कंजूसी पुरस्कार 

 

धन की साधना कौन नहीं करता। सभी करतें हैं। करनी भी चाहिये। आज हर काम को करने के लिये धन की आवश्यकता  होती है। सुबह हुई नहीं कि आदमी को पैसे की जरूरत आन पड़ती है। कर्मठ होना बहुत अच्छी बात है। धन की प्राप्ति के लिये आदमी को कर्मठ होना भी चाहिये। कर्मठ आदमी ही किसी मुकाम पर पहुँचता है। कर्मठ आदमी ही देश के लिये कुछ कर सकता है।
 इन्हीं कर्मठियों में से एक हैं। हमारे मच्छर लाल जी। श्रीमान मच्छर लाल जी पैसे को दांत से पकड़ते हैं। या पैसे के मामले में ये अपने बाप को भी नहीं पहचानते। कुछ ऐसी स्थिति है, श्रीमान मच्छर लाल जी की। मच्छर लाल जी हमारे समाज के अति सम्मानित व्यक्तियों में से एक हैं। लक्ष्मी पर इनका अखंड़ विश्वास है। ये मच्छर लाल जी सुबह से शाम तक केवल और केवल लक्ष्मी जी की ही  आराधना, उपासना करते हैं। दिन भर सोचते रहते हैं कि पैसा कहां से आये। वैसे तो इनके पास जितनी संपत्ति है। वो  अरबों-खरबों में होगी। लेकिन इनकी कामना है कि दुनिया की सारी दौलत इनकी तिजोरी में बंद हो। इन्होंने कभी ठहर कर आराम नहीं किया। किसी जलसे-जुलूस में शामिल नहीं हुए। इनकी कर्मठता का पता इसी बात से चलता है कि जब  उनके बाप मरे थे। जलती हुई चिता को आधे रास्ते में ही जलता छोड़कर मच्छर लाल जी अपने कार्य-व्यापार में आ लगे। तब हिमालय भी इनकी कर्मठता को देखकर लजा गया था। 
लोगों ने बहुत थू-थू किया। लेकिन, इनको कोई फर्क नहीं पड़ा। 
बाद में इन्हीं मच्छर लाल जी के संस्कार इनके सुपुत्र
खोंटा जी और बाद में पौत्र पिपरी लाल जी के स्वभाव में उतरोत्तर आता चला गया। और ये भी मच्छर लाल जी के नक्शे कदम पर चल निकले। 
एक बार की बात है, मच्छर लाल जी संड़ास में बैठे थे। और किसी ने उनकी औरत से पचास रूपये झटक लिये थे। ये बात मच्छर लाल जी को उनकी पत्नी ने फारिग होते समय संड़ास में ही बता दी। मच्छर लाल जी धेले-धेले और पाई-पाई का हिसाब रखते हैं। उन्हें अच्छी-अच्छी चीजें खाने  का शौक तो होता है। लेकिन, वे चाहते हैं, कि इनका ये शौक दूसरों के पैसों से पूरा हो। घनश्याम जी, मच्छर लाल जी की प्रशंसा में हमेशा यही कहते हैं कि मच्छर लाल जी अपनी चुनौटी खैनी से भरकर तो ले जाते हैं लेकिन, खाते हमेशा दूसरों की खैनी हैं। कहते हैं कि हमारी खैनी में वो बात ही नहीं है। जो हमारे मित्रों की खैनी में है। महीनों ही उनके पास वो खैनी का डब्बा ज्यों का त्यों भरा पड़ा रहता है। मजाल है जो मच्छर लाल जी किसी को एक खैनी भी दे दें। 
चाय की दूकान पर जाते हैं। तो हमेशा अपना बटुआ घर पर ही भूल जाने की बात करते हैं। और अपने मित्रों से ही चाय पी लेते हैं। वो किसी कुशल सेनापति कि तरह अपने शत्रु को चारों खाने चित्त कर देतें हैं। लोग-बाग में उनका मजाक भी बनता है। लेकिन, मच्छर लाल जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये जो मच्छर लाल जी के जैसे लोग हैं। वो  यत्र-तत्र-सर्वत्र पाये जाते हैं। 
हमें सरकार को इस संदर्भ में एक पत्र लिखकर एक ऐसे पुरस्कार की घोषणा इन मच्छर लाल सरीखे महानुभावों को देने के लिये करनी चाहिये। जिसके कारण मितव्ययता के गुणों का ज्यादा से ज्यादा प्रश्रय मिल सके और हमारा देश हमेशा उन्नति के रास्ते पर विकास कर सके। 
सरकार को प्रतिवर्ष एक वार्षिक कार्यक्रम में ऐसे कंजूस मच्छर लाल सरीखे लोगों को पुरस्कृत भी करना चाहिए।
-मेघदूत  मार्किट फुसरो 
बोकारो (झारखंड)
मो. 9031991875