चोरी (क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)

चोरी

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
सुषमा, तुमने मेरा फोन देखा है?
नहीं टेबल पर तो पड़ा था।
वही तो। मैंने टेबल पर, आस-पास, हर जगह देख लिया कहीं नहीं मिल रहा।
अब सुषमा को भी चिंता हुई। छोटा सा घर था। दोनों ने हर संभव स्थान को देख लिया, पर फोन था कि नहीं मिला।
सौरभ ने कहा - एक तरीका है। मैं पड़ोस में जाकर उसी नंबर पर फोन करता हूँ। फोन जहां भी होगा, वह बजेगा तो पता लग जाएगा कि कहां है।
उम्मीद की नई राह नजर आई। सौरभ फोन करने गया व फिर सुषमा चौक्कनी होकर सुनने लगी।
पर फोन बजने की कोई आवाज आई ही नहीं।
सौरभ बहुत उम्मीद लेकर लौटा और आते ही बोला - फोन मिला।
- कोई आवाज ही आई नहीं ।
अब दोनों फिर फोन खोजने लगे पर अब बहुत बुझे मन से।
सौरभ निरंतर बुदबुदा रहा था कि स्मार्ट फोन के बिना तो एक दिन भी डिलीवरी नहीं हो सकती। कल छुट्टी के बाद का दिन है, हर हालत मुझे डिलीवरी पर जाना है पर बिना फोन के कैसे जाऊंगा।
सुषमा चुपचाप सुनती रही। उसके मन में एक गहरा शक जन्म ले रहा था कि कहीं सतीश तो फोन नहीं ले गया।
सौरभ भी गुपचुप यही सोच रहा था, और जितना सोच रहा था उतना ही उसका शक यकीन में बदल रहा था।
इतना तो पक्का याद है कि वह सुषमा से बात कर रहा था तो फोन सामने टेबल पर पड़ा था। उसके बाद उसने तो फोन उठाया ही नहीं। घर में केवल सतीश आया था, और कोई नहीं। उसने पर्चियां दिखाने के लिए अपना बैग खोला था तो बंद भी नहीं किया था। सुषमा और सौरभ दोनों कुछ समय से लिए कमरे में चले गए थे। उस समय सतीश कमरे में पांच मिनट के लिए अकेला था।....
कुछ देर तो दोनों ने इस शक को मन में ही दबाए रखा, पर कब तक? फिर इस बारे में खुल कर बात हुई तो दोनों को पक्का यकीन हो गया कि सतीश ने ही फोन लिया है, और कोई संभावना नहीं थी।
अब क्या किया जाए?
बहुत सोच-विचार के बाद अंत में यही तय हुआ कि दोनों सतीश के घर जाते हैं। सीधा कोई आरोप तो नहीं लगाएंगे पर टोह लेंगे, फोन खो जाने के बारे में बताएंगे।
दोनों अजीब सी मनोस्थिति में, अनिश्चय से घिर हुए दस मिनट में सतीश के घर में पहुंच गए।
अच्छा-खासा फ्लैट था। गनीमत थी कि उस समय सतीश घर में अकेला ही था अन्यथा औपचारिकताओं में ही फंस जाते।
- बहुत कठिनाई से सौरभ कह पाया - सतीश आज मेरा मोबाईल खो गया है।
- ओह
- मेरे डिलीवरी के काम में यह बहुत जरूरी है।
- ऑफ कोर्स
- आप एक बार चेक कर सकते हे कि कहीं दवा की पर्चियां बैग में वापस डालते समय गलती से फोन बैग में चला न गया हो?
- इसका तो कोई चांस नहीं है सौरभ फिर भी आप बैग देख लें।
सतीश ने इत्मीनान से बैग खोलकर कई तरह का चिल्लर-पिल्लर सतीश के सामने रख दिया।
अब चाहो तो घर में तलाशी भी ले लो सौरभ, सतीश ने कुटिलता भरी मुस्कराहट से कहा।
अरे नहीं, सतीश कैसी बातें कर रहे हो, वह  तो हम परेशान थे, घर में कोना-कोना छान मारा था तो हमने सोचा कि एक बार आप से भी पूछ लें।
बाईक स्टार्ट होते ही पीछे से सुषमा ने कहा - उसके हाव-भाव देखकर तो मेरा शक और पक्का हो गया है।
सौरभ चुप बाईक चलाता रहा।
पर घर पहुंचकर वह अचानक चहकने लगा।
हैरानी से सुषमा ने उसकी ओर देखा तो उसने एक आकर्षक फोन अपनी जेब से निकाल कर दिखाया।
- अरे यह किसका फोन है, तुम्हारा तो नहीं है।
- हम भी कच्ची गोलियां नहीं खेले हैं। मैं सतीश के घर में वाशरूम गया था तो मौका देखकर दूसरे कमरे में पड़ा यह फोन आफ कर मैंने जेब में डाल लिया।
सुषमा के चेहरे पर न खुशी आई, न उल्लास। उसके माथे पर कई बल एक साथ आ गए।
उसने सौरभ से गहरी चिंता के स्वर में बस इतना ही कहा यह आपने क्या कर दिया!
सौरभ को उसकी चिंता अच्छी नहीं लगी। उसने कहा - क्या तुम्हें कोई शक है कि सतीश ने फोन नहीं चुराया?
- नहीं मुझे कोई शक नहीं है।
- तो फिर मौका मिलते ही यह एक फोन उसके घर से उठा लिया तो क्या बुरा किया? अब मैं जाकर इसका सिम बदल दूंगा, और कल से इसका उपयोग करूंगा। काम एक दिन के लिए भी नहीं रुकेगा।
- फिर भी यह बहुत अनुचित है। तुम्हें यह फोन सतीश के परिवार को लौटाना होगा।
- यह कैसे हो सकता है?
- यही होगा।
- पर क्यों? (क्रमश:)
 

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