गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता

विगत कुछ वर्षों से देश में बढ़ रहा साम्प्रदायिक उन्माद थमने का नाम नहीं ले रहा। किसी न किसी रूप में यह बढ़ता ही जा रहा है तथा भिन्न-भिन्न समुदायों, सम्प्रदायों में तनाव पैदा कर रहा है। नित्यप्रति जाति-बिरादरियों को लेकर नये-नये झमेले खड़े किये जा रहे हैं जिससे देश का वातावरण अतीव दूषित होता जा रहा है। धार्मिक कट्टरता की बात अ़फगानिस्तान एवं पाकिस्तान में तो समझ आती है परन्तु भारत में इसका बढ़ना समय को विपरीत दिशा देने के समान है। 
इसके साथ ही यह भारतीय संविधान का भी अपमान है जिसमें सभी जाति-बिरादरियों, धर्मों एवं समुदायों को एक समान माना गया है तथा भ्रातृत्व की भावना को प्रचारित किया गया है। देश में भिन्न-भिन्न पार्टियों के साथ सम्बद्ध राजनीतिक एवं कुछ धार्मिक संगठनों के नेता अपने स्वार्थों के लिए निरन्तर ऐसी बयानबाज़ी करते रहते हैं जो देश के भिन्न-भिन्न समुदायों में अन्तराल बढ़ाने वाली सिद्ध होती है। कुछ मास पूर्व देश में भिन्न-भिन्न राज्यों में सम्पन्न हुई धर्म संसदों में खुलेआम एक सम्प्रदाय के जातीय सफाया के आह्वान किये गये। वैसे भी कभी लव जेहाद, कभी नमाज़, कभी हिजाब तथा कभी पशुओं की तस्करी रोकने के नाम पर एक अल्प-समुदाय को निशाना बनाया जाता है। कई बार अल्पमत समुदायों से सम्बद्ध नेता भी घृणा पैदा करने वाले बयान देते हैं। कुछ सप्ताह पूर्व तेलंगाना के भाजपा विधायक टी. राजा सिंह की ओर से प़ैगम्बर मोहम्मद साहिब के विरुद्ध की गई विवादित टिप्पणी को इसी सन्दर्भ में देखा एवं समझा जा सकता है जिससे मुस्लिम समुदाय में तो रोष उत्पन्न हुआ ही था, इसके साथ ही भाजपा की स्थिति भी खराब हुई थी। नि:सन्देह भाजपा की ओर से मत बटोरने की खातिर विगत लम्बी अवधि से साम्प्रदायिक पत्ता खेला जा रहा है परन्तु सम्भवत: उसके नेतृत्व को यह अहसास नहीं हुआ कि इस पत्ते को प्रयुक्त करते समय चुनावों में सामयिक राजनीतिक लाभ तो प्राप्त किया जा सकता है परन्तु समूचे तौर पर इससे देश की स्थिति बिगड़ सकती है। यदि इससे देश के हालात बिगड़ते हैं तो इसकी ज़िम्मेदारी इस पार्टी पर ही आयेगी। जितनी गड़बड़ बढ़ेगी, उतनी ही भाजपा की आलोचना भी होगी। 
अशांत माहौल में विकास नहीं किया जा सकता।  प्राप्त की गई ठोस उपलब्धियां भी प्रभावहीन होकर रह जाती हैं। चाहे माहौल की गम्भीरता को देखते हुये भाजपा ने तेलंगाना के विधायक राजा सिंह को पार्टी से मुअत्तिल कर दिया था। उसकी गिरफ्तारी भी हुई थी परन्तु इस घटना से जो तेल डाला गया है, वह ज्वाला बनने की सामर्थ्य रखता है। भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की ओर से मोहम्मद साहिब के बारे में की गई टिप्पणियों की बात अभी तक समाप्त नहीं हुई। इसे लेकर खुलेआम दो हत्याएं भी हो चुकी हैं। नित्यप्रति भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों की ओर से एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाज़ी की जा रही है। कर्नाटक में चुनावों को निकट आते देख कर वीर सावरकर के नाम पर निकाली जा रही यात्रा ने भी माहौल को अधिक तनावपूर्ण बना दिया था। यह भी गम्भीर चिन्ताजनक बात है कि नित्यप्रति निकाली जाने वाली धार्मिक शोभायात्राएं भी चुनौतीपूर्ण रूप धारण करने लगी हैं। अधिकतर तो इन यात्राओं में विरोधी समुदाय को चिढ़ाने की गतिविधियां ही की जाती हैं। 
आज भाजपा देश के अधिकतर राज्यों में शासन चला रही है इसलिए उसकी ज़िम्मेदारी अधिक बन जाती है। यदि उसके बड़े-छोटे नेता ही ऐसी बयानबाज़ी करने को अधिमान दे रहे हैं जो भावनाओं को भड़काने वाली सिद्ध हो तो उससे बेचैनी बढ़ेगी। ऐसी बेचैनी को सम्भाल पाना अतीव कठिन होगा। हम अनुभव करते हैं कि यदि आज भाजपा के उच्च नेतृत्व की ओर से देश में चल रहे मौजूदा माहौल के संबंध में कड़ा रुख धारण करके स्पष्ट संदेश नहीं दिया जाता तथा उस दिशा में क्रियात्मक पग नहीं उठाये जाते, तो यह देश गांधी एवं नेहरू के बताये हुये पथ से भटक जाएगा तथा जिन्नाह के दिशा-निर्देशों को धारण कर लेगा। क्या हम भारत को पाकिस्तान के पथ पर चलते देखना चाहेंगे? यह एक ऐसा प्रश्न है जो आज गम्भीर चिन्तन की मांग करता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द