक सिंधी सिख श्रद्धालु वासीआमुल ने एक बंगला खरीद कर गुरुद्वारा के
निर्माण हेतु दिया। जहां सैंट्रल सिख टैम्पल की नींव रखी गई। अब सैंट्रल सिख
टैम्पल बोर्ड ही सिंगापुर में सिखों की सबसे बड़ी संस्था है, जिसका चुनाव सरकार
द्वारा करवाया जाता है तथा यह स्लिट रोड गुरुद्वारा साहिब का प्रबन्ध भी देखती
है। इस समय सिंगापुर में कुल 7 या 8 गुरुद्वारा साहिब हैं। सिंगापुर में कुछ सिखों
ने अच्छा नाम कमाया है, जिनमें चूर सिंह सिद्धू, सुप्रीम कोर्ट के जज बने। दविन्द्र
सिंह सांसद तथा अन्य कई संस्थाओं के प्रमुख रहे। इंद्रजीत सिंह सत्तारूढ़ पीपल्ज़
एक्शन पार्टी के सांसद बने। करतार सिंह ठकराल सिंगापुर के सबसे बड़े सिख
व्यापारी एवं प्रभावशाली सिख हैं। उनका नाम वहां के गैर-सिखों तथा गैर-भारतीयों
में भी सम्मान के साथ लिया जाता है। 1995 में उनके ग्रुप को सिंगापुर की 50
सबसे बड़ी कम्पनियों में पहला स्थान दिया गया था। कमांडर गुरचरण सिंह के
अतिरिक्त अमरदीप सिंह भी प्रसिद्ध सिखों में शामिल हैं। उन्होंने दो किताबें
पाकिस्तान में सिख विरासत व अवशेष लिखीं और गुरु नानक देव जी की यात्रा पर
24 दस्तावेज़ी फिल्में बनाने का कार्य भी किया है। 
आप भी सुनें गुरदास मान जी
प्रसिद्ध पंजाबी गायक गुरदास मान ने नया गीत ‘गल्ल सुणो पंजाबी दोस्तो’ रिलीज़
करके अक्तूबर 2019 में कनाडा के एब्टसफोर्ड में उनके द्वारा भारत के गृह मंत्री
अंिमत शाह द्वारा शुरू किये गए अभियान ‘एक देश एक भाषा’ का समर्थन
करने वाली बयानबाज़ी का विरोध करने वालों को मुखातिब होकर पुन: अपनी बात
कि देश में एक साझी भाषा होनी चाहिए, को सही ठहराने का प्रयास किया है,
जिसका पंजाब से प्यार करने वाले लोगों द्वारा विरोध करना स्वाभाविक है। वैसे भी
गुरदास मान ने इस गीत की भूमिका में स्वयं की ओर से निकाली गई गाली तक
को उचित ठहराने का प्रयास करते हुए पंजाबियों को एक-दूसरे को गाली देते
दिखाया गया है, जैसे पंजाबी गाली दिये बिना बात ही नहीं कर सकते। वैसे गुरदास
मान के एक बड़ा गायक होने पर किसी को इन्कार नहीं, परन्तु उनकी शिकायत
उचित नहीं या उन्हें पंजाबी गीत गाने के बदले पंजाबियों ने उन्हें धन एवं
मान-सम्मान के अम्बार से लाद दिया है। वैसे भी कोई पूछे कि उन्होंने जो भी
गाया और लिखा, वह पैसे तथा मान-सम्मान के लिए गाया है, फिर एहसान कैसा?
परन्तु चलो फिर भी यदि उनका एहसान मान भी लिया जाए तो क्या उन्हें यह
अधिकार मिल गया है कि वह एक ऐसी बात को उत्साहित करें जो पंजाबी भाषा
को खत्म करने की हो? जिसका परिणाम पंजाबी जिसे वह ‘मां’ कहते  हैं, के
खात्मे में निकलता हो। आप भी ‘सुणो गुरदास मान जी’ संस्कृत जैसी बड़ी भाषाएं  
भी समाप्त होने के करीब पहुंच गईं, जिसमें सैंकड़ों ग्रंथ लिखे गये हैं, क्योंकि लोग
समय की सरकारों की सरकारी भाषाओं की ओर भी चल पड़ते हैं। भारत एक संघ
है और इसकी करीब 22 प्रमाणित भाषाएं हैं। अधिकारिक तौर पर हिन्दी भी दूसरी
भाषाओं की भांति एक आधिकारित भाषा है। यदि तुम्हारी दलील के अनुसार देश
भर में समझी जानी वाली भाषा हिन्दी को साझी भाषा का दर्जा देने को मान लें तो
फिर अंग्रेज़ी ही क्यों न अपनाएं, जो दुनिया भर के देशों में समझी जा सकती है। 
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