हिन्दी में मैडीकल की पढ़ाई सोच सही है, भले अभी कुछ दिक्कतें हों...!!

हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं में मैडीकल तथा इंजीनियरिंग की पढ़ाई आरंभ होने से आशा जगती है कि एक दिन अपना देश मैडीकल, कानून वगैरह की पढ़ाई अपनी मातृ भाषा में करवाने वाला देश बन कर गर्व करेगा। भले ही इस आरंभ की दशा कुछ भी हो लेकिन दिशा सही है। यह अलग तथ्य है कि यह शुरुआत कई सवालों को भी जन्म देती है जिनका जवाब मिलना ज़रूरी है। 
सामयिक और कुछ सांदर्भिक सवालों, शंकाओं, समस्याओं को फिलवक्त परे रख दिया जाए तो मैडीकल या इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में करवाने की आलोचना अतार्किक ही लगती है। यह आरोप अनर्गल और निराधार हैं कि इससे चिकित्सा शिक्षा का स्तर गिर जायेगा, मैडीकल कॉलेजों से नीम हकीम, झोलाछाप डॉक्टर ज्यादा निकलेंगे। इस कदम में राजनीति देखना स्वाभाविक है, यह कोई बुरी बात भी नहीं। सरकारें सियासी फायदे के बिना कोई काम शायद ही करती हों। बहुत संभव है कि इससे केंद्र सरकार या भाजपा को राजनीतिक लाभ मिले मगर इससे इतर देशहित में इसका दूरगामी सकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। ऐसे में इस स्तर पर और इस तरीके का लचर विरोध विपक्षियों की फजीहत ही कराएगा, तय है। बेहतर होगा कि इसे महज इवेंट समझ इस कदम का उपहास उड़ाने वाले इससे उठने वाले प्रश्नों और परेशानियों को गहराई से जानें और उसके अनुरूप कुछ मुश्किल सवाल लेकर सरकार के सामने आयें, सुतार्किक तरीके से अपनी बात रखें कि मातृ भाषा के जरिये तकनीक, विज्ञान, अभियांत्रिकी, चिकित्सा तथा विधि विषयक शिक्षण के इस अभियान में कहां कौन सी कमियां हैं।
सैद्धांतिक तौर पर इस अवधारणा में वे खोट ढूंढें, इसके नुकसान बताएं। उन्हें चाहिये कि वे इसके व्यवहारगत पहलुओं की त्रुटियों को उजागर करें। यह सरकारी नीति, कार्यक्रम के क्रियान्वयन और उसमें सुधार के लिये तो श्रेयस्कर होगा ही, साथ ही उनका विरोध भी सकारात्मक और जनता की समझ में आने वाला सुतार्किक होगा। इसके लिये उन्हें पर्याप्त शोध और श्रम करना होगा जो शायद उन्हें गवारा नहीं। इस सैद्धांतिक तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि मातृभाषा  शिक्षा का सर्वोत्कृष्ट माध्यम है वह चाहे मैडीकल, इंजीनियरिंग, तकनीक, विज्ञान इत्यादि ही की क्यों न हो। कुछ बरस पहले मध्यपूर्व के एक मैडीकल कॉलेज में प्रथम वर्ष के चिकित्सा विज्ञान के छात्रों को इस आशय का प्रार्थना पत्र अंग्रेज़ी में देना पड़ा कि उनकी मैडीकल की पढ़ाई अरबी भाषा के माध्यम से करवाई जाए। वहीं एक शोध के दौरान चिकित्सा विज्ञान के 1546 अरबी भाषी छात्र जो विभिन्न देशों से थे, उनका एक इम्तिहान लिया गया। उन्हें तीन अनुच्छेदों, प्रश्नों का एक बहुविकल्पीय उत्तरों वाला प्रश्नपत्र दिया गया। यह जांचा गया कि प्रश्नों को समझने, उन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने और हल करने में उन्हें कितना समय लगा। इस ऑनलाइन टेस्ट का नतीजा यह निकला कि जो सवाल अरबी भाषा में दिया गया था,उनके प्रति सबसे तेज प्रतिक्त्रिया आयी। दूसरे नंबर पर अंग्रेजी का सवाल था और तीसरा नंबर उस सवाल का था जो हाइब्रिड यानी सरल अरबी और अंग्रेजी से मिलीजुली भाषा में पूछा गया था।
इससे साफ  है कि हम जिस भाषा को जानते हैं, उसमें तकनीकी और चिकित्सा जैसे विषय की पढ़ाई करें तो उसे सहजता से समझ सकते हैं। इस बात में भी कोई शक नहीं कि जिन छात्रों ने मैडीकल प्रवेश से पूर्व हिंदी माध्यम से पढ़ाई की है, उनको इससे विषय और उसकी अवधारणाओं को समझने में सहायता मिलेगी, उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। चिकित्सक बनकर निकलेंगे तो रोगियों को उनकी भाषा में रोग और चिकित्सा को बेहतर तरीके से समझा सकेंगे और उनके द्वारा अपनी भाषा में व्यक्त लक्षणों, दशाओं को भलीभांति समझकर रोग का सटीक निदान कर सकेंगे। रोगी-चिकित्सक के संबंधों के बीच भरोसा बढ़ेगा, सुधार आयेगा। वैज्ञानिक अध्ययन यह तस्दीक करता है कि मातृभाषा में शिक्षा से बौद्धिक क्षमता निखरती है और अध्यन के परिणाम बेहतर होते हैं। 
दुनियाभर में अनेक देश अपनी मातृभाषा में मैडीकल की पढ़ाई करवाते हैं। चीन और रूस जैसे बड़े देश हों या अफगानिस्तान जैसा अपेक्षाकृत छोटा देश। दर्जनों देश अंग्रेजी के साथ साथ अपनी मातृभाषा के जरिये मैडीकल की पढ़ाई करवा रहे हैं और संसार के उन दर्जनभर चुनिंदा देशों में शामिल हैं जिनके बारे में माना जाता है कि वहां मैडीकल और मेडिसिन की बेहतर पढ़ाई होती है। फिर हिंदी में क्या बुराई है या क्षेत्रीय भाषाओं की तरफ क्यों न जाय जाए। भाषा का बौद्धिक क्षमता से विशेष अंतर्संबंध नहीं है। मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने से शिक्षार्थी में बोलने, समझने, पढ़ने और लिखने के चारों कौशलों के विकास होता है। मातृभाषा संप्रेषण प्रक्त्रिया को सुदृढ़, व्यापक और सशक्त बनाती है और वह व्यक्ति को अपने भाषायी समाज के अनेक सामाजिक संदर्भों से जोड़ती भी है। मातृभाषा विज्ञान, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी, तकनीक, विधि तथा भाषा विज्ञान आदि विषयों का ज्ञान सरलता एवं सहजता से प्राप्त करने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभा सकती है। भले ही मुख्य परीक्षा किसी नियत निर्धारित भाषा में हो।
अपने ज्ञान को समझने और उन्नत करने के लिए जानकारियां क्षेत्रीय भाषा में अवश्य उपलब्ध होनी चाहिएं ताकि छात्र जटिल विषयों को भी आसानी से समझ सकें। आज जब यह शुरुआत की गई है तो बेशक इसमें आरंभिक कमजोरियां होंगी, पर कहीं न कहीं से शुरुआत तो करनी होगी। ऐसे ही आरंभ के बाद हम यह कल्पना साकार कर सकते हैं कि एक दिन हम भी जापान, जर्मनी, रूस, फ्रांस वगैरह की तरह गर्व से कह सकेंगे कि हम अंग्रेजी नहीं अपनी भाषा में चिकित्सा विज्ञान पढ़ाते हैं और आशा कर सकते हैं कि उसके बाद विषय संबंधी शोध, समझ, संवाद- संचार में भी गुणात्मक बदलाव आयेगा। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर