जीवन का वास्तविक सौन्दर्य है शांति और अहिंसा

विश्व शांति दिवस अथवा अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस प्रत्येक वर्ष 21 सितम्बर को मनाया जाता है। यह दिवस सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता, शांति, अहिंसा और खुशी का एक आदर्श प्रतीक माना जाता है। यह दिवस मुख्य रूप से पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। पहला शांति दिवस कई देशों द्वारा राजनीतिक दलों, सैन्य समूहों और लोगों की मदद से 1982 में मनाया गया था। इस वर्ष 40वें अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस की थीम ‘जातिवाद खत्म करें, शांति का निर्माण करें’ है। शांति सभी को प्यारी होती है। अहिंसा एवं शांति जीवन का सौन्दर्य है। इसकी खोज में मनुष्य अपना अधिकांश जीवन न्यौछावर कर देता है किन्तु यह काफी निराशाजनक है कि आज इन्सान दिन-प्रतिदिन इस शांति एवं अहिंसा से दूर होता जा रहा है। आज चारों तरफ  फैले बाज़ारवाद ने शांति एवं अहिंसा को व्यक्ति से और भी दूर कर दिया है। 
शांति एवं अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग किसी भी प्राणी को सताते नहीं, मारते नहीं, मर्माहत नहीं करते। इसी में से अहिंसा एवं शांति का तत्व निकला है। अहिंसा है स्वयं के साथ सम्पूर्ण मानवता को ऊपर उठाना, आत्मपतन से बचना और उससे किसी को बचाना। अशांति अंधेरा है और शांति उजाला है।  यूँ तो ‘विश्व शांति’ का संदेश हर युग और हर दौर में दिया गया है, लेकिन विश्व युद्ध की संभावनाओं के बीच इसकी आज अधिक प्रासंगिकता है।
विगत अनेक माह से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, और इस युद्ध से जुड़ी तमाम आशंकाओं और संभावनाओं के बावजूद शांति वार्ता की कोशिशें भी लगातार जारी हैं। 
भारत अहिंसा एवं शांति को सर्वाधिक महत्व देने वाला देश है। यहां की रत्नगर्भा माटी ने अनेक संत पुरुषों, ऋषि-मनीषियों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने त्याग एवं साधनामय जीवन से दुनिया को अहिंसा एवं शांति का सन्देश दिया। महात्मा गांधी ने अहिंसा एवं शांति पर सर्वाधिक बल दिया। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति और अमन स्थापित करने के लिए पांच मूल मंत्र दिए थे, जिइन्हें ‘पंचशील के सिद्धांत’ भी कहा जाता है। मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के ये पंचशील के पांच आधारभूत सिद्धांत हैं—एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना, एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना, एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना, समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना। माना जाता है कि अगर विश्व उपरोक्त पांच बिंदुओं पर अमल करे तो हर तरफ  चैन, अहिंसा एवं शांति का ही वास होगा।
‘विश्व शांति दिवस’ के उपलक्ष्य में हर देश में जगह-जगह सफेद रंग के कबूतरों को उड़ाया जाता है, जो कहीं न कहीं ‘पंचशील’ के ही सिद्धांतों को दुनिया में फैलाते हैं। आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक कुचेष्टाओं से है। विकसित देश युद्ध की स्थितियां उत्पन्न करते हैं, ताकि उनका सैन्य साजो-सामान बिक सके। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे कोई इन्कार नहीं कर सकता। आज सैन्य साजो-सामान उद्योग विश्व के एक बड़े उद्योग के तौर पर उभरा है। आतंकवाद को अलग-अलग स्तर पर फैलाकर विकसित देश इससे निपटने के लिए हथियार बेचते हैं और इसके जरिये अकूत सम्पत्ति जमा करते हैं। 
हिंसा एवं अशांति विश्व की एक ज्वलन्त समस्या है। अहिंसा एवं शांति ही इस समस्या का समाधान है। भारतीय संस्कृति के घटक तत्वों में अहिंसा भी एक है। यहां सभी धर्मों के साधु-संन्यासी अहिंसा का उपदेश देते रहे हैं। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया में विश्व शांति एवं अहिंसा की स्थापना के लिये प्रयत्नशील हैं। समूची दुनिया भारत की ओर आशाभरी नज़रों से देख रही है कि एक बार फिर शांति एवं अहिंसा का उजाला भारत करे। कुछ लोग कह सकते हैं कि एक दिन शांति एवं अहिंसा दिवस मना भी लिया तो क्या हुआ लेकिन शांति एवं अहिंसा दिवस बनाने की बहुत सार्थकता है, बड़ी उपयोगिता है। इससे अंतर-वृत्तियां शुद्ध होंगी, अंतरमन से अहिंसा-शांति को अपनाने की आवाज़ उठेगी और हिंसा व अशांति में लिप्त मानवीय वृत्तियों का शमन होगा। मो. 98110-51133