गिटार मछली एक जीवित जीवाश्म

गिटार मछली का आकार गिटार जैसा होता है। यह गर्म सागरों के उथले पानी में पायी जाने वाली मछली है। इसे विश्व में प्रायः सभी उष्णकटिबंधीय, उप-उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण सागरों तथा महासागरों में देखा जा सकता है। इसकी करीब ब्भ् जातियां होती हैं, जो मुय रूप से नदियों के मुहानों और खाड़ियों में पायी जाती हैं। मूलतः गिटार मछली बड़ी सुस्त और आलसी होती है। यह अपना अधिकांश समय सागर तल की रेत अथवा मिट्टी में आधी गड़ी रहकर व्यतीत करती हैं। गिटार मछली अपने पीठ के मीनपंखों का उपयोग फावड़े की तरह करती है। यह इनकी सहायता से सागर तल की मिट्टी अथवा रेत खोदती है और अपने शरीर को ढक लेती है। इस समय केवल इसकी आंखे, पूंछ की सहायता से सागर तल से थोड़ा ऊपर उठकर धीरे-धीरे तैरती भी है। गिटार मछली अपनी पीठ के मीनपंखों का उपयोग मुड़ने, तट पर जाने, गोता लगाने अथवा ऊपर उठने के लिए करती है। यह प्रायः तैरती हुई सागर की सतह पर आ जाती है और लंबे समय तक सागर की सतह पर धीरे-धीरे तैरती रहती है। महासागर में पाई जाने वाली गिटार मछली की कुछ जातियां बड़े-बड़े झुंडों में घूमती हैं और मोती उत्पन्न करने वाले आयस्टर को काफी नुकसान पहुंचाती हैं। हालांकि इसके इस स्वभाव यह अनुमान लगाना कि ये मछलियां आक्रामक होतीं हैं, गलत होगा। गिटार मछली हुक से पकड़े जाने पर भी कोई प्रतिरोध नहीं करती। प्रायः गोताखोर तैरते हुए इसके पास पहुंच जाते हैं और इसे पूंछ से पकड़ लेते हैं। ऐसा करने पर भी यह शांत बनी रहती है। गिटार मछली की लंबाई करीब क्.भ् मीटर से लेकर क्.त्त् मीटर तक होती है। प्रशांत क्षेत्र में पाई जाने वाली राइन्कोबेटिश जीडोन्सिस नामक गिटार मछली सबसे लंबी होती है। इसकी लंबाई लगभग फ् मीटर और वजन ख्ख्स्त्र किलोग्राम तक होता है। गिटार मछली के शरीर का रंग पीठ की तरफ ग्रे अथवा कत्थई होता है तथा पेट एवं नीचे का भाग मोती की तरह सफेद होता है। इसकी पीछ के मध्य भाग में काफी बड़े-बड़े कांटेदार शल्क होते हैं। गिटार मछली का सर और शरीर दोनों गिटार की तरह चपटे होते हैं। इसकी पूंछ मोटी और शतिशाली होती है। इसी की सहायता से यह शान से तैरती है। गिटार मछली के दांत बहुत छोटे होते हैं, किंतु बहुत अधिक संया में होते हैं। इसके मुंह में दांतों की म्भ् से लेकर स्त्र तक लाइनें होती हैं। गिटार मछली के दांत मोजाइक के समान चपटे के छाती के मीनपंख काफी बड़े और चौड़े होते हैं, जिनका उपयोग यह सागर तल की रेत अथवा मिट्टी खोदने के लिए करती है। गिटार मछली अंडे न देकर जीवित बच्चों को जन्म देती है। नर गिटार मछली में तथा मादा की शारीरिक संरचना में कोई विशेष अंतर नहीं होता, लेकिन दोनों को समागम काल में सरलता से अलग-अलग पहचाना जा सकता है। समागम काल में मादा गिटार मछली कुछ फूल जाती है एवं अधिक मांसल दिखाई देने लगती है। समागम काल में नर-मादा एक दूसरे से मिलते हैं और विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाएं करते हैं। इसके बाद नर मादा की बगल में आ जाता है। इस समय दोनों के शरीर एक दूसरे से जुड़े हुए से दिखाई देते हैं। समागम के बाद नर और मादा एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। इसके बाद अगले समागम काल में एक दूसरे से मिलते हैं। मादा गिटार मछली के अंडे इसके शरीर के भीतर ही निषेचित होते हैं तथा परिपव होते हैं। गिटार मछली के अंडे बच्चे देने वाली अन्य मछलियों के समान शरीर से बाहर निकलने के कुछ समय पहले ही फूटते हैं। इसके बच्चों का आरभिक विकास मादा के शरीर के भीतर ही होता है। इस प्रकार इसके बच्चे कुछ विकसित हो जाने के बाद मादा के शरीर के बाहर निकलते हैं। गिटार मछली अन्य समुद्री मछलियों के समान अधिक बच्चों को जन्म नहीं देती। यह एक बार में सामान्यतः चार बच्चों को ही जन्म देती है। लेकिन कभी-कभी बच्चों की संया कम अथवा अधिक भी हो सकती है। गिटार मछली आज से लगभग क्भ् करोड़ वर्ष पूर्व जुरासिक काल में पाई जाती थी। इस काल की अनेक चट्टानों में इसके जीवाश्म मिले हैं, जिनसे इसकी प्राचीनता प्रमाणित हो जाती है। जुरासिक काल की गिटार मछली और वर्तमान समय की गिटार मछली की शारीरिक संरचना में बहुत अधिक समानता देखने को मिलती है। अर्थात क्भ् करोड़ वर्ष बीत जाने के बाद भी गिटार मछली के शरीर में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है। इसीलिए जीव वैज्ञानिकों ने गिटार मछली को एक जीवित जीवाश्म माना है। गिटार मछली घर में सजाने लायक कतई नहीं हैं। दरअसल अगर इसे सजाने हेतु एवेरियम में रखा गया तो यह पानी के तल में बैठ जाती है और एवेरियम की दीवारोें पर टकरें मारती हैं। इससे इसका थूथुन और मीनपंख घायल हो जाते हैं। घायल मछलियों को अन्य मछलियां नोचती है और अंततः मार कर खा जाती हैं। इसके साथ ही एवेरियम की काई तथा बैटीरिया से इसे इंफेशन हो जाता है और यह बीमार होकर मर जाती है। सामान्यतः इन मछलियों का सागर में कोई दुश्मन नहीं है। जीव वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सागर तल में इसके शत्रु बहुत कम हैं, इसलिए कोई इनका शिकार नहीं करता। -इमेज रिलेशन सेंटर