गांगुली को भाजपा में शामिल न होना भारी पड़ा! 

भातीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानि बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली की छुट्टी हो गई है। भारतीय क्रिकेट टीम के सर्वकालिक महान कप्तान सौरव गांगुली अब बीसीसीआई के अध्यक्ष नहीं रहेंगे। उनकी जगह कर्नाटक क्रिकेट बोर्ड से जुड़े रोजर बिन्नी को अध्यक्ष बनाया जाएगा। गौरतलब है कि कर्नाटक में अगले साल विधानसभा का चुनाव होने वाला है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह सचिव बने रहेंगे। बहरहाल बीसीसीआई गांगुली की विदाई का मामला हैरान करने वाला है। पिछले महीने ही बीसीसीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस आर.एम. लोढा कमेटी की सिफारिशों के अमल में छूट दी थी और कहा था कि दो लगातार कार्यकाल के बाद भी बीसीसीआई के पदाधिकारी पद पर बने रह सकते हैं। 
बीसीसीआई ने यह अपील सौरव गांगुली और जय शाह दोनों के लिए की थी क्योंकि गांगुली बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन में और शाह गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन मे पदाधिकारी थे और वहीं से बीसीसीआई के पदाधिकारी बने थे। अब लग रहा है कि बीसीसीआई की अपील सिर्फ  जय शाह के लिए थी। ऐसा लग रहा है कि गांगुली का भाजपा में शामिल नहीं होना उन्हें भारी पड़ गया। वह न तो बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे और न आईसीसी के अध्यक्ष बन पाए। तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के नेताओं ने इसे मुद्दा बनाया है। गांगुली को आईपीएल का चेयरमैन बनने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। आगे जो हो लेकिन यह तय हो गया कि अब बीसीसीआई का चेहरा जय शाह होंगे, पहले गांगुली थे। 
कर्नाटक को लेकर चिंतित है भाजपा 
अब यह तो लगभग तय हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक में मुख्यमंत्री नहीं बदलेगी। जिस तरह से उत्तराखंड में चुनाव से ऐन पहले या गुजरात में एक साल पहले मुख्यमंत्री बदला गया, उस तरह से कर्नाटक में बदलाव नहीं होगा। पार्टी ने लिंगायत नेता के तौर पर बसवराज बोम्मई को बीएस येदियुरप्पा की जगह मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन एक साल के दौरान उनके प्रदर्शन से पार्टी खुश नहीं है।  अब चूंकि चुनाव में छह महीने रह गए हैं, इसलिए उनको हटाया नहीं जाएगा। येदियुरप्पा का भी उनके पर भरोसा है, लेकिन भाजपा राज्य में चुनावी संभावना को लेकर चिंतित है। हिजाब, हलाल मीट जैसे अनेक भावनात्मक मुद्दों को हवा देने के बावजूद भाजपा चुनावी नतीजों को लेकर आश्वस्त नहीं है। असल में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को कर्नाटक में जिस तरह का समर्थन मिला है, उसने भाजपा नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है। इसलिए कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री भले ही नहीं बदला जाएगा लेकिन मंत्रिमंडल में फेरबदल और प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव हो सकता है। 
येदियुरप्पा को पार्टी के संसदीय बोर्ड में शामिल करके भाजपा ने पहले ही उनकी नाराजगी दूर कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पिछली कर्नाटक यात्रा में उनको जितनी प्राथमिकता दी थी, उससे यही संदेश गया है कि पार्टी ने उनको नज़रअंदाज़ नहीं किया है। माना जा रहा है कि राज्य में पार्टी का नया अध्यक्ष उनकी पसंद का ही बनेगा और प्रदेश कमेटी भी उनके हिसाब से बनाई जाएगी। 
लालू परिवार की फिर घेरेबंदी 
बिहार में जनता दल (यू) के भाजपा से अलग होकर महागठबंधन में शामिल होने और सरकार बनाने के साथ ही एक बार फिर केंद्रीय एजेंसियां लालू प्रसाद के परिवार की घेरेबंदी में जुट गई हैं। चारा घोटाले में लालू प्रसाद की मुश्किलें समाप्त होते दिख रही थीं तो अब ज़मीन के बदले नौकरी के कथित घोटाले में पूरे परिवार को उलझा दिया गया है। आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में भी परिवार के लगभग सभी सदस्य लपेटे में हैं। ताजा मामला ज़मीन के बदले नौकरी का है, जो लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहने के समय का यानी 2009 से पहले का है। केंद्रीय एजेंसियों ने डेढ़ दशक बाद इस मामले को खोला है। सीबीआई ने इस साल मई मेें मुकद्दमा दर्ज किया था। उसके बाद से इसमें करीब डेढ़ दर्जन लोगों के नाम आ चुके हैं। रेलवे के कई अधिकारियों के साथ-साथ लालू प्रसाद, राबड़ी देवी, मीसा भारती और हिमा यादव का नाम भी इसमें है। इसी मामले में लालू प्रसाद के करीबी सहयोगी रहे भोला यादव को गिरफ्तार किया जा चुका है और तेजस्वी यादव के करीबी सहयोगी संजय यादव से सीबीआई पूछताछ कर रही है। रेलवे से ही जुड़ी कम्पनी आईआरसीटीसी के एक मामले में तेजस्वी पर भी तलवार लटक रही है। चूंकि इस मामले में एक आरोपी को गिरफ्तार किया जा चुका है इसलिए स्वाभाविक रूप से बाकी आरोपियों पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक गई है। 
हारी हुई 144 सीटों पर भाजपा की तैयारी
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा जिन सीटों पर हारी थी, उन पर पार्टी ने 2024 के लिए दूसरे चरण की तैयारी शुरू कर दी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 144 सीटों पर हारी थी। अगले चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में उन 144 सीटों पर पहले चरण की तैयारी के तहत केंद्रीय मंत्रियों को भेजा गया था। हर केंद्रीय मंत्री के के पास तीन-चार सीटों का जिम्मा था। पिछले महीने केंद्रीय मंत्रियों ने इन सीटों के बारे में अपनी रिपोर्ट दी। सितम्बर में हुई बैठक में पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों शामिल हुए थे। उन्होंने केंद्रीय मंत्रियों से रिपोर्ट ली और उनको सख्त हिदायत के साथ इन सीटों पर काम करने की ज़िम्मेदारी दी गई। अब उन 144 सीटों पर भाजपा की तैयारियों का दूसरा चरण शुरू हो गया है। पार्टी ने इनमें से आधी सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। इनमें से जीती जा सकने वाली सीटों की पहचान की गई है। ऐसी 40 सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियां होंगी जो चुनाव से एक साल पहले शुरू हो जाएंगी। बाकी सीटों पर अमित शाह और जे.पी. नड्डा की रैलियां होंगी। पिछली बार हारी हुई सीटों में से आसान सीटों पर बड़ी केंद्रीय योजनाओं की घोषणा होगी और साथ ही प्रधानमंत्री के हाथों शिलान्यास का कार्यक्रम होगा। पार्टी इन सीटों पर उम्मीदवारों की छंटनी भी कर रही है।