सड़कों का बुनियादी ढांचा सुधारने की ज़रूरत 



भारत में सड़क नेटवर्क निरंतर बढ़ रहा है लेकिन इसके साथ ही बीते 22 वर्ष में देश की जनसंख्या में भी 36 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। जाहिर है कि इससे सड़कों पर यातायात और वाहनों का भार भी बढ़ा है। ऐसे में सुरक्षित यातायात सुनिश्चित कराना सरकार के लिए बड़ी जिम्मेदारी है। इस दिशा में केंद्र और राज्य सरकारें प्रयास भी कर रही हैं लेकिन विशाल सड़क नेटवर्क और जनसंख्या के लिहाज से अभी यह नाकाफी ही हैं।  किसी राजमार्ग या एक्सप्रेस-वे पर रफ्तार भरता वाहन जब एक्जिट प्वाइंट पीछे छोड़ देने के बाद धीरे-धीरे उल्टी दिशा में लौटता है तो केवल अपने और दूसरों के लिए जोखिम ही नहीं खड़ा करता बल्कि उस राजमार्ग पर लचर साइनेज सिस्टम की पोल भी खोलता है। राजमार्गों व एक्सप्रेस-वे पर पूरी लेन घेरे खड़े ट्रक हादसों को ही दावत नहीं देते बल्कि सड़कों पर निश्चित पार्किंग क्षेत्र का अभाव भी दर्शाते हैं।  केंद्र सरकार सड़क यातायात को सुरक्षित बनाने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर कदम बढ़ा रही है। इस योजना के अंतर्गत ट्रैफिक लाइट लगवाने पर विशेष ध्यान है। इसके अलावा स्पीड कैमरा और लाल बत्ती उल्लंघन को पकड़ने के लिए सेंसर लगाने की योजना पर भी काम चल रहा है। 
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने वर्ष 2019 में मोटर वाहन कानून को संशोधित करते हुए कई उल्लेखनीय प्रावधान किए जिनका सीधा संबंध रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने से था लेकिन हर स्तर पर इनकी अनदेखी हो रही है। गड़बड़ी प्लानिंग से लेकर नियमों का अनुपालन कराने तक है। मोटर वाहन कानून में एक तरह से अनिवार्य किया गया है कि जानलेवा हादसे की विस्तृत व वैज्ञानिक जांच जरूर हो और यह एक संस्कृति बने लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीमारी की जड़ तक नहीं पहुंचा जा रहा है। 
केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, हरियाणा, असम, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और ओडिशा में सड़कों को सुरक्षित बनाने की परियोजना के लिए बड़ी राशि आवंटित की है। 7,270 करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने 14 राज्यों में सड़क सुरक्षा को मजबूत करने के लिए आवंटित किए हैं। इससे अगले 6 वर्ष में कार्य किए जाएंगे। सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली 85 प्रतिशत मौतें इन्हीं राज्यों में होती हैं। 
राजमार्गों में एंट्री और एक्जिट के बिंदुओं की खामियां व पर्याप्त उचित साइनेज सिस्टम का अभाव भी दूर नहीं हो पा रहा है। साइनेज सिस्टम मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं। लोगों को सावधान करने, नियमन और राह बताने के लिए। सभी के लिए बोर्ड के आकार, स्वरूप(आयताकार, त्रिकोणीय या गोल), कोण और रंग भी तय है लेकिन इस पर सबसे कम ध्यान दिया जाता है। 2022 में भारतीयों पर सड़क दुर्घटना का खतरा वर्ष 2000 की तुलना में कई गुना बढ़ गया है। एनसीआरबी की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। 22 वर्ष में देश में सड़क दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। वर्ष 2000 में यह 80,118 थी जो अब 1,55,622 हो गई है। 2025 तक सभी प्रमुख शहरों में ट्रैफिक कैमरा लगाने की योजना पूरी करने के लक्ष्य के साथ काम किया जा रहा है।
40 फीसदी यातायात भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों पर संचालित होता है जबकि देश के कुल सड़क नेटवर्क में इनकी हिस्सेदारी महज दो प्रतिशत ही है। 75 फीसदी हाईवे भारत में केवल दो लेन के हैं। एनएचएआई ने देश में गुणवत्ता और उपयोगिता के लिहाज से हाईवे की दक्षता परखने के लिए एक रैंकिंग व्यवस्था आरंभ की है। इसमें सड़कों को कई पैमानों पर परखने के बाद रैंकिंग दी जाएगी जिसका उद्देश्य हाईवे यातायात को सुगम और सुरक्षित बनाना होगा।  45 फीसदी वेटेज एनएचएआई की सड़क गुणवत्ता रैंकिंग में हाईवे की कार्यक्षमता दी जाएगी। 35 फीसदी वेटेज इस रैंकिंग में हाईवे को सुरक्षा के लिए दिया जाएगा। 20 प्रतिशत वेटेज हाईवे पर उपयोगकर्ताआें के लिए मौजूद सुविधाओं के लिए प्रदान किया जाएगा। 
आंध्र प्रदेश ने सड़क यातायात को सुरक्षित व सुगम बनाने के लिए एक अच्छी पहल की है। वहां राष्ट्रीय राजमार्गों पर हर 60 किलोमीटर पर विश्राम स्थल बनाने पर कार्य चल रहा है। 
नेविगेशन के लिए राजमार्गों पर साइनेज सिस्टम कम से कम एक किलोमीटर पहले शुरू होना चाहिए। एंट्री-एक्जिट की सूचनाएं भी पहले से मिलनी चाहिए ताकि चालक समय रहते लेन बदल सकें। एक बोर्ड में जब बहुत अधिक सूचनाएं होती हैं तब चालक के लिए समझना कठिन हो जाता है। सामान्य रूप से एक बोर्ड पर दो से अधिक चिन्ह नहीं होने चाहिए लेकिन इस पहलू की भी अनदेखी होती है। रही सही कसर साइन बोर्ड की खस्ता हालत अथवा उनके पेड़-पौधों से ढक जाने से पूरी हो जाती है। सड़क परिवहन, पर्यटन और संस्कृति से संबंधित संसदीय समिति के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों पर व्यावसायिक वाहनों के चालकों के लिए गाड़ी चलाने की तार्किक अवधि (प्रतिदिन 10 घंटे) तय करने को दिशा-निर्देश जारी होने चाहिए। फूड ज्वाइंट, रेस्टरूम, टायलेट आदि सुविधाओं से सड़कों पर अवैध पार्किंग खत्म होगी और हादसे घटेंगे।  (अदिति)