भाजपा के लिए सिरदर्द बन रही है पुरानी पेंशन योजना 



सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का मुद्दा उन राजनीतिक दलों के लिए बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है, जो सरकार चला रहे हैं। कांग्रेस इस मामले में सबसे आराम की स्थिति में है क्योंकि उसकी सिर्फ  दो राज्यों में सरकार है और तीन राज्यों में वह साझा सरकार का हिस्सा है। अपने शासन वाले राज्यों में उसने पुरानी पेंशन योजना लागू कर दी है और अन्य राज्यों में भी वह इसे लागू करने का वायदा कर रही है। इसी तरह आम आदमी पार्टी की भी दो राज्यों में सरकार है और इसलिए उसे भी पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा में दिक्कत नहीं है। सबसे ज्यादा परेशान भाजपा है। वह न तो इसका विरोध कर पा रही है और न ही समर्थन। अलबत्ता भाजपा और सरकार से जुड़े अर्थशास्त्री ज़रूर समझा रहे हैं कि कैसे पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना खराब राजनीति है और खराब अर्थशास्त्र भी लेकिन सरकारी कर्मचारियों पर उनके समझाने का कोई असर नहीं हो रहा। देश भर के सरकारी कर्मचारियों के संगठन 8 दिसम्बर को दिल्ली में प्रदर्शन करने वाले हैं। इसलिए केंद्र के साथ ही राज्यों की भाजपा सरकारें भी परेशान हैं। यह मुद्दा इसी तरह पकता रहा तो अगले लोकसभा चुनाव में यह मुख्य मुद्दा बन सकता है। अगले साल भाजपा के शासन वाले कई राज्यों में चुनाव हैं और वहां भी कांग्रेस इसका वायदा करेगी। 
 एम्स का सर्वर हैक होना 
देश के सबसे प्रतिष्ठित दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थाना (एम्स) का सर्वर हैक होना कोई मामूली बात नहीं है। देश और सरकार इस बात से संतोष नहीं कर सकती है कि पांच दिन में ही सर्वर को फिर से रिस्टोर कर दिया गया। हालांकि पांच दिन बाद भी एम्स के सर्वर की सफाई चल रही है और सारा काम मैनुअली हो रहा है। इससे हज़ारों मरीज़ों और उनके परिजनों को जो समस्या हो रही है वह अपनी जगह है लेकिन इससे देश की पूरी डिजिटल व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े हुए हैं। हर जगह छोटी-छोटी चीजों के लिए नागरिकों से उनका संवेदनशील डाटा लेकर स्टोर किया जा रहा है। आधार में उनका बायोमेट्रिक डाटा स्टोर किया हुआ है। इसलिए सरकार को सबसे पहले यह पता लगाना चाहिए कि सर्वर किसने हैक किया और उसने कितना डाटा चुराया। खबरों के मुताबिक तीन से चार करोड़ लोगों का डाटा चुराया गया है। अगर यह सही है तो नागरिकों की निजता और सुरक्षा के साथ-साथ देश की सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। गौरतलब है कि भारत में साइबर सिक्योरिटी को लेकर कोई कानून नहीं है। निजता का कानून भी भारत में दूसरे सभ्य देशों के मुकाबले बहुत सख्त नहीं है। सोचने वाली बात है कि एक तरफ  सरकार पूरी अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था को डिजिटल बना रही है और दूसरी तरफ  डिजिटल डाटा की सुरक्षा की ऐसी स्थिति है कि एम्स जैसे संस्थान का सर्वर हैक कर डाटा चुरा लिया जाता है। 
टकराव नहीं चाहतीं ममता बैनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी अब पहले की तरह केंद्र सरकार और भाजपा से टकराव नहीं चाहती हैं। इसके विपरीत वह भाजपा के प्रति सद्भाव दिखा रही हैं और इसके पीछे मकसद बहुत साफ  है। वह नहीं चाहती कि राज्य का बहुसंख्यक हिंदू मतदाता उनको हिंदू विरोधी समझे। वह हिंदू मतदाताओं को नाराज़ कर उन्हे पूरी तरह से भाजपा के पाले में भेज देने की राजनीति से बचना चाहती हैं। उनको लगता है कि राज्य के अल्पसंख्यक मतदाताओं के सामने अब कम्युनिस्ट और कांग्रेस के साथ नहीं जाने वाले हैं। इसलिए ममता भाजपा के प्रति चाहे जितना सद्भाव दिखाएं अल्पसंख्यक उनको ही वोट देंगे। 
कम से कम अगले चुनाव तक तो यह स्थिति नहीं बदलने वाली। इसीलिए वह केंद्र सरकार के प्रति पूरा सद्भाव दिखा रही हैं। उप-राष्ट्रपति के चुनाव में गैर-हाजिर रह कर उन्होंने राजग उम्मीदवार की मदद की तो पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के कार्यकारी राज्यपाल रहे ला गणेशन के भाई के जन्मदिन के कार्यक्रम में शामिल होने तमिलनाडु पहुंच गईं। उन्होंने कई दिन पहले ऐलान कर दिया था कि वह पांच दिसम्बर को दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलेगी। हाल ही में उन्होंने राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष शुभेंदु अधिकारी को चाय पर बुला कर उनसे बात की। शुभेंदु पहले उनकी पार्टी में ही थे। उन्होंने नंदीग्राम विधानसभा सीट पर ममता को हराया था और उसके बाद से लगातार ममता सरकार पर हमलावर रहे हैं। इसके बावजूद ममता ने उनको चाय पर बुलाया और उनको अपना भाई बताया। 
शराब घोटाले में निगाहें दिल्ली पर, निशाना तेलंगाना पर
दिल्ली की नई शराब नीति में हुए कथित घोटाले के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने अदालत में दाखिल किए गए आरोप-पत्र में जो बातें कही हैं, उससे लगता है कि इस जांच का निशाना बहुत सीधा नहीं है। यह ‘कही पे निगाहें, कहीं पे निशाना’ वाली बात है। जांच दिल्ली में चल रही है, छापे दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री, राज्य के अधिकारियों और कारोबारियों के यहां पड़े हैं लेकिन असली निशाना तेलंगाना है। इस मामले में तेलंगाना के कई कारोबारियों और नेताओं को निशाना बनाया गया है और लग रहा है कि आने वाले दिनों में जांच की आंच उन तक भी पहुंचेगी। ईडी के आरोप-पत्र में साउथ ग्रुप की बात कही गई है। इस साउथ ग्रुप में जिन लोगों के नाम हैं, उनमें एक नाम के. कविता का है। पिछले दिनों दिल्ली के भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया था कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता ने अपने प्रभाव और सम्पर्क का इस्तेमाल करके शराब के ठेके दिलवाए थे। कविता के अलावा शरत चंद्र रेड्डी और एम श्रीनिवासुलु रेड्डी का नाम भी इसमें शामिल है। कहा जा रहा है कि साउथ ग्रुप के जरिए आम आदमी पार्टी के संचार विभाग के प्रमुख विजय नायर को एक सौ करोड़ रुपये मिले थे। गौरतलब है कि कविता मुख्यमंत्री की बेटी है और शरत रेड्डी बड़े कारोबारी समूह के मालिक हैं। अगले साल मई में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां भाजपा का लक्ष्य सत्ता पर काबिज होने का है। 
आपराधिक उम्मीदवार 
आम आदमी पार्टी ने राजनीति के सारे पुराने नुस्खे अपना लिए हैं। उसे न तो धर्म और जाति के आधार पर टिकट बांटने में कोई दिक्कत है और न ही चुनाव जीतने के लिए आपराधिक छवि के लोगों को टिकट देने में कोई परेशानी है। दूसरी सभी पार्टियां भी उम्मीदवारों का चयन करते समय उनके जीत को प्राथमिकता देती है लेकिन साथ ही कुछ नैतिकता का भी ख्याल रखती हैं लेकिन आम आदमी पार्टी जीत सकने वाले उम्मीदवारों के चयन में इतना आगे बढ़ गई है कि गुजरात विधानसभा चुनाव और दिल्ली नगर निगम के चुनाव में सबसे ज्यादा आपराधिक छवि के उम्मीदवार उसने उतारे हैं। गुजरात में 182 में से आम आदमी पार्टी ने 61 उम्मीदवार ऐसे दिए हैं, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से भी 43 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनके खिलाफ  गंभीर आपराधिक मामले हैं। आम आदमी पार्टी से थोड़ा ही पीछे कांग्रेस है, जिसके 60 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा भी 32 ऐसे ही उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे गये। इसी तरह दिल्ली नगर निगम के अढ़ाई सौ उम्मीदवारों में से आम आदमी पार्टी के 45 उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड है और उनमें से 20 पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। आम आदमी पार्टी के मुकाबले भाजपा के 27 और कांग्रेस के 25 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले हैं। दोनों राज्यों में आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को टिकट देने में आम आदमी पार्टी अव्वल है तो दोनों जगह सबसे ज्यादा करोड़पति उम्मीदवार भाजपा के हैं।