सेना के ‘उड़ते ताबूतों’ को रिटायर किया जाना चाहिए

अरुणाचल प्रदेश में तवांग के निकट विगत 4 अक्तूबर, को चीता (एरोस्पेटियल एसए-315 बी लामा) हैलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें अनुभवी हैलीकाप्टर इंस्ट्रक्टर लेफ्टिनेंट कर्नल सौरभ यादव की मौत हो गई जबकि उनके को-पायलट गंभीर चोटिल अवस्था में अस्पताल में भर्ती हैं। इस दुर्घटना के कारणों की जांच चल रही है, लेकिन प्रारम्भिक रिपोर्ट्स से लिगेसी प्लेटफार्म में इंजन फेल होने के संकेत मिलते हैं। बहरहाल, यह पहला अवसर नहीं है जब कोई सैन्य पायलट दुश्मन से लड़ता हुआ शहीद नहीं हुआ है और न ही अपनी गलती से हुई मृत्यु है बल्कि पुराने, आउट-ऑफ-डेट हो चुके चीता व चेतक हेलीकाप्टर्स के इंजनों में खराबी आ जाने की वजह से उसका असमय निधन हुआ है। 
इन दोनों हेलीकाप्टर्स के बार-बार दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण 2017 से अब तक 31 युवा सैन्य पायलट अपनी जानें गंवा चुके हैं। गौरतलब है कि दोनों चीता व चेतक हेलीकाप्टर्स को सेना के तीनों अंगों—थल सेना, नौ सेना व वायुसेना में 1950 के दशक के आखिर और 1960 के दशक के शुरू में शामिल किया गया था। लगभग छह दशक पुराने कई  हैलीकाप्टर्स पिछले तीन दशक के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, जिनमें 300 से अधिक सैन्य पायलटों की मौत हो चुकी है। इसलिए सरकार से इन्हें रिटायर करने का आग्रह निरन्तर किया जाता रहा है। रक्षा मंत्रालय ने इस संदर्भ में आश्वासन भी दिए हैं और एक याचिका भी दायर की गई है, लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है, जबकि दुर्घटनाओं व मौतों का सिलसिला बदस्तूर जारी है जो कि चिंताजनक है। अब आर्मी वाईव्ज़ के एक ग्रुप ने प्रधानमंत्री को इस संबंध में एक बड़ा पत्र लिखा है।
इस पत्र में 2017 से अब तक 31 सैन्य पायलटों की चीता व चेतक की दुर्घटना में मौतों का दावा करते हुए प्रधानमंत्री से कहा गया है कि ‘फ्लाइंग कोफिं स’ (उड़ते ताबूतों) बन चुके इन छह दशक पुराने दोनों हैलीकाप्टर्स, जो अब भी तीनों सेवाओं के रोटरी-विंग की रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं, को ऑपरेट कराकर क्या देश के सैनिकों को सुरक्षित रखना संभव है? यह पत्र प्रधानमंत्री को मीनल वाघ भोसले ने ई-मेल किया है जोकि उक्त ग्रुप की संस्थापक हैं। इस ग्रुप में अधिकतर आर्मी एविएशन कोर (एएसी) में कार्य कर रहे पायलट्स व इंजीनियर्स की पत्नियां हैं। आउटडेटेड चीता व चेतक (एरोस्पेटियल एलोयूटे 3) को ऑपरेट व मेनटेन करने की ज़िम्मेदारी एएसी की है। पत्र में कहा गया है कि अपनी आज़ादी के 75वें वर्ष बाद भी भारत पुराने व तकनीकी दृष्टि से अपर्याप्त हैलीकाप्टरों को ऑपरेट कराकर अपने सैनिकों को ‘कुर्बान’ कर रहा है।  ध्यान रहे कि 3 फरवरी 2020 को भी जम्मू कश्मीर के रासी जिले में टेक्निकल स्नैग के कारण भारतीय सेना का चेतक हेलीकाप्टर क्रैश हो गया था। 
नासिक की रहने वाली वकील मीनल वाघ भोसले का कहना है, ‘एएसी व भारतीय वायु सेना के पास ऐसा कोई कारण नहीं है कि लगभग 60 वर्ष बाद भी इन हैलीकाप्टर्स को ऑपरेट करना जारी रखा जाये।’ भोसले ने 2014 में अदालत में एक याचिका दायर की थी कि पुराने पड़ चुके चीता व चेतक हेलीकाप्टर्स को आपदा प्रबंधन मिशनों व ऊंचे क्षेत्रों जैसे सियाचिन में अभी तक क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है? यह पहला अवसर था जब सेवारत सैन्य अधिकारियों की पत्नियों ने ‘भारत के सच्चे हीरोस की सुरक्षा’ को लेकर अदालत में दस्तक दी थी। आउटडेटेड चेतक व चीता हेलीकाप्टर्स के लगातार क्रैश होने से युवा एएसी अधिकारियों की मौतों से दुखी होकर भोसले ने उसी वर्ष आर्मी वाइव्स एजिटेशन ग्रुप की स्थापना की थी। स्थापना के कुछ समय बाद यह ग्रुप तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मिला और उनसे दोनों आउटडेटेड एलयूएच को रिटायर करने का आग्रह किया, क्योंकि इनमें 1950 व 1960 के दशकों की टेक्नोलॉजी का प्रयोग हुआ है, जो अब किसी काम की नहीं। तब इस ग्रुप ने पर्रिकर को बताया था कि पिछले तीन दशकों के दौरान 191 चेतक व चीता हेलीकाप्टर्स क्रैश हुए हैं, जिनमें 294 पायलटों की मौत हुई है। ये दुर्घटनाएं अधिकतर हिमालय में हुईं जहां दोनों रोटरी एयरक्राफ्टस पाकिस्तान व चीन से लगी सीमाओं पर तैनात आर्मी फ ार्मेशंस की ‘जीवन रेखा’ है।ं ये सप्लाई पहुंचाते हैं और आम तौर से खराब रहने वाले मौसम में बचाव व राहत कार्य करते हैं।
पर्रिकर ने ‘संयम व हमदर्दी’ से ग्रुप की शिकायतों को सुना था और आश्वासन दिया था कि चेतक व चीता की जगह आधुनिक हेलीकाप्टर लाना रक्षा मंत्रालय की वरीयता सूची पर है। एक पूर्व सेना प्रमुख ने भी ऐसा ही आश्वासन दिया था, यह भोसले का कहना है लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है। आज भी तीनों सेनाओं में लगभग 187 चेतक व तकरीबन 200 चीता ऑपरेट कर रहे हैं। अब इन पुराने पड़ चुके हेलीकाप्टरों को टैक्निकली स्पोर्ट, रिपेयर व ओवरहाल करना भी निरन्तर समस्या बनता जा रहा है। ये दोनों हेलीकाप्टर एक इंजन वाले हैं। चेतक को 1962 से व चीता को 1977 से हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) लाइसेंस-बिल्ट कर रहा है। चेतक व चीता हेलीकाप्टर्स का इस्तेमाल अधिकतर आईएएफ  और एएसी करते हैं। एएसी का गठन 1986 में हुआ था और अनुमान यह है कि यह 60 चेतक व 120 चीता का इस्तेमाल सैनिकों व सामान को ट्रांसपोर्ट करने, कैजुअल्टी इवेक्यूएशन, तलाश व राहत, एरियल सर्वे व पेट्रोलिंग, ऑफ-शोर व अंडर-स्लंग मिलिट्री ऑपरेशंस आदि में करता है। दो टन के सात सीट वाले एलोयूटे 3 सबसे पहले फ्रांस से आयात किये गये थे, फि इन्हें चेतक नाम देकर आईएएफ  सेवा में 1962 में शामिल कर दिया गया। 
टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के बाद इनका लाइसेंस-बिल्ट (निर्माण) एचएएल करने लगा, जिसने चेतक की आखिरी डिलीवरी आईएएफ को 2021 में की थी। एचएएल की वेबसाइट के अनुसार उसने 350 से अधिक चेतक सीरीज बिल्ट किये हैं, जिनमें से 85 भारतीय नेवी के लिए थे, जो अब भी उनमें से लगभग 60 ऑपरेट करती है। फ्रांस के ही दो टन के पांच सीट वाले एरोस्पेटियल एसए -315 बी लामा हेलीकाप्टर को चीता के नाम से एचएएल 1970 से लाइसेंस-बिल्ट कर रहा है। अब एचएएल चेतक व चीता की जगह 3.15 टन का देशज हैलीकाप्टर बनाने में लगा हुआ है, जिसमें उसके अनुसार 10 वर्ष का समय लगेगा। तब तक ‘उड़ते ताबूतों’ को ऑपरेट करना कोई समझदारी नहीं है, उनकी जगह कोई अन्य आधुनिक विकल्प तलाश किया जाना चाहिए और चेतक व चीता को रिटायर कर दिया जाना चाहिए।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर