जनसंचार का एक सशक्त माध्यम रेडियो

 

विश्व रेडियो दिवस प्रतिवर्ष 13 फरवरी को मनाया जाता है। वर्ष 2023 की थीम रेडियो और शांति रखी गई है। यूनेस्को ने यह दिवस स्वतंत्र रेडियो को युद्ध/संघर्ष की रोकथाम और शांति निर्माण के लिए एक स्तंभ के रूप में उजागर किया है। यह थीम रेडियो के नवाचार का सन्देश देती है। इस दिन को मनाये जाने की शुरुआत वर्ष 2012 में की गई थी। यह हर कोई जानता है कि रेडियो जनसंचार का एक सशक्त माध्यम है, जिसके जरिए गावों में रहते लाखों-करोड़ों लोगों तक जानकारी आसानी से पहुंचाई जा सकती है। भारत में अपनी पहचान खोते जा रहे रेडियो को अपने नवाचार कार्यक्रम के माध्यम से नयी पहचान और जीवनदान देने का श्रेय निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाता है। आठवें दशक तक या यूँ कहें कि दूरदर्शन के आगमन तक रेडियो ही शिक्षा, संचार और मनोरंजन का सशक्त साधन था। उस दौरान घर-घर में ही नहीं अपितु हर हाथ में रेडियो था और लोग इससे चिपके रहते थे। हर प्रकार की सूचना का संवाहक था रेडियो। 
1980 के बाद संचार के आधुनिक साधनों के प्रादुर्भाव के साथ रेडियो का महत्व कम होता गया। लोगों ने रेडियो के स्थान पर टीवी को अपनाना शुरू कर दिया। इसी बीच 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ‘मन की बात’ नामक एक क्रान्तिकारी कार्यक्रम शुरू हुआ। इसी नवाचार के साथ रेडियो का एक तरह से पुनर्जन्म हुआ। 
मोदी के लोकप्रिय शो ‘मन की बात’ ने रेडियो का महत्व बढ़ा दिया है। एक वक्त था जब रेडियो पर ‘यह आकाशवाणी है’ शब्द सुनते ही बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक रेडियो को घेर कर खड़े हो जाते थे। दूरदर्शन के प्रादुर्भाव से पूर्व यानि अस्सी के दशक तक रेडियो पर सुनाई देने वाली यह आवाज़ संचार के आधुनिक साधनों के बीच गायब सी हो गई थी। पहले भारतीय प्रसारण सेवा फिर आल इंडिया रेडियो और इसके बाद आकाशवाणी के रूप में रेडियो अस्तित्व में रहा। दूरदर्शन के बढ़ते प्रभाव ने इसकी उपयोगिता पर बढ़ा संकट खड़ा कर दिया। रही सही कसर निजी चैनलों और मोबाइल ने पूरी कर दी। मगर हाल के वर्षों में जहां लोगों में रेडियो की चाह बढ़ी है, वहीं इसकी बिक्री भी तेज़ हुई है। यह सच है कि रेडियो  की साख कमज़ोर हुई है मगर आज भी यह अब भी देश में सबसे ज्यादा क्षेत्रों को कवर करता है। ऑल इंडिया रेडियो की पहुंच देश की 99.20 प्रतिशत आबादी तक है। 
 ऑल इंडिया रेडियो भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन संचालित सार्वजनिक क्षेत्र की रेडियो प्रसारण सेवा है। इस सेवा का नाम भारतीय प्रसारण सेवा रखा गया था। देश में रेडियो प्रसारण की शुरुआत मुम्बई और कोलकाता में सन् 1927 में दो निजी ट्रांसमीटरों से की गई थी। 1930 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ। 1957 में इसका नाम बदल कर आकाशवाणी रखा गया। सरकारी प्रसारण संस्थाओं को स्वायत्तता देने के इरादे से 23 नवम्बर, 1997 को प्रसार भारती का गठन किया गया, जो देश की एक सार्वजनिक प्रसारण संस्था है और इसमें मुख्य रूप से दूरदर्शन और आकाशवाणी को शामिल किया गया।
आकाशवाणी या रेडियो को हिंदी भाषा को जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय दिया जा सकता है। आज़ादी से पूर्व आकाशवाणी अनेकता में एकता का सशक्त माध्यम था। आम लोगों तक इसी माध्यम से सारी जानकारी पहुंचती थी। आज़ादी के बाद प्रगति और विकास का एक मात्र सजीव माध्यम बना आकाशवाणी। बड़े-बड़े नेता और महत्वपूर्ण व्यक्ति अपनी बात आकाशवाणी के माध्यम से देशवासियों के समक्ष रखते थे। प्रसारण का एक मात्र साधन होने से देश में इसकी महत्ता और स्वीकार्यता थी। मगर धीरे-धीरे निजी क्षेत्र में प्रसारण माध्यम शुरू हुए। निजी चैनलों से चौबीसों घंटे समाचार और मनोरंजन की सामग्री प्रसारित होने लगी। इसके फलस्वरूप लोगों ने आकाशवाणी से मुंह मोड़ लिया। इससे आकाशवाणी बहुत थोड़े क्षेत्रों में सिमट कर रह गई। मगर जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने इसकी सुध ली, तब से इसका महत्व एक बार फिर बढ़ गया है।  
गांवों में तो आज भी रेडियो सूचना और मनोरंजन का माध्यम है। अब रेडियो फिर से आमजन तक पहुंचने लगा है।
    -मो. 89495-19406