गेहूं की फसल के लिए लाभदायक है ऐसा मौसम

 

जनवरी में पड़ रही ठंड गेहूं की फसल के लिए बहुत ही लाभदायक है। यदि इसी तरह मौसम अनुकूल रहा तो कृषि विशेषज्ञ भारत व पंजाब में गेहूं की भरपूर रिकार्ड फसल होने का अनुमान लगा रहे हैं। मौसम विभाग द्वारा फरवरी ठंडा रहने का अनुमान तो लगा ही दिया गया है यदि मार्च का माह गर्म न रहा तो गेहूं की उत्पादकता में ज्यादा बढ़ौतरी होगी। आई.सी.ए.आर.-भारतीय गेहूं और जौं के लिए अनुसंधानों के लिए स्थापित संस्था के पूर्व निर्देशक और आई.सी.ए.आर. के नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जैनेटिक रिसोर्सिज़ के डायरैक्टर डा. ज्ञानइन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि देश में गेहूं का उत्पादन 112 मिलियन टन से ऊपर जाने की सम्भावना है। पिछले साल उत्पादन 106.84 मिलियन टन हुआ था जो सं: 2020-21 के 109.59 मिलियन टन के मुकाबले 2.75 मिलियन टन कम था। मार्च में पड़ी गर्मी ने सभी किस्मों की उत्पादकता को बुरी तरह प्रभावित किया था। उत्पादकता सन् 2020-21 के 3521 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के मुकाबले 3507 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर पर आ गई थी।
कृषि विशेषज्ञों द्वारा पंजाब में गेहूं उत्पादन का अनुमान 180 लाख टन से ज्यादा का लगाया जा रहा है। यदि मौसम ठीक रहा और अब खुल गया और मार्च में ठंडा रहा तो सन् 2018-19 में जो 182.62 लाख टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ था, उससे भी उत्पादन बढ़ सकता है। चाहे पंजाब में गेहूं की फसल अधीन क्षेत्र नहीं बढ़ा, जबकि भारत के अन्य प्रदेशों में 15 लाख हैक्टेयर की बढ़ौतरी के साथ भारत का क्षेत्र 31,5 मिलियन हैक्टेयर हो गया। गत वर्ष यह क्षेत्र 30 मिलियन हैक्टेयर था। अब पंजाब में 34.90 लाख हैक्टेयर पर गेहूं की काशत की गई है, जबकि गत वर्ष 35.26 लाख हैक्टेयर क्षेत्र गेहूं की काशत अधीन था। इस प्रकार 36000 हैक्टेयर क्षेत्र गेहूं की काशत के नीचे से निकल कर तेल बीज़ फसलों आदि की काशत के नीचे चला गया है। मामूली सा क्षेत्र जो आलूओं और मटरों आदि की फसल से खाली हो रहा है, उस पर किसान एच.डी.-3298 जैसी किस्में जो 15 जनवरी तक बीजी जा सकती हैं, बीजेंगे। इन किस्मों का उत्पादन भी 18 क्विंटल प्रति एकड़ के करीब तक आ जाने की संभावना है। कृषि और किसान भलाई विभाग के डायरैक्टर डा. गुरविंदर सिंह कहते हैं कि ठंड पड़ने से गेहूं पर अभी तक पीली कुंगी का हमला भी नहीं हुआ। यदि अब बारिश हो जाए तो यह फायदेमंद ठंड के बाद गेहूं की फसल के लिए सोने पर सुहागे का काम करेगी। मौसम निरन्तर बादल बने रहने के कारण गुल्ली डंडा और नदीनों को मारने के लिए किए जाने वाले नदीन नाशकों के छिड़काव भी पिछड़ गये। गत वर्ष मार्च में ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण गेहूं की फसल को भारी नुकसान पहुंचा था और उत्पादकता 50-51 क्विंटल प्रति हैक्टेयर से घट कर 42.16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पर आ गई थी। उत्पादन भी सन् 2020-21 के 172 लाख टन से कम होकर 164 लाख टन के करीब आ गया था। उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत सारे किसान गेहूं की फसल पर प्रति एकड़ 5-5 थैले यूरिया डाल रहे हैं, जबकि आम ज़मीनों के लिए पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी द्वारा ढाई थैले प्रति एकड़ की सिफारिश की गई है।  यूरिया पर क्योंकि भारी सब्सिड़ी दी जा रही है, किसानों को यह सस्ती खाद लगती है। किसान नानो यूरिया भी इस्तेमाल नहीं कर रहे। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार नानो यूरिया ज्यादा लाभदायक है और सारे का सारा फसल को लगता है। गेहूं पैदा करने वाले पंजाब के क्षेत्रों जैसे संगरूर, बठिंड़ा, लुधियाना, पटियाला, फिरोज़पुर, गुरदासपुर और मुक्तसर साहिब आदि ज़िलों में गेहूं की काशत के अधीन क्षेत्र गत वर्ष के मुकाबले तकरीबन न बहुत घटा है और न बढ़ा है। रिकार्ड उत्पादन की संभावना बनने का कारण किसानों द्वारा समय पर की गई बिजाई और ज्यादा झाड़ देने वाले सफल डी.बी.डब्ल्यू.-303, डी.बी.डब्ल्यू.-187, डी.बी.डब्ल्यू.-222, एच.डी.-3086 और डी.बी.डब्ल्यू.-826 आदि किस्मों की ज्यादा काशत किया जाना है। बिजाई सीड कम फर्टीलाईज़र ड्रिल, सुपर सीडर, समार्ट सुपर सीडर और हैप्पी सीडर मशीनों के साथ की गई है, जिसके साथ ज्यादा झाड़ की प्राप्ति यकीनी हो जाती है। फिर 99.9 प्रतिशत क्षेत्र सिंचाई अधीन है। काफी क्षेत्र लेज़र कराहे के साथ जुताई करवाने के बाद बीज़ा गया है, जिसके उपरांत झाड़ बढ़ता है। 
देश को गेहूं की बहुत ज़रूरत है। बफर स्टाक का ज़खीरा बहुत कम हो गया है। रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण दूसरे देशों में भी गेहूं की मांग बढ़ गई है। भारत सरकार ने गेहूं के आयात पर पाबंदी लगा दी है। उपभोक्ताओं को मंड़ी में गेहूं 2900-3000 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही है, जबकि सरकारी खरीद 2015 रुपये प्रति क्विंटल पर की गई थी। उपभोक्ता बहुत परेशान हैं। चाहे एक बड़ी जनसंख्या को अनाज मुफ्त और रियाइतन दिया जा रहा है। आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था के गेहूं के सीनियर ब्रीडर डा. राजबीर यादव कहते हैं कि गेहूं की बिजाई के समय दिसम्बर में मौसम कुछ गर्म रहने के कारण गेहूं के पैदा होने की शक्ति प्रभावित हुई थी। चाहे बाद में जो ठंड पड़ी उसके साथ यह कमी कुछ हद तक पूरी हो गई। गेहूं के उत्पादन का सही अनुमान मार्च में ही लगाया जा सकता है। मार्च का मौसम ही बताएगा कि गेहूं के उत्पादन में किस हद तक बढ़ौतरी होती है।
आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था करनाल के डायरैक्टर डा. ज्ञानइन्द्र सिंह कहते हैं कि संस्था द्वारा हाल ही में विकसित की गई गेहूं की डी.बी.डब्ल्यू.-327 और डी.बी.डब्ल्यू.-332 किस्में जो अगले साल किसानों को काशत के लिए दी जाएंगी और डी.बी.डब्ल्यू.-370, डी.बी.डब्ल्यू.-371 और डी.बी.डब्ल्यू.-372 किस्में जो पाईपलाईन में हैं, जब काशत के लिए अगले वर्ष किसानों को उपलब्ध होंगी, गेहूं उत्पादकों का भविष्य ओर भी बेहतर होगा।