पीड़ादायक दुर्घटना 

गुजरात में मोरबी शहर में मच्छू नदी पर लगभग 143 वर्ष पूर्व बने लोगों के लिए पैदल चलने वाले पुल पर घटित हुई भयावह एवं पीड़ादायक दुर्घटना ने एक बार तो सभी को हिला कर रख दिया है। अचानक घटित हुई इस दुर्घटना में सैंकड़ों प्राण व्यर्थ में ही चले गए हैं। नि:संदेह यह दुर्घटना स्थानीय प्रशासन की लापरवाही के कारण ही घटित हुई है। कई बार पहले भी पुल टूटने की घटनाएं हुई हैं परन्तु वे अधिकतर रेलवे पुल होते थे जो प्राय: पुराने होते थे तथा जिनकी मुरम्मत लम्बी अवधि से नहीं की गई होती थी। तीव्रगामी रेलगाड़ियों के निरन्तर गुज़रने से इनकी दुरावस्था की ओर ध्यान न दिये जाने के कारण ऐसी भयावह दुर्घटनाएं होती थीं। लगभग 20 वर्ष पूर्व केरल में कादालुंडी नदी का पुल टूटने से 57 लोगों की मृत्यु हो गई थी। वर्ष 2002 में बिहार में रफीगंज रेलवे पुल के टूटने से 130 लोग मारे गये थे तथा वर्ष 2005 में आंध्र प्रदेश में एक पुल पर ऐसी ही दुर्घटना होने से 114 लोगों की जान चली गई थी। 
प्राय: ऐसी दुर्घटनाओं के बाद कमेटियां बिठाई जाती हैं, इनके कारण ढूंढे जाते हैं परन्तु फिर क्या कार्रवाई होती है, इसका कम ही किसी को पता चलता है परन्तु हमारा प्रभाव यह है कि ऐसा कुछ रेलवे प्रशासन की लापरवाही के कारण ही घटित होता है। जहां तक गुजरात के मोरबी में पुल की दुर्घटना की बात है, यह तारों का बना हुआ पुल था। लगभग 150 वर्ष पूर्व इसे मोरबी के राजा ने बनाया था। इसके बाद बहुत पुराना हो जाने के कारण प्राय: इसकी मुरम्मत की जाती रही है। इस बार भी लगभग 6 मास तक इस पुल को बंद रखा गया तथा इसकी मुरम्मत करवाई गई। अब यह बात सामने आई है कि यह मुरम्मत इंजीनियरिंग की कुशलता रखने वाली किसी विशेषज्ञ कम्पनी से नहीं अपितु एक ऐसी कम्पनी से करवाई गई जो घड़ियां एवं बल्ब बनाने वाली कम्पनी है जिसके एलईडी बल्ब बड़ी संख्या में बिकते हैं। इसके अतिरिक्त उसकी ओर से कैल्कुलेटरों एवं अन्य घरेलू सामान का भी निर्माण किया जाता है। ऐसी कम्पनी को पुल की मुरम्मत एवं रख-रखाव की ज़िम्मेदारी देना एक बड़ा अपराध ही कहा जा सकता है। नगर पालिका के  अनुसार मुरम्मत के बाद पुल की मज़बूती से संबंध में जांच के बिना ही इसे खोल दिया गया तथा इस पर आने-जाने वालों पर टिकट भी लगा दी गईर्, परन्तु इस झूलते पुल पर लगभग एक सौ व्यक्ति ही आ-जा सकते थे। कम्पनी ने टिकटों के लालच में इस पर लगभग 400 लोगों को भेज दिया तथा उन्हें किसी प्रकार से सचेत करने हेतु प्रहरी भी नियुक्त नहीं किये गये। ऐसे समाचार भी मिले हैं कि दुर्घटना घटित होने से पूर्व कुछ लोग वहां हुड़दंग मचा रहे थे तथा तारों के साथ छेड़छाड़ भी कर रहे थे परन्तु उन्हें भी किसी ने नहीं रोका। इस पुल की लम्बाई भी इतनी भर है कि उस पर कठिनाई से ही 400 लोग खड़े हो सकते हैं जबकि इसकी भार उठाने की सामर्थ्य केवल 100 लोगों की है। ऐसी स्थिति में ऐसी दुर्घटना घटित होने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता था। 
देश भर में विभिन्न उत्सवों पर एकत्रित होती भीड़ों में भगदड़ मचने से भी ऐसी घातक दुर्घटनाएं घटित हो जाती हैं। ऐसे समय में प्रबंधकों की ओर से दिखाई गई लापरवाही ही सामने आती है। राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री सहित जहां बड़ी संख्या में लोगों की ओर से इस दुर्घटना के संबंध में दुख व्यक्त किया गया है, वहीं यह घटना देश भर में प्रत्येक स्तर पर प्रशासनों को सचेत भी करती है। अभी तो अमृतसर में एक समारोह के दौरान रेल पटरियों पर खड़े और रेलगाड़ी के नीचे आकर बड़ी संख्या में कुचले गए लोगों के भयावह घटनाक्रम को पंजाब के लोग नहीं भूले। इस दुर्घटना के संबंध में लापरवाही करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कड़े एवं समुचित दंड का भागी बनाया जाना बहुत आवश्यक है तथा भविष्य में भी प्रत्येक स्तर पर ऐसी दुर्घटनाओं के प्रति अग्रिम व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता होगी।  


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द