ईरान-अ़फगानिस्तान—महिला की नियति


विश्व के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो लिंग-भेद के मामले में पुरुष प्रधान समाज द्वारा महिला को अक्सर हर पक्ष से दबाया जाता रहा है। सदियों से इस प्रचलन में स्थान-स्थान पर महिलाओं ने संगठित होकर इसका विरोध भी किया है। भिन्न-भिन्न देशों में समय-समय पर वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती रही हैं। ज्यादातर देशों में उन्होंने इस संबंध में बड़ी उपलब्धियां भी प्राप्त की हैं तथा कानून द्वारा इन्हें मनवाया भी है। आज हमारे समक्ष है कि अ़फगानिस्तान तथा ईरान की सरकारों द्वारा महिलाओं को जिस तरह दबाया जा रहा है, उसके विरुद्ध बड़ा रोष पैदा हो रहा है।
अ़फगानिस्तान में तालिबान द्वारा कड़े गुरिल्ला युद्ध के बाद पुन: सत्ता पर कब्ज़ा कर लेने के विरुद्ध देश के लाखों लोग सड़कों पर उतर आये थे तथा तालिबान सत्ता के विरोध में आ खड़े हुए थे। इसका बड़ा कारण तालिबानों द्वारा शरीयत कानून को लागू करते हुए मानवाधिकारों की पूरी तरह अनदेखी करना था। देश में उनके अपने पिछले शासन के दौरान भी ऐसा कुछ ही देखा गया था। थोपे गए कट्टर इस्लामी कानूनों का विरोध करने वाले लोगों को सरेआम बड़ी सज़ाएं दी गईं। महिलाओं तक को भरे बाज़ार में कोड़े मारे गये। शरीयत शासन से ब़ागी लोगों को गोलियों से भी भून दिया गया था। अ़फगान लोगों के साथ विगत लम्बी अवधि से ऐसी त्रासदी घटित होती रही है। इसमें खास तौर पर लड़कियों तथा महिलाओं को कड़े शरीयत कानूनों के अधीन जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। इनके विरुद्ध उठे विद्रोही स्वरों को सख्ती से दबा दिया जाता रहा है। ऐसे शासन में पिसती महिला को उसकी नियति ही कहा जा सकता है। नये तालिबान शासकों द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार लड़कियों की शिक्षा पर बड़े प्रतिबंध लगा दिये गये हैं। उन्हें कालेज तथा यूनिवर्सिटी में जाने से रोक दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने छात्राओं तथा महिलाओं संबंधी इन नये प्रतिबंधों को मानवाधिकारों का हनन कहा है। परिषद् ने इस बात पर भी गहरी चिन्ता व्यक्त की है कि स्कूलों में छठी कक्षा के बाद लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाये गये हैं, जोकि महिलाओं के अधिकारों को कुचलने के समान है। तालिबान सरकार को इन प्रतिबंधों को शीघ्र हटाना चाहिए। इसी तरह ही महिलाओं के नौकरी करने पर भी अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगा दिये गये हैं।
ईरान में भी इस संबंध में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। लगभग 42 वर्ष पूर्व 1979 में इस्लामिक क्रांति के नाम पर मोहम्मद रज़ा पहलवी शाह को सत्ता से हटा दिया गया था तथा उसके बाद देश का शासन इस्लामिक कानूनों के अनुसार चलाया जाने लगा था, जिसमें मानवाधिकारों की पूरी तरह अनदेखी की गई थी तथा महिलाओं पर सामाजिक रूप में विचरण करने पर कड़े प्रतिबंध लगा दिये गये थे। समय-समय पर इस संबंध में वहां आन्दोलन भी होते रहे हैं परन्तु उन्हें सख्ती से दबा दिया जाता रहा है, परन्तु पिछले लगभग 4 मास से वहां जारी हिजाब विरोधी प्रदर्शनों ने देश भर में बेहद बेचैनी पैदा कर दी है। बड़े सहम में रह रहीं महिलाओं ने तो एक तरह की ब़गावत ही कर दी है। इसकी शुरुआत इसी वर्ष 16 सितम्बर को महिसा अमीनी नामक एक महिला की पुलिस हिरासत में हुई मृत्यु से हुई थी। अमीनी को वहां की सुरक्षा एजेन्सी ने इसलिए गिरफ्तार कर लिया था, क्योंकि उसने हिजाब पहनने से इन्कार कर दिया था। इस्लामी कानून के अनुसार महिलाओं का हिजाब पहनना ज़रूरी है। पुलिस हिरासत में ही अमीनी की हुई मृत्यु के बाद देश भर में दंगे भड़क उठे थे। ऐसे ही प्रदर्शन वर्ष 2017 में भी हुए थे तथा नवम्बर 2019 को भी महिलाओं ने अपनी इच्छा से जीने की आज़ादी की मांग को लेकर देश भर में प्रदर्शन किये थे, परन्तु इन्हें सत्ता की शक्ति से दबा दिया गया था। परन्तु इस बार शुरू हुए ये प्रदर्शन तथा स्थान-स्थान पर होते हिंसक टकराव खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। अब तक कई लोगों को इस अपराध के अन्तर्गत फांसी भी दे दी गई है। प्रदर्शनों में 500 से अधिक मौतें हो चुकी हैं।
ईरान के तानाशाह इब्राहीम राइसी ने यह घोषणा की है कि प्रदर्शनकारियों तथा दंगाइयों के साथ किसी तरह की कोई नरमी नहीं अपनाई जाएगी, परन्तु इसके बावजूद मानवाधिकारों के समर्थक एवं महिला संगठन झुकने के लिए तैयार नहीं हैं, अपितु बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, वकील तथा बड़ी लोकप्रिय शख्सियतें सरकार के विरुद्ध खड़ी दिखाई देने लगी हैं। देश के हर तरह के प्रमुख खिलाड़ियों ने स्थान-स्थान पर अपना रोष दर्ज करवाया है तथा अपने-अपने क्षेत्रों में प्रसिद्ध शख्सियतें भी प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रही हैं। चाहे ईरानी तानाशाह अपने रेवोल्यूशनरी गार्ड्स तथा तैयार की नैतिकता (मोरैलिटी) पुलिस द्वारा और भी सख्ती करने पर आमादा हैं परन्तु विश्व भर में इस संबंध में ईरान सरकार की कड़ी आलोचना हो रही है। यह भी प्रतीत होता है कि इस बार उठे इस कड़े विरोध को शीघ्र दबाया नहीं जा सकेगा, क्योंकि ईरान की महिला अपनी वर्तमान स्थिति में से हर हाल  में बाहर निकलने हेतु तत्पर दिखाई देती है। 


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द 

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