वित्तीय संकट की आहट


देश में बढ़ती महंगाई, मुद्रा स्फीति की स्थिति और भविष्य में किसी चरण पर उत्पन्न होने वाले वित्तीय संकट को लेकर केन्द्रीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की चेतावनी एक ओर जहां राष्ट्र के वित्तीय धरातल के नेताओं को सोचने हेतु विवश करती है, वहीं वित्तीय मोर्चे के नायकों से अग्रिम रणनीति अपनाये जाने की अपेक्षा भी करती है। रिज़र्व बैंक गवर्नर ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि निकट भविष्य में देश को एक नये वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है, और कि यह संकट देश में प्रचलित पुरातन प्रणाली के ध्वस्त हो जाने के रूप में भी हो सकता है। इस प्रणाली की रचना ही इसलिए की गई थी कि भविष्य में किसी आसन्न ़खतरे से बचने के लिए इसे ढाल के रूप में प्रयुक्त किया जा सके, परन्तु निजी क्रिप्टो करंसी इस प्रणाली को ही ध्वस्त कर देने की क्षमता रखती है। उन्होंने निजी धरातल पर प्रचलन में आ रही इस क्रिप्टो करंसी की ओर संकेत करते हुए चेतावनी जारी की है कि इसका प्रतिफलन शत-प्रतिशत  दड़ा-सट्टा पर आधारित हो सकता है। यह स्थिति राष्ट्र की आर्थिकता एवं वित्तीय स्थिरता के लिए एक बड़ा ़खतरा सिद्ध हो सकती है। गवर्नर ने अपनी चुनौती एवं चेतावनी को पुष्ट करने हेतु पिछले एक वर्ष के घटना-क्रमों का ज़िक्र किया, और कहा कि इसके कारण अमरीका में एफ.टी.एक्स. एक्सचेंज पूर्णतया दीवालिया हुआ। इस क्रिया को अमरीका के इतिहास की एक सर्वाधिक बड़ी धोखाधड़ी करार दिया गया था। उनका यह भी कथन है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति आने वाले समय में भीषण वित्तीय संकटों का संकेत देगी जिसका असर भारत की वित्तीय स्थिति पर पड़ना लाज़िमी है।
रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने दावा किया कि बेशक देश में कुछ चरणों पर महंगाई में कमी आई है, परन्तु इसके बावजूद उन्होंने ब्याज दरों के मोर्चे पर राहत नहीं देने की घोषणा करते हुए कहा कि ़खतरा अभी टला नहीं है। उन्होंने देश की मौद्रिक नीति पर समय-पूर्व रोक लगाने को एक नीतिगत गलती करार दिया जिससे बचने का उन्होंने प्रभावी संकेत भी दिया। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस प्रकार के अनिश्चित एवं अस्थिर जैसे माहौल में महंगाई की स्थिति को बल मिल सकता है। तथापि, देश की मौद्रिक नीति संबंधी बैठक के बाद उनका यह कथन संतोष और सुकून पैदा करने के लिए काफी है कि देश महंगाई के बढ़ते हुए दबावों को सहन करने के सक्षम है, और कि महंगाई के विरुद्ध समुचित नीति अपनाई जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने देश की आर्थिक बुनियादी गतिविधियों को मज़बूत करार देते हुए कहा कि दुनिया के एक बड़े हिस्से में भविष्य में मंदी जैसी स्थितियां पैदा होने की बड़ी आशंका है, किन्तु भारत इन सभी दबावों को सम्भाल पाने की शक्ति रखता है। देश का वित्तीय क्षेत्र बेहद लचीला है, तथा अभी तक शेष दुनिया के मुकाबले बेहतर बना हुआ है। इस हेतु देश के नीति-नियामक क्षेत्र और वित्तीय धरातल की कम्पनियों, दोनों को श्रेय दिया जाना चाहिए। उन्होंने माना कि देश में महंगाई की स्थिति बनी रहने की आशंका है किन्तु इस पर काबू पाने के लिए सरकार और केन्द्रीय रिज़र्व बैंक के बीच का बेहतर तालमेल रंग लाया है, और महंगाई तथा मूल्य-वृद्धि पर अंकुश बनाया जा रहा है। उन्होंने देश की मौद्रिक नीतियों को महंगाई और विकास के धरातल पर संतुलित बनाये रखने का भी संकेत दिया।
हम समझते हैं कि नि:सन्देह रिज़र्व बैंक के गवर्नर का यह ब्यान आशावाद और निराशा के बीच झूलते हुए प्रतीत होता है। देश में महंगाई और मूल्य-वृद्धि पर अंकुश लगने के दावों के बावजूद परचून में ठोस धरा पर कोई सार्थक परिणाम निकलते हुए दिखाई नहीं देते, किन्तु दुनिया के वित्तीय धरातल पर मंदी की आहट उपजने की चेतावनी चिन्ता भी उत्पन्न करती है। क्रिप्टो करंसी से उपजने वाला संकट भी वित्तीय धरातल पर ़खतरे का संकेत बनते दिखाई देता है। नि:सन्देह इसे रोकने का दायित्व बोध भी स्वयं रिज़र्व बैंक और केन्द्र सरकार की नीतियों पर केन्द्रित  रहेगा। हम समझते हैं कि निजी हाथों वाली क्रिप्टो करंसी का सूत्र भी आम जन को तो शायद ही प्रभावित करेगा किन्तु इसके आसन्न ़खतरे की आहट बड़े वित्तीय संस्थानों तक अवश्य सुनी जा सकती है। ऐसी स्थिति में यदि इस प्रकार की ़गैर-ज़िम्मेदार मुद्रा और इसके लेन-देन पर प्रतिबन्ध लगता है, तो इसे एक स्वीकार्य पक्ष माना जायेगा। जन-साधारण पर भी इस प्रतिबन्ध का कोई बड़ा असर पड़ने की सम्भावना नहीं है। इस करंसी के दड़ा-सट्टा पर आधारित होने के कारण देश की आर्थिकता एवं वित्तीय स्थिति पर बेहद गम्भीर प्रभाव पड़ने की आशंका से कदापि इन्कार नहीं किया जा सकता। राष्ट्र के वित्तीय नीति नियामकों को इन गम्भीर ़खतरों के प्रति जागरूक रहना चाहिए। रिज़र्व बैंक के गवर्नर भी इस संकटपूर्ण स्थिति से आगाह कर चुके हैं। तथापि, देश और दुनिया की वित्तीय धरातल की स्थितियों एवं ज़रूरतों के दृष्टिगत अन्तिम निर्णय तो सरकार को करना है। उम्मीद करनी चाहिए कि केन्द्र सरकार रिज़र्व बैंक की इस संबंधी चेतावानियों और चुनौतियों के दृष्टिगत, देश के जन-साधारण की बेहतरी के नज़रिये से कोई माकूल और अनुकूल निर्णय ले पायेगी।