कुत्तों के आतंक से बचाने में सरकारें विफल क्यों ?

 

सरकारों की हिम्मत का जितना गुणगान किया जाए कम है। बहुत साहसी और हिम्मती हो गई हैं। अब यह माननीय न्यायालय को भी गलत जानकारी देते हैं। भारत सरकार ने कुत्तों द्वारा काटे गए व्यक्तियों की जो जानकारी हाईकोर्ट पंजाब में दी उसके अनुसार माननीय हाईकोर्ट ने यह कहा कि राज्य में हर माह एक हजार से ज्यादा डाग बाइट केस आते हैं इस पर रोक लगनी चाहिए। वैसे यह जानकारी सौ प्रतिशत गलत है, क्योंकि डाग बाइट के जो केस पिछले वर्षों में सामने आए हैं, उनकी संख्या लाखों में है। सन् 2022 में 1 लाख  65 हजार से ज्यादा केस पंजाब में कुत्तों द्वारा लोगों को काटने के हुए है। उसमें भी चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चे ज्यादा हैं जिन्हें कुत्तों ने काटा। भारत सरकार ने तो यह कह दिया कि प्रतिदिन तीस लोगों को ही कुत्ते काटते हैं, लेकिन अगर मैं आंखों देखी कहूं तो मेरे ही शहर में कभी-कभी तीस से ज्यादा कुत्तों द्वारा काटने की दुर्घटनाएं होती हैं और  सभी सरकारी अस्पतालों में आवश्यक इंजेक्शन भी नहीं मिलते जो उन लोगों के लिए जीवन रक्षक हैं, जो लोग कुत्तों द्वारा काटे जाते हैं। झूठ बोलने वालों की हिम्मत कमाल की हो गई। एक सरकारी अधिकारी ने यह कहा कि पंजाब में सभी सिविल अस्पतालों में एंटी रैबीज इंजेक्शन मुफ्त हैं। डाग काटने पर घबराने की जरूरत नहीं। घटना के तुरंत बाद अस्पताल से एंटी रैबीज इंजेक्शन जरूर लगवाएं। काश इन अधिकारियों ने कभी अपनी आंखों से देखा होता या खुद यह पीड़ा सही होती तो खुद जान पाते कि कुत्ते के काटने से घबराहट क्यों होती है और अस्पतालों में इंजेक्शन कितने मिलते हैं, किसको मिलते हैं? अभी इसी सप्ताह एक आर्थिक दृष्टि से कमजोर और कुत्ते के द्वारा काटी गई महिला आई। उसने दुकानदार से उधार करके 350 रुपये का इंजेक्शन लगवाया और उसके बाद सिफारिश से उसे सरकारी अस्पताल में भी इंजेक्शन मिल गया। 
अब सरकार का कहना यह है कि कुत्तों की नसबंदी की जाएगी। यह भी जानकारी दे दी कि नसबंदी का बजट पांच करोड़ रुपये का है। जनता को यह भी बता दिया कि कुत्तों की संख्या लाखों में है। जनता तो दो पाटन के बीच पिसने वाले चने के समान है। मोहल्ला के कुत्तों का अगर नसबंदीकरण हो भी गया तो कुत्ते वहीं छोड़े जाएंगे जहां से उठाए गए। यह मैं नहीं जानती भारत की संसद का आदेश है या पूर्व मंत्री रही श्रीमती मेनका गांधी से सरकारों पर प्रभाव का परिणाम है कि उनके प्रिय पशु कुत्तों की पूरी देखभाल की जाए। हमने सरकार से यह उत्तर मांगा है कि क्या जिनकी नसबंदी हो जाएगी वे कुत्ते काटेंगे, भौंकेंगे नहीं या गली-बाज़ारों में गंदगी नहीं फैलाएंगे? उनकी गंदगी कौन साफ  करेगा? अगर कुत्तों से कोई खतरा नहीं, कुत्ते सरकारों की दया के प्रेम के पात्र हैं तो फिर जब विदेशी मेहमान या स्वदेशी वीआईपी आते हैं तो इनको क्यों छिपाया जाता है? कौन नहीं जानता कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के अमृतसर आगमन पर तथाकथित विरासती गली से दर्जनों की संख्या में कुत्तों को बेहोशी का इंजेक्शन लगाकर पकड़ा गया था। उन्हें आज़ादी तब मिली जब विदेशी प्रधानमंत्री चले गए। अभी ताजी घटना है। आम आदमी क्लीनिक का उद्घाटन करने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के शुभागमन के समय उस क्षेत्र से सभी कुत्ते हटाए गए। अगर नगरवासियों के लिए, पंजाब और देशवासियों के लिए कुत्तों की चीख पुकार सुखद है, मंगलकारी है तो फिर विशिष्ठ मेहमानों के आने पर उन्हें क्यों छिपाया जाता है। जहां देश में हर रोज़ सूर्य की रोशनी से पहले ही लाखों पशु गायें समेत बूचड़खानों में काट दिए जाते हैं। जहां गली बाज़ारों में कटे फटे जानवरों के लटके हुए शरीर और उनके टुकड़े काटकर बेचते हुए दुकानदार दिखाई देते हैं। जहां शहरों और गांवों के सभी क्लबों, विवाह पार्टियों और अन्य समारोहों में पशु पक्षी मार कर खाए जाते हैं, वहां यह एक पक्षीय प्यार समझ नहीं आता। भारत सरकार उनकी नसबंदी पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं। इनके द्वारा काटे गए लोगों को इलाज देने के लिए इंजेक्शन खरीदे जाते हैं। अस्पतालों में उनके इलाज का प्रबंध हैं। देश भर में रैबीज डायनामिक लैबोरेट्री खोली जा रही है, जहां रैबीज रोग पर अध्ययन किया जा रहा है। क्या यह अच्छा नहीं कि इतना रुपया उपचार पर खर्च करने वाली सरकार रोग और संकट के कारण को ही दूर करे। इन सभी कुत्तों को एक शैल्टर होम में रखे। वहीं नसबंदी करें, वही रोटी पानी, सेहत सुविधाओं का प्रबंध करे। जनता को इनके रहम पर क्यों छोड़ा हुआ है? हमें तो यह उत्तर चाहिए कि कुत्तों के इस आतंक के लिए दोषी कौन? आज से चार वर्ष पूर्व जब केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी अमृतसर से संसद चुनाव के उम्मीदवार बनकर आए, तो उनसे पहली और अंतिम मांग यही की गई कि हमें कुत्तों के कहर से बचाइए। चीख-चीख कर उन्हें बताया गया कि हमारी क्या दुर्गति इन सरकार प्रिय पशुओं के हाथों हो रही है? मैंने यह भी कहा था कि एक रात कुछ घंटे वहां बिताइए, जहां यह पशु पूरी रात भयानक आवाजों में चीखते हैं। आखिर जनता को किस अपराध का यह दंड है, पर न कोई काम हुआ, न जो उनसे मांगा गया वह मिला। 
सच यह भी है कि आज तक भारत सरकार ने यह नहीं बताया कि मेनका गांधी जी द्वारा संसद में ऐसा कौन सा प्रस्ताव पेश करके लागू कर दिया गया जिसके कारण पंजाब जैसे प्रांत में भी हर वर्ष लाखों लोगों को कुत्ता काट दे और सैकड़ों को मौत के मुंह में पहुंचा दे तो भी कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती। सरकारें यह भी बता दें कि क्या हमारे देश की संसद, न्यायालय इस कानून को निरस्त करने में असमर्थ हैं? कहीं किसी व्यक्ति की हत्या हो जाए या दुर्घटना में मौत हो जाए तो बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी वहां पहुंच जाते हैं। भारतीय दंड संहिता की सभी धाराएं जो हत्या के लिए बनाई गई हैं वह एक्शन में आ जाती हैं, पर यह वीआईपी कुत्ते किसी बच्चे को खा लें, राह जाते यात्री को नोंच लें, लाखों लोगों के लिए बीमारी और मुसीबत का कारण बन जाएं तो कोई पूछने वाला नहीं। यह तो भला हो उस जागरूक नागरिक का जो यह पीड़ा पंजाब हाईकोर्ट के समक्ष ले गया और हाईकोर्ट ने गंभीरता से विचार करते हुए यह कहा कि पंजाब में डाग बाइट के केस देश में सबसे ज्यादा है, सरकार ने क्या एक्शन लिया? अभी यह नहीं पूछा कि जो कुत्तों का शिकार हुए उनके परिजनों को कभी कोई मुआवजा भी दिया। होना यह चाहिए कि जिस नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत के क्षेत्र में आवारा कुत्तों के काटने की दुर्घटना हो जाए वहां के प्रशासन पर बड़ा जुर्माना लगाया जाए और पीड़ित के परिवार को बड़ी राशि आर्थिक सहायता के रूप में दी जाए, पर जो काटा गया मारा गया उसकी पीड़ा का मुआवजा क्या होगा? क्या सरकार इस आतंक से कभी बचा पाएगी?