(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें) चोरी
- इसलिए कि चोरी का बदला चोरी नहीं है। सतीश चोरी करे या न करे, आप नहीं कर सकते। मैं भूखे पेट रह लूंगी, पर मेरा पति चोरी करे यह मुझे बर्दाश्त नहीं।
सषुमा की आवाज और भाग-भंगिमा में ऐसा कुछ था, इतना तेज और तीक्ष्णता और गंभीरता थी कि सौरभ सकपका गया। उससे कोई जवाब देते न बना।
अंत में यही तय हुआ कि दोनों सतीश के घर जाएंगे, माफी मांगगे कि गलती से फोन को जांचते-देखते हुए उन्होंने भूलवश रख लिया था और लौटा कर वापस आ जाएंगे।
शीघ्र ही दोनों फिर सतीश के घर पर थे। इस समय सतीश बाहर गया हुआ था और अन्य सदस्य लौट आए थे।
इस स्थिति में उनके लिए बात बनाना आसान हो गया। फोन सतीश के छोटे भाई का था। वह बेचैनी से फोन खोज रहा था। उसने सौरभ और सुषमा को बार-बार धन्यवाद दिया कि वे इतनी शीघ्र लौटाने आ गए।
बाईक पर बैठते समय सुषमा ने कहा - पहले पांच मिनट मेरी एक सहेली के घर रुकेंगे।
सौरभ हैरान हुआ पर उसने सुषमा की बताई दिशा की ओर बाईक बढ़ा दी।
अब तुम बस पांच मिनट इंतजार करो। मैं अभी गई और आई।
सौरभ की हैरानी और बढ़ गई, पर इससे पहले कि वह कुछ और पूछ पाता सुषमा तेजी से एक फ्लैट की ओर बढ़ गई। एक पेड़ के नीचे सौरभ ने बाईक लगाई और इंतजार करने लगा।
सुषमा शीघ्र ही वापस आ गई। अब उसने कहा - प्लीज अभी घर नहीं न्यू मार्किट चलो।
सौरभ की हैरानी बढ़ती जा रही थी पर साथ ही न्यू मार्किट की ओर उसकी बाईक भी बढ़ती जा रही थी।
पार्किंग स्थान पर बाईक रुकवा कर सुषमा ने कहा - प्लीज 10 मिनट यहां रुको मैं अभी आती हूं।
अब सौरभ नाराज होकर कुछ कहने लगा था कि सुषमा ने चुप रहने का इशारा करते हुए कहा - बस थोड़ी देर गुड ब्वाय बन कर यहीं रुके रहना। सवाल-जवाब बाद में।
सुषमा फिर फुर्ती से यूअर ज्यूलर्स की ओर बढ़ी तो सौरभ और हैरान हो गया।
खैर, कुछ ही देर में सुषमा मुस्कराते हुए लौट आई। उसने चहकते हुए कहा - अब मेरे पर्स में नया मोबाईल खरीदने के लिए 7000 रुपए हैं।
अब तो सौरभ के आश्चर्य की सीमा पार हो गई थी। सुषमा ने तसल्ली से बताया - मेरी सहेली के पति इस ज्यूलर्स में काम करते हैं। मैंने उसकी पत्नी से फोन करवाया कि कानों की बाली ठीक से बिकवा दे। पहले से उन्हें पता था अत: पहुंचते ही काम हो गया व 7000 रुपए में बाली बिक गई। अब इसका तुम अच्छा सा फोन खरीद लो।
- तुमने मुझे पहले से क्यों नहीं बताया?
- क्योंकि तुम बाली बेचने से मना करते या अपना दिल खराब करते।
खैर, मार्किट में खड़े-खड़े ज्यादा बात करने की गुंजाईश नहीं थी। फोन खरीद लिया गया, चिंता दूर हो गई।
फिर सुषमा ने कहा -काम खत्म हुआ तो भूख भी लग आई है। चलो घर चलकर फटाफट कुछ बनाती हूं।
- नहीं सुषमा, आज मैं तुम्हें यहीं खाना खिलाऊंगा।
सौरभ ने एक वातानुकूलित दक्षिण भारतीय रेस्त्रां की ओर इशारा किया। सुषमा का सबसे प्रिय व्यंजन था मसाला डोसा।
जब रेस्त्रां के ठंडे माहौल में दोनाें आराम से खाना खा रहे थे तो सुषमा की खुशी देखते ही बनती थी।
पर सौरभ ने आह भरकर कहा - सब ठीक हो गया सुषि पर तुम्हारे बिना बाली के कान मुझे बहुत सूने से लगेंगे।
पर सुषमा चहकती ही रही। उसने आवाज धीमी कर कहा - पर चोरी का दाग दूर करने से जो खुशी मिली है, उसके सामने बालियां खोने का दुख कुछ नहीं है। (समाप्त)
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