आम चुनाव-2024 के दृष्टिगत राजनीतिक पार्टियों के लिए बड़ा अहम् है यह वर्ष

 

साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले यह साल राष्ट्रीय राजनीति के लिए बहुत ही अहम व निर्णायक है। जिसे सही मायनों में फाइनल के पहले का सेमीफाइनल कहते हैं, साल 2023 राष्ट्रीय राजनीति में वही सेमीफाइनल होने हैं। इस साल छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, राजस्थान, त्रिपुरा और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव होंगे। इसके साथ ही इस साल 74 राज्यसभा सदस्य भी चुने जाएंगे। वास्तव में इन विधानसभा चुनाव में जो पार्टी या पार्टियों का जो गठबंधन बेहतर कारगुज़ारी दिखाएगा, निश्चित रूप से साल 2024 के लोकसभा चुनावों में उस पार्टी या गठबंधन की जीत की संभावनाएं बनेंगी। 
जब भी लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद विधानसभा चुनाव होते हैं या विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव होते हैं, उसका असर दूसरे चुनावों पर आमतौर पर पड़ता ही है। जब कोई पार्टी लोकसभा चुनाव जीत जाती है, तो कुछ ही महीनों के भीतर उन्हीं जगहों पर हुए विधानसभा चुनाव में उसी पार्टी को बढ़त मिलती है। इस लिहाज से न सिर्फ  सत्तारूढ़ भाजपा बल्कि कांग्रेस और भाजपा के विरुद्ध संगठित होने वाले गठबंधन और क्षेत्रीय पार्टियां वास्तव में लोकसभा चुनाव के पहले इस साल इन विधानसभा चुनावों में अपनी जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाएंगी।
इसकी जल्द ही शुरुआत उस गुजरात से होगी जहां गत वर्ष 2022 में भाजपा ने शानदार बहुमत के साथ विजय हासिल की। साल 2023 में गुजरात में जिला पंचायत, तहसील पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनाव होने हैं। इन चुनावों में एक बार फिर से भाजपा और कांग्रेस के पारम्परिक मुकाबले के बीच आम आदमी पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश करेगी। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस अपनी निराशा में और भाजपा अप्रत्याशित जीत के खुमार में अभी तक गुजरात में होने वाले पंचायती चुनावों के लिए सक्रिय नहीं हुईं, लेकिन आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद से ही पंचायती चुनावों के लिए न सिर्फ  रणनीति बनाना बल्कि प्रचार तक करना शुरु कर दिया है। गुजरात की जीत जिस तरह साल 2022 में भाजपा की नैतिकता में वृद्धि के लिए ज़रूरी थी ताकि वह राष्ट्रीय राजनीति में खुलकर अपने वैचारिक स्टैंड का बचाव कर सके, उसी तरह इस साल गुजरात में होने वाले पंचायती चुनावों में भी वह अपनी जीत को बरकरार रखना चाहेगी, ताकि लोकसभा चुनावों में इसका फायदा लिया जा सके। गौरतलब है कि साल 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने गुजरात की सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। अब इससे बेहतर तो कोई प्रदर्शन हो नहीं सकता, लेकिन इससे बदतर होने की आशंका तो है। इसलिए पंचायती चुनावों की गुजरात की राजनीति में अहमियत तीनों मुख्य चुनावी प्रतिद्वंदियों-भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए बन गई है। 
फरवरी के बाद ये चुनाव कभी भी हो सकते हैं और अगर इन पंचायती चुनावों में कांग्रेस का वही हाल रहता है, जो विधानसभा चुनावों में रहा, तो आम आदमी पार्टी बड़ी आसानी से लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को एक तरफ  करके गुजरात में भाजपा के लिए मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी बन जायेगी। यह इसलिए भी सोचा जा सकता है, क्योंकि विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 13 फीसदी वोट हासिल किये थे और जाहिर है, क्योंकि भाजपा का वोट प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस साल बढ़ा है तो निश्चित रूप से आम आदमी पार्टी के ये 13 प्रतिशत मत कांग्रेस के खेमे से ही आये हैं। ऐसे में कांग्रेस और ‘आप’ दोनों के लिए यह ज़रूरी हो जायेगा कि वे गुजरात में आगामी पंचायती चुनावों में हर हाल में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करें।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है, क्योंकि भाजपा जहां साल 2024 के लोकसभा चुनाव हर हाल में जीतना चाहेगी, वहीं कांग्रेस और दूसरी विपक्षी दल मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी दी जाए। इन दोनों समीकरणों के लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में जीतना ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि इन तीनों प्रदेशों में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है जिससे वह भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो उसकी सरकार ही है। मध्य प्रदेश में सरकार नहीं है, लेकिन मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ दर्जन भर से ज्यादा विधायकों के भाजपा से जा मिलने के बाद भी कांग्रेस मध्य प्रदेश में काफी मज़बूत है। अगर 2018 की तरह एक बार फिर यहां कांग्रेस जीत जाती है तो यह भाजपा के मिशन-2024 को काफी नुकसान पहुंचा सकती है।
हालांकि राजस्थान में भी हिमाचल प्रदेश की तरह नेतृत्व के बदलने की परम्परा रही है। इस तरह देखें तो भाजपा को यहां मनोवैज्ञनिक बढ़त मिली हुई है। लेकिन जिस तरह से राजस्थान में भाजपा आपसी खींचतान का शिकार है और अंदर खाते कई गुटों में बंटी हुई है, उसको देखते हुए अगर अशोक गहलोत जैसा चतुर खिलाड़ी राजस्थान में नेतृत्व बदलने की परम्परा को इस बार विराम लगा दे तो ऐसा होना असंभव नहीं है। साल 2018 में यहां कांग्रेस ने भाजपा के हाथों से सत्ता छीनी थी। तब कांग्रेस ने 200 सीटों में से 100 सीटे जीती थीं, हालांकि उसके पहले 2013 में भाजपा ने कांग्रेस से यहां की सत्ता छीनते हुए 200 में से 163 सीटें जीती थीं और कांग्रेस सिर्फ  73 सीटों में सिमट गई थी, उसे देखते हुए 2023 में भाजपा के लिए मजबूत माहौल बनना था। लेकिन भाजपा के भीतर खींचतान के कारण अभी तक वह माहौल नहीं बना कि भाजपा राजस्थान में इस साल  में जीतने का दावा कर सके। 
साल 2018 में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में भी भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया था, जब उसने 90 में से 68 सीटें जीतकर यहां भाजपा के 15 सालों के शासन का अंत किया था। लेकिन 2023 में नये सिरे से भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही इन तीनों प्रदेशों में अपनी ताकत दिखानी होगी, जिससे कि ये दोनों 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले मतदाताओं को कोई ठोस संदेश दे सकें। कुल मिलाकर राष्ट्रीय राजनीति के लिए साल 2023 काफी उठापटक भरा होगा। सिर्फ राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के लिए ही नहीं बल्कि तेलंगाना जैसे राज्य में तेलंगाना राष्ट्रीय समिति को साबित करना होगा कि वह अपने किले में मज़बूत है। साथ ही इस साल उत्तर-पूर्व की राजनीति में भी निर्णायक दिशा स्थापित होगी, क्योंकि फिलहाल यहां भाजपा की जो ताकत दिखती है, वह स्वाभाविक कम जोड़-तोड़ का नतीजा ज्यादा है। ऐसे में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को साबित करना होगा कि वह उत्तर-पूर्व में त्रिपुरा की ही नहीं बल्कि मिज़ोरम, मेघालय और नागालैंड की भी स्वाभाविक ताकत बनकर उभरी है।
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