आतंकवाद को खत्म करने के लिए टेरर फंडिंग पर अंकुश ज़रूरी

 

आतंकवाद दुनिया के लिए कितनी बड़ी समस्या है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमरीका जैसा दुनिया का सबसे ताकतवर देश हर साल आतंकवाद से देश और देशवासियों को सुरक्षित रखने के लिए 17500 करोड़ डॉलर खर्च करता है। यह इतनी बड़ी रकम है कि इससे समूचे अफ्रीकी महाद्वीप के वार्षिक ‘प्राइमरी एजुकेशन’ के खर्च को पूरा किया जा सकता है। लेकिन आतंकवाद का बोझ अकेले अमरीकी अर्थव्यवस्था नहीं ढो रही, भारत की अर्थव्यवस्था भी आतंकवाद का भारी भरकम बोझ ढो रही है। भारत हर साल आतंकवाद से निपटने में तकरीबन 10,000 करोड़ रुपये खर्च करता है। यह तो महज तात्कालिक खर्च है। आतंकवाद के खिलाफ जो इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना पड़ता है उसका खर्च इससे कई गुना ज्यादा है।
कहने का मतलब यह कि आतंकवाद से पूरी दुनिया ग्रस्त है। ऑस्ट्रेलिया के इंस्टीट्यूट फॉर इकोनोमिक्स एंड पीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2018 के बीच आतंकवाद के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को 85,500 करोड़ डॉलर से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा था और इस दौरान पूरी दुनिया में करीब 12 लाख लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। अकेले वर्ष 2014 में ही सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में 33,555 लोग आतंकी हिंसा का शिकार हुए थे। ये आंकड़े बताते हैं कि आतंकवाद दुनिया के लिए कितना बड़ा सिरदर्द है।
वैश्विक आतंकवाद के इसी संकट से निपटने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में 75 देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के 450 से ज्यादा प्रतिनिधि जुटे और गत 18 और 19 नवम्बर को आतंकवाद से निपटने की रणनीतियों पर व्यापक विचार-विमर्श किया। इस बैठक का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 नवम्बर को किया था। इस बैठक में दुनियाभर के प्रतिनिधियों ने आतंकवाद के वित्तपोषण से कैसे निपटें, पर चर्चा की। एक तरफ जहां आतंकी बर्बरता के चलते दुनिया की अर्थव्यवस्था को वर्तमान में करीब 40 से 45 हज़ार करोड़ डॉलर का हर साल नुकसान उठाना पड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ  यह आतंकवाद अपनी कार्रवाइयों को अंजाम देने के लिए भी हर साल करीब 5 से 7 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करता है।
सवाल यह है कि आतंकवादियों के पास इतनी बड़ी राशि कहां से आती है? आतंकवादियों के पास धन के दो-तीन प्रमुख स्रोत हैं, जैसे आतंकी संगठन, जो किसानों से अफीम की खेती करवाते हैं और ड्रग्स का सिंडिकेट चलाते हैं। इनकी आय का दूसरा बड़ा माध्यम है, दुनियाभर में मौजूद वे लोग जो किसी कारण इनसे सहानुभूति रखते हैं और इन्हें आर्थिक सहायता देते हैं। इनकी फंडिंग का तीसरा बड़ा स्रोत है, स्टेट फंडिंग। जी, हां! कई देशों द्वारा आतंकियों को अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए आर्थिक मदद मुहैय्या करायी जाती है। 
वास्तव में आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक जंग में ये देश भी बहुत बड़ा खतरा हैं। इन्हें कैसे अलग-थलग करके आतंकवाद को नेस्तनाबूद किया जाए, इस पर 75 देशों के प्रतिनिधियों और आतंक के खिलाफ  जंग लड़ रही सभी संस्थाओं और संगठनों ने एक स्वर में प्रधानमंत्री मोदी के इस आह्वान को दोहराया है कि ‘नो मनी फॉर टेरर’ यानि आतंकवाद के लिए हर तरह की आर्थिक मदद को प्रतिबंधित किया जाए। आतंकी बर्बरता के लिए यह आर्थिक मदद ऑक्सीजन की तरह है। इसीलिये यह दो दिवसीय सम्मेलन इस निष्कर्ष के साथ सम्पन्न हुआ कि आतंकवाद को आर्थिक मदद रोके बिना उसे खत्म नहीं जा सकता। सम्मलेन में शामिल सभी देशों के प्रतिनिधियों ने यह संकल्प दोहराया  कि जब तक आतंकवाद का खात्मा नहीं हो जाता, तब तक वे चौन से नहीं बैंठेंगे।
 इस बैठक का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आतंकवाद समूची मानवता, स्वतंत्रता और सभ्यता पर बर्बर हमला है क्योंकि इसकी की कोई सीमा नहीं होती, उससे तभी निपटा जा सकता है जब निर्ममता से उसके विरुद्ध ज़ीरो टॉलरेंस के दृष्टिकोण पर चला जाए। भारत दुनिया में आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित देश है। इसलिए न सिर्फ  भारत की राय महत्वपूर्ण है बल्कि आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए भारत के अनुभव भी दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारत बार-बार इस बात पर ज़ोर देता रहा है कि आतंक को किसी दूसरी धारा या विचारधारा से जोड़कर देखना उसके बर्बर चक्रव्यूह में फंसने  जैसा है। 
मालूम हो कि इससे पहले साल 2018 और 2019 में क्रमश: फ्रांस और आस्ट्रेलिया में ही आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होने के लिए दो वैश्विक बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कुछ देशों की झिझक और कुछ के दोगले रवैय्ये ने आतंकवाद के खात्मे में बड़ी समस्या पैदा की है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक बिना नाम लिए कुछ देशों के रवैय्ये पर निशाना साधा है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘कुछ देश अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद का समर्थन करते आ रहे हैं। वे उन्हें राजनीतिक, वैचारिक और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। टेरर फंडिंग एक संगठित अपराध है। इसे इसकी भयावहता से अलग करके नहीं देखा जा सकता।’ इस बैठक के साझे निष्कर्ष के रूप में दुनिया के सभी देशों से अपील की गई  कि वे चरमपंथियों को सिस्टम के बीच मतभेदों का दुरुपयोग करने की अनुमति न दें। दरअसल भारत सिर्फ  टेरर फंडिंग को लेकर भाषण ही नहीं दे रहा बल्कि नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी यानि एनआईए को 2009 से 2012 के बीच आतंकवाद के विरुद्ध धर-पकड़ में तब बड़ी कामयाबी मिली थी, जब इसके आतंकियों की आर्थिक फंडिंग को रोक पाने में इसे सफलता मिली थी। 
गौरतलब है कि एनआईए ने इसी दौरान इंटरपोल और सऊदी इंटेलिजेंस की मदद से अबू जंदाल उर्फ  अबू हमजा तथा फ सीह मोहम्मद जैसे आतंकियों को गिरफ्तार किया था। भारत अपने इन्हीं ठोस अनुभवों के चलते आतंकी फंडिंग पर अंकुश लगाने के लिए बड़ी भूमिका में सामने आया है। आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए जिस तरह से सिरदर्द बना हुआ है, उसे रोकने के लिए अगर उसकी टेरर फंडिंग पर विभिन्न देशों के साझे प्रयासों से तुरंत रोक नहीं लगायी गई और क्रिप्टो करंसी व क्राउड फंडिंग के जरिये उन्हें अपनी हरकतों को अंजाम देने के लिए ज़रूरी धन हासिल मिलता रहा तो फिर इस दुनिया को नर्क बनने से कोई नहीं रोक सकता।-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर