ड्रोन के क्षेत्र में एक नई क्रांति का आ़गाज़

इन्सान को लेकर उड़ने वाला पहला स्वदेशी भारतीय ड्रोन ‘वरुण’ अस्तित्व में आ गया है। बिना पायलट के उड़ान भरने वाला यह ड्रोन जल्द ही भारतीय नौसेना का हिस्सा बन जाएगा। परीक्षणों में खरा उतरने के बाद इसे समुद्र में तैरते युद्धपोतों पर तैनात किया जाएगा। इसे स्टार्टअप ‘सागर डिफेंस’ ने निर्मित किया है। इन्सान को लादकर आवागमन करने वाला यह ड्रोन रिमोट से संचालित होगा। इसमें चार ऑटो मोड हैं, जो कुछ रोटर खराब होने की हालात में भी निरन्तर उड़ते रहने की क्षमता बनाए रखते हैं। ज़मीन पर इसका परीक्षण हो चुका है। अगले तीन महीने में इसका परीक्षण समुद्री सतह और आकाश पर होगा। इसकी सौ किलो तक का भार ढोने की क्षमता है। वरुण समुद्र में एक जहाज़ से दूसरे जहाज तक माल ढुलाई का काम भी करेगा।   
ड्रोन देश के लिए बहुआयामी सफलता का उपयोगी उपकरण बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत द्रोण महोत्सव उद्घाटन के दौरान ड्रोन उड़ाने के बाद कहा था कि ‘मेरा सपना है कि देश के हर व्यक्ति के हाथ में ड्रोन हो, स्मार्ट फोन हो और हर घर में समृद्धि की बहार हो। ड्रोन तकनीक कृषि क्षेत्र को नए पंख देगी। इससे छोटे किसानों को ताकत मिलेगी और उनकी तरक्की सुनिश्चित होगी। ड्रोन से पता चलेगा कि किस ज़मीन पर कितनी और कौन-सी खाद डालनी है, मिट्टी में किस चीज की कमी है और कितनी सिंचाई करनी है। अभी तक ये सारे कार्य अंदाज़े से होते थे, जो कम पैदावार और फसल की बर्बादी का कारण बन रहे थे।’ वाकई देश में ड्रोन क्रांति रक्षा क्षेत्र के बाद अब कृषि और नौसेना के लिए भी उपयोगी बन जाएगी। हालांकि ड्रोन रक्षा क्षेत्र में पहले से ही अनेक भूमिकाएं निभा रहा है।   
भारत सरकार ने 15 सितम्बर, 2020 को ड्रोन के इस्तेमाल संबंधी नियमों में ढील दी थी। लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रिया को आसान बनाया था। साथ ही भारी पेलोड की अनुमति भी दी थी, ताकि ड्रोन को मानव रहित फ्लाईंग टैक्सियों के रूप में प्रयोग में लाया जा सके। इस नाते भारत दुनिया के सबसे बड़े ब्रांड्स को भारत में अपने उत्पाद बनाने और फिर उन्हें दुनिया में निर्यात करने के लिए आकर्षित कर सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार ने भारत में ड्रोन और उसके कम्पोनेंट (यौगिक) निर्माण के लिए कम्पनियों को पीएलआई योजनाओं के तहत अगले तीन साल के लिए 120 करोड़ रुपए का प्रोत्साहन देने की घोषणा की है। तकनीकी रूप से दक्ष भारतीय युवाओं को भी र्स्टाटअप के तहत यह लाभ मिल रहा है।  
इस नाते सुरक्षा और कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष विज्ञान की अहम् भागीदारी के लिए दो नवीन नीतियां भी अस्तित्व में लाई गई हैं। इस हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अंतरिक्ष संगठन यानी इंडियन स्पेस एसोसिएशन (आईएसपीए) का शुभारंभ किया था। इसके तहत स्पेसकॉम (अंतरिक्ष श्रेणी) और रिमोट सेंसिंग (सुदूर संवेदन) नीतियां बनाई गई हैं। इन नीतियों से स्पेस और रिमोट क्षेत्रों में निजी और सरकारी भागीदारी के द्वार खुल गए हैं। वर्तमान में ये दोनों उद्यम ऐसे माध्यम हैं, जिनमें सबसे ज्यादा रोज़गार के अवसर हैं। आजकल घरेलू उपकरण, रक्षा संबंधी, कृषि संचार व दूरसंचार सुविधाएं, हथियार और अंतरिक्ष उपग्रहों से लेकर रॉकेट और मिसाइल ऐसी ही तकनीक से संचालित हैं, जो रिमोट से नियंत्रित होते हैं। चंद्र, मंगल और गगन यान भी इन्हीं प्रणालियों से संचालित होते हैं। भविष्य में अंतरिक्ष-यात्रा के अवसर भी बढ़ रहे हैं। 
भारत में इस अवसर को बढ़ावा देने के लिए निजी स्तर पर बड़ी मात्रा में निवेश की ज़रूरत पड़ेगी। इस हेतु नीतियों में बदलाव की आवश्यकता लम्बे समय से अनुभव की जा रही थी। 20 जुलाई, 2021 को ब्लू ओरिजन कम्पनी ने न्यू शेफर्ड कैप्सूल से चार यात्रियों को अंतरिक्ष की यात्रा कराई थी। ऐसी यात्राओं का सिलसिला आम लोगों के लिए कीमत वसूल कर बड़ी कमाई का माध्यम बनने जा रहा है। 
घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के नजरिये से सैंकड़ों रक्षा उपकरणों के आयात पर पहले से ही रोक लगी हुई है। आयात किए जाने वाले उपकरणों, हथियारों, मिसाइलों, पनडुब्बियों, द्रोण और हेलिकॉप्टरों का निर्माण अब भारत में हो रहा है। इस मकसद की पूर्ति के लिए आगामी 5 से 7 साल में घरेलू रक्षा उद्योग को करीब चार लाख करोड़ रुपये के ठेके मिलेंगे। प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत-मंत्र के आह्वान के तहत रक्षा मंत्रालय अब रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में स्वदेशी निर्माताओं को बड़ा प्रोत्साहन देने की तैयारी में आ गया है। दरअसल अभी तक देश तात्कालिक रक्षा खरीद के उपायों में ही लगा रहा है, लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में दीर्घकालिक रणनीति के अंतर्गत स्वदेशी रक्षा उपाय इसलिए ज़रूरी हैं, क्योंकि एक समय रूस ने हमें क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया था। दूसरी तरफ  धनुष तोप के लिए चीन से जो कल-पुर्जे खरीदे थे, वे परीक्षण के दौरान ही नष्ट हो गए थे। इधर चाइनीज ड्रोन जासूसी करते हुए भी निशाना बनाए गए हैं। अमरीका और चीन के बीच इंटरनेट की दुनिया पर नियंत्रण का संघर्ष कटु बना हुआ है। चीनी हैकर लगातार अमरीकी व्यावसायिक संस्थानों को निशाना बना रहे हैं। 
पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान से युद्ध की स्थिति बनी होने के चलते ऐसा अनुमान है कि भारत को 2025 तक रक्षा सामग्री के निर्माण व खरीद में 1.75 लाख करोड़ रुपये या 25 अरब डॉलर खर्च करना पड़ेगा। वैसे भी भारत शीर्ष वैश्विक रक्षा सामग्री उत्पादन कम्पनियों के लिए सबसे आकर्षक बाज़ारों में से एक है। भारत पिछले आठ वर्षों में सैन्य हार्डवेयर के आयातकों में शामिल है। इन रक्षा ज़रूरतों की पूर्ति के लिए अमरीका, रूस, फ्रांस, चीन और इज़राइल इत्यादि देशों पर भारत की निर्भरता बनी हुई है, जिसमें उल्लेखनीय कमी आएगी। 2015 से 2019 के बीच सऊदी अरब के बाद भारत दूसरे नम्बर पर हथियारों की खरीद करता है। अतएव अच्छा है कि भारत ड्रोन निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाकर नई उपलब्धियां हासिल करने में सफलता प्राप्त कर रहा है। इससे भारतीय कम्पनियों की हौसला अफजाई हो रही है। हमारे नवोन्मेशी वैज्ञानिक व इंजीनियरों को राष्ट्र के लिए कुछ अनूठा कर डालने का गौरव हासिल हो रहा है। अब तक देश में व्यक्तिगत उपयोग वाली पिस्तौलें और सेना के लिए राइफलें बनती हैं। हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने हल्के लड़ाकू विमान तेजस का निर्माण भी किया है। टाटा, महिंद्रा  और लार्सन एंड टुब्रो कम्पनियां मध्यम मारक क्षमता वाली राइफलें बनाती हैं। 
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