निराशा में हैं प्रदेश के उद्योगपति

पंजाब में औद्योगिक गतिविधियों के कारण बड़ी चिन्ता पैदा होने लगी है। यह छोटा-सा प्रदेश तब देश में हरित क्रांति लाने में सफल हुआ था जब यहां खाद्यान्न की बड़ी ज़रूरत थी तथा अनाज की कमी महसूस की जा रही थी। उस समय पंजाब की कृषि उपज को देश भर में बड़ा समर्थन मिलता रहा है। उस समय खास तौर पर बड़ी मात्रा में गेहूं तथा चावल पैदा करके इस छोटे-से प्रदेश ने देश का पेट भरा था। परन्तु लम्बे समय तक यह दो फसली चक्र चलते रहने के कारण प्रदेश के लिए कई पक्षों से समस्याएं भी खड़ी होने लग पड़ीं। कृषि को दीर्घकालीन बनाने के लिए तथा प्रदेश में रोज़गार के अवसर बढ़ाने हेतु कृषि आधारित और अन्य उद्योग लगाने की ज़रूरत थी। किसी भी प्रदेश सरकार ने इस काम को प्राथमिकता के आधार पर नहीं लिया।  लम्बे विचार-विमर्श के बाद इस स्थिति को दिशा देने की ज़रूरत थी, ताकि कृषि की उपज का अलग-अलग ढंगों से लाभ उठाया जा सकता। 
यदि योजनाबद्ध ढंग से इस क्रियान्वयन को पूर्ण किया जाता तो इससे किसान की खुशहाली में वृद्धि की आशा की जा सकती थी। परन्तु यदि कृषि आधारित उद्योगों की किसी समय योजनाएं बनाई भी गईर्ं तो वे धरी-धरायी रह गईं। उद्योग तथा कृषि में कई कारणों से प्रदेश बुरी तरह पिछड़ कर रह गया। कभी गोराया, बटाला तथा अन्य छोटे शहरों में लघु औद्योगिक इकाइयां बेहद प्रफुल्लित होती थीं। आज इनमें से ज्यादातर औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी हैं। सरकारों की नीतियों के कारण तथा केन्द्र की पंजाब के प्रति भेदभावपूर्ण नीति के कारण पंजाब का उद्योग प्रफुल्लित नहीं हो सका। कुछ अन्य प्रदेशों को उद्योगों के लिए रियायतें तथा सुविधाएं मिलने के कारण यहां के उद्योगपतियों द्वारा औद्योगिक इकाइयां अन्य प्रदेशों में लगाई जाती रहीं। आज इन औद्योगिक इकाइयों के मामले में हिमाचल जैसा प्रदेश कहीं आगे निकल गया प्रतीत होता है। लगातार यहां औद्योगिक इकाइयां बढ़ने से इसकी आर्थिकता को बड़ा समर्थन मिल रहा है। हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के देश की राजधानी के साथ लगते होने के कारण इस मामले में भी इन प्रदेशों को बड़ा लाभ हुआ है। आज इनके दिल्ली के साथ लगते सीमांत शहरों में हर पक्ष से हुए विकास को देख कर जहां आश्चर्य होता है, वहीं यह भी अहसास होता है कि इनके मुकाबले पंजाब कितना पीछे रह गया है। पिछली सरकारों की तरह  वर्तमान सरकार ने भी चुनावों के दौरान रियायतें देकर मतदाताओं को भरमाने के लिए हर तरह की सुविधाएं देने की घोषणाएं कीं तथा बाद में इन पर क्रियान्वयन किये जाने के कारण प्रदेश बुरी तरह कज़र् में फंस गया।
 आज इस प्रदेश पर जितना बड़ा कज़र् चढ़ गया है, वह इस पर भारी बोझ बन गया है जिसके भार को सहन करना कठिन हो गया है। परन्तु यह सब कुछ देखते भी यहां की दस महीने पुरानी सरकार ने अपनी नीतियों को बदलने या इनमें सुधार करने का  प्रयास नहीं किया, जिस कारण इस अवधि में इस ने और कज़र् लेकर कज़र् की इस गठरी के बोझ को और भी बढ़ा दिया है। आज प्रदेश में हर तरफ जिस तरह के हालात बने हुए हैं, उसे देखते हुए बड़ी निराशा पैदा होती है। हर स्थान पर धरने लगे दिखाई देते हैं। बड़ी-छोटी सड़कों को अवरुद्ध किया जा रहा है। अलग-अलग कारणों के दृष्टिगत कई फैक्टरियों के सामने भी आन्दोलन हो रहे हैं। अनेक यूनियनें मांगों को लेकर प्रशासकीय काम्पलैक्सों के आगे बैठी हुई हैं। इसके साथ-साथ लूटपाट, डकैती तथा फिरौती के लिए दी जा रही धमकियों में वृद्धि हो रही है। गैंगस्टरों के हजूम घूमते दिखाई देते हैं। ड्रोनों द्वारा हथियार तथा नशीले पदार्थों की आमद से सुरक्षा के पक्ष से स्थिति और गम्भीर हो गई है। नशों के चलन पर रोक लगाने में भी प्रशासन बुरी तरह पिट रहा प्रतीत होता है। बने ऐसे हालात में लोग स्वयं को पूरी तरह असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। डर, भय के साये गहरे हो रहे हैं। हर तरह के अनुशासन की कमी बेहद महसूस होने लगी है। सरकार इस स्थिति को नियन्त्रित करने में असमर्थ सिद्ध हो रही है। इस हालात का बड़ा प्रभाव औद्योगिक इकाइयों पर भी पड़ा है। कॉटन की फैक्टरियां लगातार बंद हो रही हैं। औद्योगिक इकाइयां धड़ा-धड़ प्रदेश को छोड़ कर बाहर जा रही हैं। यहां नया निवेश तो क्या होना था, अपितु पहले उद्योगों के भी लगातार उत्तर प्रदेश की ओर पलायन के समाचार मिल रहे हैं।
नई सरकार किसी तरह की प्रभावशाली औद्योगिक नीति बनाने में भी असमर्थ हुई पड़ी है। एक तरफ प्रदेश का मुख्यमंत्री बड़े-छोटे उद्योगों को पंजाब में लगाने के लिए विदेशों के दौरे कर रहा है, कुछ महीने पहले उसके द्वारा जर्मन आदि देशों का दौरा भी किया गया था ताकि वहां के उद्योगपति पंजाब में निवेश करें। परन्तु दूसरी तरफ प्रदेश के निराश हुए उद्योगपति यहां से बाहर जाने में ही अपना भला समझ रहे हैं। अमन-कानून की बुरी स्थिति को देखते हुए कोई प्रभावशाली नीति न होने के कारण आज प्रदेश के छोटे-बड़े उद्योगपति अच्छी स्थिति की तलाश में अन्य प्रदेशों की ओर जाने को प्राथमिकता देने लगे हैं। यह बात बेहद बेचैन करने वाली है कि अक्तूबर महीने में पंजाब के अलग-अलग क्षेत्रों में औद्योगिक उत्पादन करने वाले बड़े-छोटे उद्योगपतियों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ कई बैठकें कीं तथा वहां  व्यापक स्तर पर उद्योग लगाने के लिए सरकार के साथ सम्पर्क किया। समाचार तो यह भी हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इन उद्योगपतियों को हर तरह की रियायतें तथा उत्पादन हेतु अच्छा माहौल देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है। इन उद्योगपतियों ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ दो लाख तीस हज़ार करोड़ के समझौते भी किये हैं।
इन उद्योगपतियों का प्रभाव है कि पंजाब में कानून व्यवस्था की स्थिति का बुरा हाल है, फिरौतियों का दौर आम बात है। उद्योगपतियों के लिए यहां काम करने का माहौल नहीं है, जिस कारण इस प्रदेश से वह निराश हो चुके हैं। पैदा हुई अराजकता के ऐसे माहौल में बाहर से आकर कोई व्यक्ति नया उद्योग लगाने का ़खतरा क्यों और कैसे उठाएगा? इस चिन्ताजनक स्थिति में से निकलने के लिए बड़े एवं भरपूर प्रयासों की ज़रूरत होगी, जिनकी कमी बुरी तरह महसूस होती दिखाई दे रही है। इस कारण प्रदेश के भविष्य   संबंधी बड़े प्रश्न खड़े हो रहे हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द