दिल्ली में दल-बदल के विरुद्ध लोगों ने दिया बड़ा संदेश

 

दिल्ली में चुनाव नतीजों के बाद घटी एक घटना पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। घटना छोटी और प्रतीकात्मक है लेकिन इससे बड़ा संदेश मिल सकता है। गौरतलब है कि सात दिसम्बर को दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे आए थे और नौ दिसम्बर को प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अली मेंहदी तथा दो पार्षद सबिला बेगम और नाजिया खातून कांग्रेस छोड़ कर आम आदमी पार्टी में चले गये थे। चूंकि नगर निगम में दल-बदल कानून लागू नहीं होता, इसलिए उनके सामने इस्तीफा देने की बाध्यता नहीं थी। असल में पूर्ण बहुमत हासिल करने के बावजूद आम आदमी पार्टी आशंकित है कि मेयर के चुनाव में भाजपा कुछ खेल कर सकती है। इसलिए वह अपना संख्याबल बढ़ाने के लिए तोड़-फोड़ कर रही है, जिसे भाजपा ने ‘ऑपे्रशन झाड़ू’ का नाम दिया है। बहरहाल, तीनों नेताओं के पार्टी छोड़ने के तुरंत बाद उनके क्षेत्र में विरोध शुरू हो गया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद इलाके में लोग सड़कों पर उतरे और इन नेताओं के खिलाफ प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें आम आदमी पार्टी का पार्षद चाहिए होता तो वे उसी के उम्मीदवार को वोट देते, लेकिन उन्हें कांग्रेस का पार्षद चाहिए था, इसलिए कांग्रेस को वोट दिया था। जनता कह रही थी कि ये नेता कांग्रेस में लौटें या इस्तीफ दें। मजबूरी में तीनों नेताओं को कांग्रेस में लौटना पड़ा। तीनों ने दल-बदल करने के लिए जनता से माफी मांगी।
अब भाजपा कहां करेगी प्रयोग?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों भाजपा संसदीय दल की बैठक में कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात में जो प्रयोग हुआ था, वह दूसरे राज्यों में भी हो सकता है। गुजरात में भाजपा को मिली विशाल जीत के लिए प्रधानमंत्री का स्वागत किया गया। इस मौके पर मोदी ने कहा कि जिस तरह से गुजरात में चुनाव जीतने की रणनीति अपनाई गई थी, वैसी ही दूसरे राज्यों में भी अपनाई जाए। चुनाव प्रचार, आधी-अधूरी परियोजनाओं के उद्घाटन, हवा-हवाई योजनाओं के शिलान्यास, जातीय-सामाजिक संतुलन साधने की कवायद आदि तो ठीक है लेकिन पूरी सरकार बदलने का प्रयोग कहां हो सकता है? अभी तो हरियाणा को छोड़ कर कोई राज्य ऐसा नहीं दिख रहा है, जहां गुजरात का प्रयोग दोहराया जाए। 
भाजपा से जुड़े जानकार सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश में गुजरात का प्रयोग नहीं हो सकता, क्योंकि अब वहां चुनावों में एक साल से कम समय रह गया है और शिवराज सिंह के खिलाफ  कोई बहुत नाराज़गी या उनकी जगह लेने के लिए कोई नेता भी नहीं दिख रहा है। इसी तरह कर्नाटक में पहले ही बदलाव की संभावना से इन्कार कर दिया गया था। वहां चार महीने बाद चुनाव होने वाले हैं। त्रिपुरा में हाल ही में मुख्यमंत्री बदला गया है, जहां फरवरी में चुनाव होंगे। सो, ले-देकर हरियाणा एकमात्र राज्य है, जहां भाजपा का मुख्यमंत्री है और दो साल के अंदर चुनाव होने वाले हैं। इसके अलावा 2026 तक विपक्ष के शासन वाले राज्यों में ही चुनाव होने है।
बिहार में शराबबंदी का फैसला रद्द होगा!
बिहार में शराबबंदी का फैसला वापस लेने पर सैद्धांतिक रूप से आम सहमति बन चुकी है। सवाल सिर्फ  समय का है कि फैसला कब वापस हो। अब तक नितीश कुमार इस फैसले पर इस वजह से कायम रह पाए थे क्योंकि उनकी सहयोगी रही भारतीय जनता पार्टी का भी उनको समर्थन प्राप्त था। राष्ट्रीय जनता दल ने भी सरकार में शामिल होने के बाद खुल कर इसका विरोध नहीं किया। उसके नेताओं ने छिटपुट बयान दिए लेकिन इस कानून को वापस लेने के लिए दबाव नहीं बनाया लेकिन अब नितीश कुमार पर अंदर और बाहर दोनों तरफ  से दबाव है। उनके सहयोगी राजद के नेता अब इस फैसले को वापस लेने का दबाव बना रहे हैं तो भाजपा भी खुल कर कह रही है कि फैसला रद्द होना चाहिए। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के गृह क्षेत्र छपरा में ज़हरीली शराब से हुई  मौतों के बाद शराबबंदी पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। ध्यान रहे लालू प्रसाद की पार्टी के साथ दोबारा जाने के बाद नितीश कुमार की सरकार ने शराबबंदी कानून में कई तरह की ढील दी। गिरफ्तारी के प्रावधानों में भी छूट दी गई। अब अगला चरण कानून की वापसी है। हो सकता है कि नितीश कुमार खुद फैसला वापस न लें लेकिन वह बहुत जल्दी सत्ता तेजस्वी यादव को सौंपने वाले हैं। अगले साल मार्च में ही तेजस्वी मुख्यमंत्री हो सकते हैं और तब इस बारे में उनकी सरकार फैसला करेगी। जो भी हो अब इस कानून की मियाद ज्यादा लम्बी नहीं दिख रही है।
सुक्खू के मुख्यमंत्री बनने का बड़ा संदेश
हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू का मुख्यमंत्री बनना कई लिहाज से कांग्रेस के लिए बड़ी बात है। वह पहले ऐसे नेता हैं, जिनको राहुल गांधी ने पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था और अब मुख्यमंत्री। गौरतलब है कि जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तब राहुल गांधी ने कई युवा नेताओं को केंद्र में मंत्री बनवाया था। उनमें कुछ अपवाद छोड़ दें तो सारे युवा किसी न किसी बड़े नेता के बेटे थे। उनमें से कई ने राहुल और कांग्रेस के साथ बड़ा धोखा किया। राहुल ने कई युवा नेताओं को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष भी बनवाया लेकिन उनमें से भी कई ने धोखा दिया। बहरहाल उनकी युवा टीम का कोई सदस्य अभी तक मुख्यमंत्री नहीं बन पाया था। सुक्खू पहले नेता हैं, जिन्हें पार्टी के पुराने नेताओं के विरोध के बावजूद राहुल गांधी ने हिमाचल प्रदेश का अध्यक्ष बनवाया था और अब वह मुख्यमंत्री बने हैं। राहुल ने 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के विरोध के बावजूद सुक्खू को अध्यक्ष बनवाया था। यह भी नोट करने लायक तथ्य है कि सुक्खू किसी राजनीतिक परिवार से नहीं हैं। वह एक साधारण बस डाइवर के बेटे हैं। अपवाद के लिए दो-तीन नाम छोड़ दें तो राहुल ने हमेशा बड़े राजनीतिक परिवार के सदस्यों को प्रमोट किया और धोखा खाया। सो, अब एक नई शुरुआत हुई है। जाने-माने राजनीतिक घरानों और अमीर परिवारों से आए लोगों की बजाय साधारण पृष्ठभूमि के लोग कांग्रेस में उच्च पदों पर जाने लगे हैं। यह एक अच्छा संकेत है।