हरित हाइड्रोजन का बड़ा उत्पादक बन कर उभरेगा भारत 

 

साल 2014 में जब मौजूदा मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आयी थी, तब से लेकर अब तक इस सरकार की अनेक योजनाओं के कारण देश भर में व्यापरक स्तर पर चर्चा हुई है। चाहे वह जन-धन योजना रही हो, चाहे किसान सम्मान निधि योजना रही हो, चाहे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना रही हो या फिर गरीब अन्न कल्याण योजना रही हो, लेकिन अब मोदी सरकार अपनी हरित हाइड्रोजन योजना के जरिये सिर्फ  देश में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में भी चर्चा बटोर रही है। नये साल के पहले सप्ताह में ही 4 जनवरी, 2023 को जब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस हरित हाइड्रोजन योजना को मंजूरी दी तो दुनिया के कई देशों और पर्यावरणविदों ने इसे महत्वपूर्ण योजना बताया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 4 जनवरी को हुई मंत्रिमंडल की एक बैठक में 19,744 करोड़ रुपये की लागत वाले ‘नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ को लागू करने का फैसला किया गया। यह योजना रिफाइनिंग, स्टील, सीमेंट, लोह अयस्क, जहाज़रानी, यातायात जैसे क्षेत्रों में प्रदूषण फैलाने वाली मौजूदा गैसों के इस्तेमाल की जगह ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग की राह सुझायेगी। वास्तव में ग्रीन हाइड्रोजन एनर्जी का सबसे स्वच्छ संसाधन है, इससे प्रदूषण नहीं होता। भारत के लिए यह योजना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले साल दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के एक सत्र को संबोधित करते हुए पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने कहा था कि भारत ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में जल्द ही लीडर बनकर उभरेगा। तब इसे महज महत्वाकांक्षी बयान माना गया था और 4 जनवरी को जब मंत्रिमंडल ने इस योजना पर अंतिम मोहर लगायी तो इसे जलवायु परिवर्तन से प्रभावित दुनिया के लिए भारत की एक ठोस पहल माना गया।
मालूम हो कि हिंदुस्तान अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए 80 फीसदी से ज्यादा जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। अगर योजना के अनुरूप ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में हमें कामयाबी मिलती है तो इससे देश के पर्यावरण को ही नहीं बल्कि आर्थिक बजट को भी बहुत राहत मिलेगी। भारत सरकार के मुताबिक इस योजना के चलते ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर में कुल 8 लाख करोड़ रुपये के निवेश का रास्ता खुलेगा और 6 लाख से ज्यादा नई नौकरियां मिलेंगी। इस तरह यह योजना, देश और दुनिया के पर्यावरण के मामले में ही मील का पत्थर साबित नहीं होगी बल्कि अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनायेगी, क्योंकि इस योजना का मुख्य उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के साथ-साथ देश को ऊर्जा के स्वच्छ स्रोत के उत्पादन का वैश्विक केंद्र भी बनाना है। इस योजना के तहत देश में अगले 5 सालों में सालाना 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
इस हरित हाइड्रोजन का उपयोग इंधन के रूप में वाहनों और तेल रिफाइनिंग व इस्पात संयंत्र उद्योगों में ऊर्जा स्रोत के रूप में इस्तेमाल होना है। हरित हाइड्रोजन का उत्पादन इलेक्ट्रोलाइसिस प्रक्रिया के ज़रिये पानी में से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन को अलग किया जाता है। इस योजना के शुरुआती खर्च के लिए 19,744 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। इस धनराशि में 17,490 करोड़ रुपये का इस्तेमाल हरित हाइड्रोजन योजना के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए होगा, जबकि 1,466 करोड़ रुपये का इस्तेमाल योजना की पायलट परियोजनाओं के लिए, 400 करोड़ रुपये का इस्तेमाल अनुसंधान एवं विकास के लिए और 388 करोड़ रुपये इस योजना के अन्य कार्यों पर खर्च होंगे। इस योजना के क्रियान्वयन को लेकर नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय विशेष दिशा-निर्देश जारी करेगा और अगले 8 सालों में इस योजना के तहत 1,25,000 मेगावाट क्षमता के साथ प्रतिवर्ष कम से कम 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन होगा। 
इस योजना के फलीभूत होने से एक लाख करोड़ रुपये तक के कच्चे तेल और कोयले की बचत होगी। साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन गैसों के उत्सर्जन में 5 करोड़ टन की कमी आयेगी। इससे सबसे ज्यादा पर्यावरण को फायदा होगा और हमारे उस प्रतिबद्धता का ईमानदारी से पालन होगा, जिसके तहत प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की बात कही है। इस योजना के अगले 8 वर्षों के कार्याकाल को बेहद महत्वाकांक्षी बनाया गया है। अब माना जा रहा है कि घरेलू स्तर पर 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन होगा। मालूम हो कि देश के विभिन्न उद्योगों में गैस आधारित हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे ग्रीन हाइड्रोजन भी कहा जाता है। गौरतलब है कि ग्रीन हाइड्रोजन को पूरी दुनिया में अक्षय ऊर्जा के सबसे अच्छे विकल्प के तौर पर देखा जाता है। अभी कुछ ही महीने पहले अमरीकी सरकार ने इस सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ी प्रोत्साहन योजना की घोषण की है। जर्मनी और जापान जैसे देशों में पहले से ही यह योजना अपनी नीतियों के मुताबिक चल रही हैं। जर्मनी में तो ग्रीन हाइड्रोजन एनर्जी से ट्रेन भी चलनी शुरु हो चुकी है। इसलिए भारत की भी यह योजना स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल एनर्जी उत्पादन के मामले में महत्वपूर्ण है। 
भारत के लिए यह पहल इसलिए भी एक वैश्विक आदर्श स्थापित करने के लिए ज़रूरी है, क्योंकि भारत इस साल जी-20 समूह का अध्यक्ष है और इसने दुनिया से आगामी कुछ दशकों के भीतर पूरी तरह से कार्बनडाइऑक्साइड उत्सर्जन को शून्य बनाने का वायदा किया है। हमारे लिए यह योजना इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि हम अपने कुल तेल खपत का करीब 80 फीसदी भाग विभिन्न देशों से आयात करते हैं। इसलिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा के साथ-साथ हरित हाइड्रोजन भविष्य में बहुत लाभकारी सिद्ध होगी। अगर यह योजना सही तरीके से अपने लक्ष्य को हासिल करते हुए आगे बढ़ेगी तो हम साल 2050 में 1000 अरब डॉलर से ज्यादा के जीवाश्म इंधन की बचत कर सकेंगे। इसके अलावा यह इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके जरिये हम भविष्य की ग्रीन एनर्जी के बड़े खिलाड़ी बनकर उभर सकते हैं और दुनिया में बड़े पैमाने पर ग्रीन एनर्जी का कारोबार कर सकते हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर