शिशु मृत्यु दर में कमी आना सार्थक प्रयास 

हर साल सात नवम्बर को शिशु सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में शिशुओं की सुरक्षा से संबंधित जागरूकता फैलाना और शिशुओं की उचित देखभाल कर के उनके जीवन की रक्षा करना है। नवजात शिशुओं की उचित सुरक्षा ना हो पाने के कारण दुनिया में बहुत सारे बच्चे मौत के आगोश में चले जाते है। हमारे देश में नवजात शिशुओं की मौत की दर बहुत अधिक है। मगर अब सरकार ने इस दिशा में कई बेहतर प्रयास किये हैं जिनकी बदौलत देश में शिशु मृत्यु दर में कमी आयी है।
नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) सांख्यिकीय रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम आयु बच्चों में मृत्यु दर 2019 में प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में से 35 के मुकाबले 2020 में घटकर 32 रह गई है। सबसे अधिक गिरावट उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में दर्ज की गई है। भारत के महापंजीयक द्वारा हाल ही में जारी की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 2014 से शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), पांच वर्ष से कम उम्र के शिशुओं की मृत्यु दर (यू5एमआर) और नवजात मृत्यु दर (एनएमआर) में कमी देखी जा रही है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया के अनुसार देश 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) प्राप्त करने की दिशा में बढ़ रहा है। मांडविया ने इस उपलब्धि पर देश को बधाई देते हुए सभी स्वास्थ्यकर्मियों, सेवा से जुड़े लोगों तथा समुदाय के सदस्यों को शिशु मृत्यु दर कम करने में अथक कार्य करने के लिए धन्यवाद दिया।  केन्द्रित कार्यक्रमों, मजबूत केंद्र-राज्य साझेदारी तथा सभी स्वास्थ्यकर्मियों के समर्पण से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत शिशु मृत्यु दर के 2030 एसडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तैयार है।
रिपोर्ट के अनुसार अधिकतम शिशु मृत्यु दर मध्य प्रदेश में (43) और न्यूनतम केरल (6) में देखी गयी है। देश में यह दर 2020 में घटकर 28 हो गई है। जो 2015 में 37 थी। पिछले पांच वर्षों में नौ अंकों की गिरावट और लगभग 1.8 अंकों की वार्षिक औसत गिरावट आई है। इसमें कहा गया है इस गिरावट के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक 35 शिशुओं में से एक ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक 32 शिशुओं में से एक और शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक 52 शिशुओं में से एक की अभी भी जन्म के एक वर्ष के भीतर मृत्यु हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार देश में जन्म के समय लिंग अनुपात 2017-19 में 904 के मुकाबले 2018-20 में तीन अंक बढ़कर 907 हो गया है। केरल में जन्म के समय उच्चतम लिंगानुपात 974  है जबकि उत्तराखंड में सबसे कम 844 है।
देश में स्वास्थ्य सम्बन्धी चीजों की कमी के कारण यह समस्या और बढ़ जाती है। सरकारों ने इस समस्या से निपटने के लिए बहुत सी योजनायें लागू की हैं। मगर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी तथा जागरूकता की कमी के कारण शिशुओं की मृत्यु दर में पूर्णतया कमी नहीं आई है। उचित पोषण के अभाव में अब भी कई बच्चे दम तोड़ देते हैं। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की कमी एवं प्रशिक्षित नर्सों व दाइयों की कमी के कारण भी विभिन्न प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होती हैं।
भारत में नवजात बच्चों की मौतों के मामले सरकार के लिए बीते 75 साल बड़ी चुनौती भरे रहे हैं हालांकि इसमें लगातार कमी आ रही है। सरकार की ओर से जो डाटा जारी किया गया है उसके मुताबिक 1951 में जहां प्रति 1000 नवजात बच्चों में 146 की मौत हो जाती थी, वहीं 2022 में यह घटकर अब 28 तक आ गई है। यह आंकड़ा उन बच्चों से जुड़ा है जिनकी मौत जन्म के एक साल के अंदर कमजोर इम्यूनिटी, देख-रेख, दवाओं की कमी, वायरस से होने वाली बीमारियां और कुपोषण के चलते हो जाती है।
भारत ने पिछले पांच दशकों में भले ही चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति करते हुए शिशु मृत्यु दर पर काबू पाया है। लेकिन आज भी शिशुओं की मौत बड़ा सवाल है। वर्तमान में प्रत्येक एक हजार शिशुओं में से 28 की मृत्यु एक साल का होने से पहले ही हो जाती है। भारत के महापंजीयक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार साल 1971 में भारत की शिशु मृत्यु दर 129 थी जो साल 2020 में बड़े सुधार के साथ 28 पर आ गई है। पिछले 10 सालों में तो इस में 36 प्रतिशत का सुधार देखने को मिला है। साल 2011 में देश की शिशु मृत्यु दर 44 थी जो अब 28 पर आ गई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि देश ने चिकित्सा क्षेत्र में बहुत अधिक उन्नति की है। 
आंकड़ों के अनुसार पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्र की शिशु मृत्यु दर में सबसे अधिक सुधार हुआ है। 2011 में ग्रामीण क्षेत्र में 48 पर रहने वाली शिशु मृत्यु दर साल 2020 में 31 पर आ गई थी। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में 2011 में यह 29 पर पर रहने वाली शिशु मृत्यु दर 2020 में 19 पर आ गई थी। पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्रों की शिशु मृत्यु दर में 35 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 34 प्रतिशत की गिरावट आई है।   हम सभी को एकजुट होकर इसके लिए आगे आना होगा तब जाकर हम अपने देश के शिशुओं की सुरक्षा के मामले में अन्य देशों की तुलना में ऊपरी पायदान पर आएंगे।