मानवाधिकारों के लिए क्रांति के सृजक गुरु नानक

15वीं सदी तक निरन्तर गुलामी तथा जात-पात के आधार पर हुए विभाजन से भारतीय समाज का बुरा हाल हो गया था। कामकाजी आधार पर हुए वर्ग विभाजन को पक्का करके लोगों को ऊंची तथा निम्न जातियों में विभाजित कर दिया गया था। निम्न जातियों को अछूत कहा गया और उनका जीवन नर्क से भी बुरा बना दिया गया। समय के शासकों ने धर्म के ठेकेदारों तथा ऊंची जाति के नोताओं को खरीद, उनके हाथों ही इस विभाजन को मज़बूत करवाया। गरीब, छोटे तथा प्रताड़ित किये जा रहे लोगों के दिमाग में यह दृढ़ करवा दिया गया कि आपकी दुर्दशा आपके पिछले जन्मों में किये गये कर्मों के कारण है। अगले जन्म में भले दिन देखने के लिए ऊंची जातियों की सेवा करें, देवी-देवताओं की पूजा करें, धार्मिक तथा राजनीतिक नेताओं को परमात्म के प्रतिनिधि मान, उनकी प्रत्येक ज़्यादती को सहन करें।
समय के राजनीतिक तथा धार्मिक नेताओं ने नीच तथा अछूत समझे जाते लोगों को शिक्षा की प्राप्ति, अच्छे कपड़े पहनने  तथा धार्मिक स्थान पर जाने की सख्त मनाही की हुई थी। हमलावरों के बार-बार हमले तथा विदेशियों की गुलामी ने लोगों के मन में स्वाभिमान को समाप्त कर दिया था। अपने स्वाभिमान तथा अपने अधिकारों की रक्षा करना तो वे भूल ही गये थे। हमलावर आते, अपनी मज़र्ी से लूट मचाते, लोगों पर अत्याचार करते। यहां तक कि लूटे हुए सामान के साथ-साथ यहां की महिलाओं को भी लूट के सामान की भांति अपने साथ ले जाते थे। 
इस अत्याचार के खिलाफ सबसे पहले गुरु नानक देव जी ने आवाज़ बुलंद की। उन्होंने ज़ालिमों को ललकारा, धार्मिक नेताओं को फटकारा तथा प्रताड़ित लोगों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जूझने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने छोटे तथा नीच समझे जाते लोगों को अपने साथ बराबरी पर खड़ा किया तथा उनका साथ दिया। श्रमिकों को सम्मान बख्शा और ज्ञान के द्वार उनके लिए खोले। गुरु नानक साहिब ने उन्हें प्रेरणा दी :
जे जीवै पति लथी जाए ।
सभु हराम जेता किछु खाए।। (अंग : 142)
गुरु जी ने सिर्फ लोगों में चेतना ही नहीं जगाई, अपितु अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने के लिए भी प्रेरित किया। तब शाही ज़ुल्म तथा जब्र अपने शिखर पर था। उस समय की स्थिति देख गुरु जी ने कहा था :
कलि काती राजे कासाई धर्म पंख कर उडरिया।  
धर्म लोगों में ज्ञान की रौशनी करने की अपेक्षा उन्हें अंधविश्वास के अंधेरों में धकेल रहा था। अपनी नियति को पिछले कर्मों का फल मान, सिर नीचा करके ज़ुल्म सहने का लोगों को पाठ पढ़ाया जाता था। उस समय के राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिक नेता आम लोगों का नेतृत्व करने की बजाय शाही ज़ुल्मों के भागीदार बन कर लोगों पर अत्याचार कर रहे थे। इस प्रकार समाज में छोटे तथा बेसहारा लोगों की बाजू थामने वाला कोई नहीं था। गुरु जी ने बड़े साहस से लुटेरों को ललकारा और लूटी जा रही जनता को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ने हेतु तैयार किया। 
गुरु जी का जन्म 1469 ईस्वी को कार्तिक महीने की पूर्णिमा के दिन राय भोये  की तलवंडी (ननकाना साहिब) में हुआ। उन के पिता का नाम बाबा महिता कालू तथा माता का नाम तृप्ता जी था। गुरु जी शुरू से ही सांसारिक कार्यों से अधिक रूहानियत की ओर ध्यान देते थे। गुरु जी ने हिन्दी, संस्कृत तथा फारसी की पढ़ाई की। बचपन में जब उन्हें जनेऊ धारण करने के लिए पंडित जी आए तो गुरु जी ने कहा, आप मुझे वह जनेऊ दें जो आत्मा के काम आए। जो  जनेऊ आप मुझे दे रहे हैं, यह तो धागे का बना है।
वह हमेशा यह सोचते रहते थे कि समाज में असमानता, छूत-छात तथा लूट को कैसे खत्म किया जा सकता है। अन्त में गुरु जी अपने बचपन के साथी नीची जाति के समझे जाते मरदाना को साथ लेकर अपने मिशन पर घर से निकल पड़े। भाई मरदाना को साथी बनाना अपने-आप में इन्कलाबी कदम था। मरदाने की रबाब पर ही आप ने अधिकतर अपनी वाणी का उच्चारण किया। गुरु जी ने धार्मिक नेताओं से कहा कि आप प्रजा का रक्षक बनने की बजाय उस पर अत्याचार कर रहे हो। यह सबसे बड़ा पाप है। परमात्मा दूसरों का अधिकार मारने वालों का कभी हो ही नहीं सकता। आप तो चोरों से भी बुरे हो। चोर का तो कभी कोई गवाह भी नहीं बनता। फिर भला परमात्मा आपका कैसे हो सकता है। 
उन्नोंने छोटे समझे जाते लोगों से कहा कि संसार में सभी समान हैं। सभी में एक ज्योति जगती है। कारण आपको नीच केवल लूटने वालों ने ही बनाया हुआ है। गुरु जी ने मज़लूमों को कहा, मैं आपके साथ हूं। आप डर को त्यागें, सच्च तथा अधिकार की रक्षा के लिए संघर्ष करें।  गुरु जी को विश्वास था कि लोगों की मुसीबतों की जड़ अज्ञानता है। इन्हें गुमराह करके प्रताड़ित किया जा रहा है। गुरु जी का फरमान है : 
जह ज्ञान प्रगासु अज्ञान मिटंतु । (अंग : 791)
इसलिए उन्होंने आम लोगों के लिए ज्ञान के द्वार खोले। अपनी वाणी का लोगों की भाषा में उच्चारण किया। प्रत्येक स्थान पर नीच समझे जाते लोगों के घरों में निवास किया, लोगों को उनके अधिकारों से अवगत करवाया। जहां उन्होंने ज़ालिमों को फटकारा, वहीं दलील के आधार पर उस समय के समस्त लोगों को सत्य का ज्ञान भी दिया।