मोदी-पुतिन वार्तालाप की सार्थकता

उज़्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरकन्द में शंघाई सहयोग संगठन की ओर से आयोजित 22वें शिखर सम्मेलन के इतर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच हुए द्विपक्षीय वार्तालाप के उपजे प्रभाव से जहां एक ओर रूस-यूक्रेन युद्ध की आशंकित होती जाती विभीषिका का पता चलता है, वहीं राष्ट्रपति पुतिन के आश्वासन के बाद, नि:सन्देह रूप से युद्ध के मैदान पर किसी नाटकीय परिवर्तन की तस्वीर भी उभरते प्रतीत होती है। इस भेंट के दृष्टिगत भारत एवं रूस के बीच दशकों पुराने विश्वास-आधारित संबंधों की भी पुष्टि होती है, और इस ताज़ा घटनाक्रम के बाद वैश्विक धरातल पर भारत के बढ़ते महत्त्व और दायित्व की भी अनुभूति सहज रूप से हो जाती है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राष्ट्रपति पुतिन से यूक्रेन युद्ध की बढ़ती विनाशलीला के दृष्टिगत इस पर तुरन्त विराम लगाये जाने हेतु कहना नि:सन्देह इस तथ्य को दर्शाता है कि वैश्विक धरातल पर भारत देश का महत्त्व और क्रियाशीलता बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस अकाट्य तर्क कि मौजूदा युग युद्ध का नहीं, बातचीत का है, के प्रति राष्ट्रपति पुतिन की भाव-भंगिमा और प्रतिक्रियात्मक टिप्पणी भी सार्थक दिखी। हम समझते हैं कि युद्ध से न केवल समस्याएं बढ़ती हैं, अपितु नई शत्रुताएं उपजती हैं, जिससे सम्पूर्ण विश्व और पूरी मानवता विनाश के कगार की ओर एक कदम और आगे धकेल दी जाती है। यूक्रेन युद्ध की मौजूदा तस्वीर के दृष्टिगत दोनों देशों की ओर से एक-दूसरे के विरुद्ध किये गये नये घातक प्रहारों से युद्ध की सम्पूर्ण तस्वीर भयावह होने लगती है, किन्तु राष्ट्रपति पुतिन के इस एक वाक्य से इस तस्वीर में शांति और सौहार्द की तूलिका से  कोई सकारात्मक लकीर खींचे जाने की सम्भावना भी उपजती है कि ‘हम भी चाहते हैं कि यूक्रेन में जंग यथाशीघ्र समाप्त हो।’ बेशक इससे यह प्रभाव भी मिलता है कि राष्ट्रपति पुतिन को किसी मुकाम पर युद्धविराम हेतु सहमत किया जा सकता है, और कि इसमें भारत की भूमिका अग्रणी हो सकती है। 
इसी वर्ष 24 फरवरी को यूक्रेन के अनेक शहरों पर एकाएक किये गये रूसी हवाई हमलों के दृष्टिगत शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध ने नि:सन्देह पूरे विश्व को परमाणु युद्ध के दहाने पर ला खड़ा किया है, और परमाणु युद्ध का तीर एक बार यदि कमान से छूटा तो फिर पूरी धरती और आकाश को विनाश के शोलों में दहक जाने से कोई नहीं रोक पायेगा। इस आशंका के दृष्टिगत वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा दी गई यह चेतावनी भी बड़े गम्भीर मायने रखती है कि एक छोटा-सा सीमित परमाणु युद्ध सृष्टि के अब तक हुए विकास एवं प्रगति के साथ-साथ पूरी मानवता के एक बड़े हिस्से को धूल-धूसरित करने और बंजर बना देने की क्षमता रखता है। इस तथ्य में कोई दो राय नहीं कि अमरीका और अन्य पश्चिमी राष्ट्रों की सक्रिय सहायता के बल पर यूक्रेन द्वारा रूसी कब्ज़ाकारी सेनाओं पर किये गये ताज़ा प्रहारों से राष्ट्रपति पुतिन की शक्तिशाली दिखने की छवि को आघात तो पहुंचा ही है, और इसी के दृष्टिगत उनकी ओर से किसी बड़े प्रहार का आदेश दिये जाने की सम्भावना से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। यूक्रेनी सेना द्वारा अपना हज़ारों किलोमीटर क्षेत्र रूसी सेना से छुड़ा लेने और रूसी सेनाओं को खदेड़े जाने के समाचार भी राष्ट्रपति पुतिन के अहं पर नमक डाले जाने के  तुल्य माने जा सकते हैं। यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की द्वारा योरुपीय यूनियन की प्रत्यक्ष सदस्यता हेतु पुन: आवेदन किया जाना अपमान की इस रूसी आग में घी का काम कर सकता है। इन तमाम तरह की सम्भावनाओं और आशंकाओं के बीच इस युद्ध के निकट भविष्य में अधिक गम्भीर और अधिक विनाशक हो जाने की तीव्र सम्भावना है।
इसी के दृष्टिगत हमने शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के मंच की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की इस संक्षिप्त-सी भेंट को व्यापक स्तर पर महत्त्वपूर्ण सिद्ध होने वाली करार दिया है।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अवसर का समुचित लाभ उठाते हुए यद्यपि अन्य सदस्य राष्ट्राध्यक्षों से भी द्विपक्षीय संबंधों एवं अन्य वैश्विक मुद्दों को हल करने संबंधी बातचीत की, परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा की मुख्य उपलब्धि राष्ट्रपति पुतिन के साथ सम्पन्न हुई उनकी बातचीत रही। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से दोनों नेताओं में यह पहली बातचीत थी। 
नि:सन्देह आज विज्ञान और तकनीक की उन्नति से यदि विश्व विकास, उन्नति और समृद्धि के शिखर पर पहुंचा है, तो विनाश की दुंदुभि भी उसके पग-चिन्हों को नापते हुए उसके साथ-साथ चली है। जापान और चेर्नोबिल जैसी परमाणु विभीषिका की स्मृतियां मानवता के जिस्म पर रेंगती चींटियों जैसी पीड़ा का आभास देती हैं। ऐसे में, हम समझते हैं कि विश्व धरा पर किसी भी प्रकार के युद्ध खास तौर पर परमाणु विभीषिका की आशंका वाले युद्ध को यथासम्भव यत्नों से रोके जाने की बड़ी आवश्यकता है। इसी उद्देश्य के पथ पर एक बड़ा पग मानी जा सकती है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की समरकंद में हुई यह एक छोटी-सी मुलाकात हालांकि इससे उपलब्ध होने वाले परिणाम यदि सार्थक धरा पर टिके तो इससे हासिल होने वाली उपलब्धियां सम्पूर्ण विश्व मानवता के लिए दूरगामी और कल्याणकारी सिद्ध हो सकती हैं। इस दृष्टिकोण से शंघाई शिखर सम्मेलन में भारत की भूमिका बड़ी अहम रही मानी जा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी की समरकंद यात्रा की एक और बड़ी सफलता भारतीय विदेश नीति को इस धरती से मिली मान्यता है। बेशक यह मुलाकात युद्ध और विनाश के घने होते जाते स्याह बादलों के बीच आस की एक किरण के तौर पर सिद्ध हो सकती है। हम समझते हैं कि इस संकट से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सम्बद्ध अन्य देशों एवं पक्षों को भी मोदी-पुतिन वार्तालाप की महत्ता को समझना चाहिए, और कि इस के सार्थक परिणामों की प्राप्ति हेतु यत्न करने चाहिएं। हम समझते हैं कि ऐसे यत्न जितनी ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ किये जायेंगे, उतना ही यह विश्व मानवता के हित में होगा।