अपनी भाषा से विषय को अधिक आत्मसात कर पाएंगे छात्र 

इसमें कोई शक नहीं है कि अपनी भाषा में की गयी पढ़ाई बहुत अच्छे से समझ में आती है बनिस्बत अन्य किसी भी भाषा में की गयी पढाई के। यह स्थिति तब और भी कठिन हो जाती है जब अपनी भाषा और पढ़ाई की भाषा के व्याकरण, लिपि और शब्द गठन के साथ साथ शब्दों की विनिर्मिति के अक्षरों में ज़मीन आसमान का अंतर हो या फिर उन अक्षरों से बने शब्दों के उच्चारण में स्थान स्थान पर भिन्नता हो। उदाहरण स्वरूप हम देश में शिक्षा माध्यम के रूप में सबसे अधिक प्रचलित हिंदी और अंग्रेजी को ले सकते हैं। हिन्दी की देवनागरी लिपि में हम जैसा लिखते हैं, वही पढ़ते हैं जबकि अंग्रेजी में ऐसा नहीं है। 
वर्तमान में केंद्र सरकार और कई उत्तर भारतीय प्रदेश सरकारें शिक्षा का माध्यम हिंदी करने और विशेषकर एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में करने पर विशेष बल दे रही हैं। यदि ऐसा कर दिया जाये और विशेषज्ञों के उठाये प्रश्नों और शंकाओं को ध्यान में रख कर इस प्रशंसनीय कार्य को किया जाये तो यह मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस सम्बन्ध में यह स्मरणीय है कि जब फ्रांस, यूक्रेन, रूस, चीन, जापान और उन जैसे अनेक देशों में स्थानीय भाषा में डाक्टरी की पढ़ाई कर सफलता प्राप्त की जा सकती है तो फिर भारत में यह क्यों सम्भव नहीं है। 
आज़ादी के तुरंत बाद से ही अगर शिक्षा में अंग्रेजी का वर्चस्व समाप्त कर स्थानीय भाषाओं में सभी विषयों की पढ़ाई प्रारम्भ कर दी गयी होती तो अंग्रेजी के बल पर केवल दो प्रतिशत वर्ग अट्ठानवे प्रतिशत पर अपनी दादागिरी नहीं चला रहा होता। जब यूक्र ेन में जाकर यूक्र ेनी भाषा सीख कर वहां उसी भाषा में एमबीबीएस की पढ़ाई की जा सकती है तो फिर भारत में ऐसा हिन्दी में सम्भव क्यों नहीं? यह विचारणीय प्रश्न बनता है। 
इस देश की सामान्य मानसिकता की यह विडम्बना रही है कि जनमानस ने सदैव हिंदी माध्यम के स्थान पर शिक्षा के अंग्रेजी माध्यम को अधिमान्यता दी है जिससे आज गली गली में कुकुरमुत्तों की तरह कान्वेंट और पब्लिक स्कूल उग आये हैं और विडम्बना यह भी है कि उनमें ‘एडमिशन’ की मारामारी है जबकि हिंदी मीडियम के सरकारी स्कूल बच्चों को अनेक सुविधाएं देने के बाद भी खाली पड़े हैं।  कहीं ऐसा न हो कि इस मानसिकता के चलते स्थानीय जनता हिंदी से एमबीबीएस डाक्टरों की क्षमताओं पर विश्वास ही न करे और वे अंग्रेजी माध्यम से पढ़े डाक्टरों के कम्पाउंडर बन कर ही रह जाएं।
 वैसे इसमें भी कोई शक नहीं है कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़े डाक्टर से, हिंदी माध्यम का डाक्टर अधिक निकटता से हिंदी माध्यम के मरीज का रोग पकड़ सकता है क्योंकि उसे अपनी भाषा के प्रचलित और देहाती शब्दजाल का पूर्ण ज्ञान होगा और वह सरलता से मर्ज की तह तक जा सकेगा। 
ऐसा नहीं है कि इस दिशा में पहले कभी सोचा नहीं गया या कोई प्रयास ही नहीं किया गया। माध्यम के बारे में हिंदी भाषी राज्य विशेषकर उत्तर प्रदेश इस विषय पर गंभीरता से विचार करता रहा है और उसने कुछ गम्भीर कदम भी उठाये हैं। इनमें किंग जार्ज मेडिकल कालेज के शोध (एमडी) के छात्र सूर्यकांत ने हिंदी में जब अपना शोध प्रस्तुत किया तो उनके प्रभारी ने उन्हें अंग्रेजी में लिखने पर मजबूर किया। मामला सुर्खियों में आया तो प्रदेश सरकार ने दखल दिया और शोध प्रभारी को आदेश दिया कि सूर्यकांत को हिंदी में शोध करने दिया जाये। इस परिप्रेक्ष्य में विधानसभा में एक विशेष प्रस्ताव भी पारित किया गया और डा. सूर्यकान्त ने अपना शोध ‘क्षय रोगों में सह औषधियों की भूमिका’ प्रस्तुत कर न केवल डिग्री पाई बल्कि गोल्ड मेडल भी पाया। 
अब मोदी के अनुगामियों ने अपनी भाषा में शिक्षा को मूर्त रूप देने के लिए हिंदी में एमबीबीएस की शिक्षा देने का बीड़ा उठाया तो हिंदी में पुस्तकों की कमी सामने आयी। इस कमी की प्रतिपूर्ति के लिए मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार सामने आयी और उसने एमबीबीएस कोर्स की पुस्तकें हिंदी में लिखने के लिए एक कमेटी बनायी जिसमें दो अन्य डाक्टरों सहित हिंदी शोध के ख्यातिप्राप्त उपरोक्त डा. सूर्यकांत भी सम्मिलित थे। इस कमेटी ने निर्धारित समय में एनाटोमी जैसे प्राथमिक विषय के साथ कुल तीन अति गम्भीर विषयों की हिंदी पुस्तकें प्रस्तुत कर दीं जिनका लोकार्पण अमित शाह द्वारा किया गया और शिवराजसिंह सरकार ने पढ़ाई चालू करने की घोषणा भी कर दी है।
 इन पुस्तकों में सबसे अच्छी बात यह है कि अंग्रेजी शब्दों का केवल देवनागरी में लिपि परिवर्तन किया गया है यथा ‘फेफड़ों’ को हिंदी का ‘फुफ्फुस’ न लिख कर ‘लंग्स’ ही लिखा गया है जिससे पाठ्यक्र म में सुगमता आयी है और वह बोझिल होने से बच गया है। दूसरे शब्दों में अगर कहें तो इसे आम बोलचाल की भाषा में लिप्यान्तरित किया गया है जिससे विद्यार्थियों को अंग्रेजी में लिखा सारा ज्ञान हिंदी में उपलब्ध हो जाएगा और उनमें इस कारण होने वाला ‘निम्नताबोध’ भी नहीं होगा। सोने पर सुहागा, शब्द के साथ अंग्रेजी अक्षरों में उन शब्दों की स्पेलिंग भी दी गयी है।
शिवराज सरकार यहीं बस नहीं कर रही है। वह सारे टेक्निकल विषयों को इंजीनियरिंग विषयों सहित हिंदी में पढ़ाने की व्यवस्था भी कर रही है, यह और प्रशंसनीय है। इससे इन विषयों की हिंदी में विभिन्न लेखकों की पुस्तकें प्राप्त होंगी और देश में जो जानबूझ कर इनका अभाव पैदा करने की साजिश रची गयी है, उसका निराकरण सम्भव हो सकेगा। इस कदम से एक और प्रशंसनीय कार्य यह होगा कि अन्य हिंदी भाषी प्रदेशों के साथ अन्य भाषी प्रदेश भी अपने अपने यहाँ अपनी अपनी भाषाओं में पाठ्यक्र म बनवाएंगे और उन्हें लागू करेंगे। इससे छात्रों को भी लाभ होगा। अपनी भाषा पर पूरी पकड़ होने के कारण वे पाठ्यक्र म की छोटी से छोटी बात को भी आत्मलीन और आत्मसात कर पाएंगे। उन्हें अपनी ऊर्जा अंग्रेजी पर पकड़ बनाने के लिए व्यर्थ नहीं करनी पड़ेगी।
कुल मिला कर स्थिति यह बन रही है कि अब देश अपने पैरों पर खड़ा होकर प्रगति की राह पर अपने भरोसे चलने और आत्म प्रगति करने का प्रयास कर रहा है। यह स्थिति रहते अब वह दिन दूर नहीं जब भारत से अंग्रेजी का वर्चस्व समाप्त होगा और देश का हर एक प्रदेश अपनी अपनी प्रादेशिक भाषा में प्राथमिक स्तर से उच्च शिक्षा तक समस्त टेक्नीकल और मेडिकल शिक्षा उपलब्ध कराने में सक्षम हो सकेगा। (अदिति)