मातृ भाषा के लिए चिन्ता


पिछले दिनों विधानसभा के स्पीकर स. कुलतार सिंह संधवां द्वारा अपने कुछ मंत्रियों, विधायकों तथा पंजाबी विद्वानों को बुला कर उनके साथ पंजाब में मातृ भाषा पंजाबी की स्थिति बेहतर बनाने संबंधी जो विचार-विमर्श किया गया, वह बेहद प्रशंसनीय है। इससे पूर्व भी प्रदेश सरकार द्वारा पंजाबी भाषा को प्रत्येक क्षेत्र में उचित स्थान दिलाने तथा जन-साधारण में इसे लोकप्रिय बनाने हेतु कुछ यत्न किए गए हैं, जिन्हें अच्छा कहा जा सकता है। यहां तक कि दुकानों तथा अन्य निजी संस्थानों को भी पंजाबी में बोर्ड लगाने की अपील की गई है। इस संबंध में कानून बनाने के बारे में भी विचार किया जा रहा है। चाहे वर्ष 1966 में नया पंजाबी प्रदेश अस्तित्व में आ गया था। इसकी राज्य भाषा भी पंजाबी घोषित की गई थी। 1967 में पंजाब राज्य भाषा कानून भी बनाया गया था परन्तु इस सबके बावजूद इस क्षेत्र में अभी तक उपलब्धियां आधी-अधूरी ही रही हैं। चाहे अपनी भाषा को प्यार करने वाले हमेशा इसकी उत्तमता स्थापित करने के लिए यत्नशील रहे हैं।
पंजाबी को  प्रदेश में योग्य स्थान न मिलने के लिए सरकारों के साथ-साथ कुछ सीमा तक पंजाबी स्वयं भी ज़िम्मेदार हैं। आज भी बहुत-से शहरों तथा अन्य स्थानों पर पंजाबी अपनी भाषा में बात करने की बजाये हिन्दी को प्राथमिकता देते हैं। ऐसा प्रचलन आम होता जा रहा है यहां तक कि पंजाब की धरती पर आज अनेक स्कूल ऐसे हैं जहां अपनी भाषा को ही पीछे धकेला जा रहा है तथा विद्यार्थियों को अन्य भाषाएं बोलने के लिए कहा जाता है। पिछले कुछ समय से मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों ने पंजाबी को योग्य स्थान दिलाने के लिए सरकारी स्तर पर ऐसे यत्न शुरू किये हैं। यदि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अपने भाषणों में प्रांतीय भाषा को प्राथमिकता  देने की बात करते हैं, लोगों को फैसलों की कापियां उनकी भाषा में देने की व्यवस्था करने की घोषणा करते हैं, तो यह ज़रूरी हो जाता है कि कानूनों का क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद भी हो। निम्न स्तर पर अदालती कामकाज भी क्षेत्रीय भाषाओं में ही सम्भव है। इस बात का प्रचार युद्ध स्तर पर भी होना ज़रूरी है। यदि पंजाबी की बात करें तो चाहे शिक्षा मंत्री ने यह बयान दिया है कि नर्सरी से लेकर अन्य स्तर पर पंजाबी को स्कूलों में अनिवार्य किया जाएगा परन्तु इस संबंध में क्रियात्मक रूप में अधिक यत्न किये जाने की आवश्यकता होगी। पिछली लम्बी अवधि में भी इस बात पर बल दिया जाता है परन्तु अभी तक स्कूलों, खास तौर पर ़गैर-सरकारी स्कूलों में पंजाबी की पढ़ाई की स्थिति पूरी तरह ठीक नहीं हुई। पंजाब में न्यायिक कामकाज भी पंजाबी में करने की बात की जाती रही है, परन्तु इसके लिए कभी भी योग्य प्रबन्ध नहीं किये गये। इसलिए प्रत्येक स्तर के न्यायालयों में पंजाबी में काम करने वाले कर्मचारियों का होना ज़रूरी है। इस संबंध में सरकार द्वारा स्पष्ट रूप में निर्देश दिए जाने चाहिएं। इसके साथ-साथ सरकारी कार्यालयों में भी यह सुनिश्चित बनाया जाये कि प्रदेश से संबंधित प्रत्येक कामकाज पंजाबी में हो। कई प्रदेशों ने अपनी राज्य भाषाओं को हर स्तर पर लागू करने के लिए भाषा आयोग भी बनाये हैं। प्रदेश में भी ऐसा आयोग बनाने की ज़रूरत है। 
इसके साथ-साथ प्रदेश सरकार द्वारा ये यत्न भी किये जाने चाहिएं कि पंजाबी को प्रत्येक पक्ष से रोज़गारोन्मुखी  बनाया जाये। दक्षिण के प्रदेशों सहित कुछ अन्य प्रदेशों ने अपनी भाषाओं के विकास हेतु बड़े यत्न भी किये हैं तथा इसमें बड़ी उपलब्धियां भी प्राप्त की हैं। अब जिस भावना के साथ पंजाब सरकार भाषा के क्षेत्र में सक्रिय हुई है, उससे हम अच्छे परिणाम निकलने की आशा करते हैं  परन्तु इन यत्नों में निरन्तरता बेहद ज़रूरी है ताकि  पंजाबी भाषा को इसका योग्य सम्मान भी दिलाया जाये तथा इस तरह से पंजाबीयत के गौरव में और वृद्धि भी की जाये।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द