मतदाताओं का जागरूक होना ज़रूरी

हिमाचल प्रदेश के बाद गुजरात में विधानसभा चुनावों की तिथियां घोषित हो गई है। इस समय भिन्न-भिन्न लोक-लुभावन वायदों के साथ विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव मैदान में हैं। मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जा रही है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदाताओं का जागरूक होना भी परम आवश्यक है अन्यथा गलत हाथों में सत्ता सौंपने से सुविधाओं के स्थान पर विपदाएं  भोगनी पड़ सकती हैं। चुनाव आयोग का हर सम्भव प्रयास रहता है कि मतदाता जागरूक रहे तथा निष्पक्ष चुनाव में उसकी अहम भूमिका हो, किन्तु विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाने से परहेज नहां करते। यदि किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के पक्ष में मतदाताओं का समर्थन अधिक होता है तो मतदाताओं के विश्वास पर खरे न उतरने वाले दल चुनाव परिणामों पर ही प्रश्न खड़े कर देते हैं। यह एक गलत परम्परा को जन्म देने वाली स्थिति है। साथ ही उन हज़ारों लाखों कर्मियों का भी अपमान है, जो लम्बे समय तक चुनाव प्रक्रिया का अंग बनकर चुनाव की निष्पक्षता के प्रति समर्पित रहते हैं। 
कहना गलत न होगा कि सत्ता सुख प्राप्त करने के लिए राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में लगे लोगों के लिए मतदाता केवल भीड़ का पर्याय है, जिन्हें भ्रमित करके स्वार्थ सिद्धि करना ही उनका प्रथम और अंतिम लक्ष्य होता है। सत्ता से बाहर रहने वाले राजनीतिक दल तो आसमान से चांद सितारे तोड़ कर लाने का भी आश्वासन दे सकते हैं। मतदाताओं को लुभाने के लिए किए गए चुनावी वायदों के घोषणा-पत्र के प्रति सम्बंधित राजनीतिक दलों की जवाबदेही तय किये जाने की आवश्यकता है। जिन राजनीतिक दलों द्वारा सत्ता प्राप्त करने के उपरांत चुनावी वादों को पूरा नहां किया जाता, उनकी मान्यता रद्द की जानी चाहिए। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जाति, धर्म, वर्ग विशेष के लिए किए जाने वाले चुनावी वादे प्रतिबंधित हों। एक देश में सभी के लिए समान विधान एवं व्यवस्थाएं हों। मतदाताओं को चुनाव की गम्भीरता के प्रति सचेत किया जाना चाहिए ताकि जागरूक मतदाता राष्ट्र की समृद्धि एवं विकास के लिए अपना मत एवं समर्थन दे सकें तथा सत्ता के लिए झूठे स्वप्न दिखाने वाले तथाकथित राजनीतिक दलों को सबक सिखाने में समर्थ हो सकें।
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