भाजपा को भारी पड़ सकती है महिला नेताओं की नाराज़गी

 

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को अगले लोकसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद का कार्य विस्तार मिल चुका है। अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए नड्डा ने अपने संगठन को पुनर्गठित और चुस्त-दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव से पूर्व जम्मू-कश्मीर सहित दस प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं, जिनके नतीजों से पता चल जाएगा कि अगले लोकसभा चुनाव में कौन-सी पार्टी केंद्र में सरकार बना सकेगी।
चुनावों वाले दस राज्यों से लोकसभा की कुल 121 सीट आती हैं। ऐसे में जिस पार्टी की भी सरकार इन प्रदेशों में बनेगी, स्वाभाविक ही है कि लोकसभा चुनाव में भी उसी पार्टी का अधिक प्रभाव दिखेगा।  भारतीय जनता पार्टी के नेता अभी से अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट चुके हैं। अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भी पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर किसी नए नेता को लाने की बजाय जे.पी. नड्डा को ही रखने का फैसला किया है। भाजपा का मानना है कि नड्डा की पूरी टीम का सेटअप बना हुआ है। ऐसे में नए सिरे से संगठन बनाने में काफी समय निकल जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देशभर में अपने दौरे करने शुरू कर दिए हैं। भाजपा के नेता पूरी तरह चुनावी मूड में नजर आने लगे हैं। पार्टी तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने का सपना देख रही है। ऐसे में भाजपा की ही कुछ बड़ी महिला नेताओं की नाराज़गी आने वाले चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकती है।
राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे सिंधिया पिछले लम्बे समय से राजस्थान में खुद को नेता घोषित करने की मांग करती आ रही हैं। वसुंधरा राजे चाहती हैं कि दिसम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी उन्हें नेता प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़े, मगर भाजपा आलाकमान ऐसा करने के मूड में नहीं लगता है। वर्तमान में वसुंधरा राजे भाजपा की राजनीति में हाशिए पर हैं। कहने को तो उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है मगर सक्रि य राजनीति में उनकी कोई भूमिका नज़र नहीं आ रही है। राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे का कद बहुत बड़ा माना जाता है। विशेषकर भाजपा में तो वसुंधरा राजे के कद का कोई दूसरा नेता नहीं है। वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश में लगातार दूसरी बार कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। राज्य कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना लागू करने के आदेश देकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कर्मचारी वर्ग में खासे लोकप्रिय हो रहे हैं। माना जा रहा है कि गहलोत द्वारा पेश किए जाने वाला राजस्थान का अगला बजट भी काफी लोक लुभावना होगा। ऐसे में गहलोत का मुकाबला करने में वसुंधरा राजे ही सबसे उपयुक्त नेता हैं।
मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शिवराज सिंह चौहान सरकार पर लगातार हमलावर हो रही हैं। शराबबंदी के बहाने उमा भारती लगातार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेर रही हैं। राजनीति में खुद को हाशिए पर डाले जाने से नाराज उमा भारती भाजपा आलाकमान से बहुत नाराज़ हैं। उमा भारती का मानना है कि उन्होंने ही मेहनत कर दस साल से मध्य प्रदेश में शासन कर रही कांग्रेस दिग्विजय सिंह सरकार को उखाड़ फेंका था जिसके बाद उनको मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री तो बनाया गया था मगर एक अदालती फैसले के कारण उनको पद छोड़ना पड़ा था। बाद में उन्हें मुख्यमंत्री बनने का फिर से मौका नहीं दिया गया।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उमा भारती को केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया। उसके बाद से वह लगातार अपने राजनीतिक पुनर्वास का प्रयास कर रही हैं मगर उन्हें राजनीति में कहीं भी एडजस्ट नहीं किया गया। इससे उमा भारती बहुत नाराज नजर आ रही हैं और अपनी नाराज़गी का खुलकर इज़हार भी करती रहती हैं। उमा भारती शराबबंदी के लिए आंदोलन करने का एलान करने के साथ ही शराब दुकान पर पत्थर तक फेंक चुकी हैं। गत दिनों उन्होंने लोधी समाज के कार्यक्र म में कहा था कि वह समाज के लोगों से भाजपा को वोट देने के लिए नहीं कहेंगी। उन्होंने कहा कि समाज वोट देते वक्त अपने हितों का ख्याल ज़रूर रखें।
आठवीं बार की सांसद मेनका गांधी भी भाजपा आलाकमान से बहुत खफा नज़र आ रही हैं। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी व उनके सांसद पुत्र वरूण गांधी में से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया। इतना ही नहीं, उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय परिषद से भी हटा दिया गया। मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी तो लगातार केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ खुलकर बयानबाज़ी कर रहे हैं। 2017 में वरुण गांधी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे मगर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। उसके बाद से ही वरुण गांधी पार्टी लाइन से दूर होते जा रहे हैं। सबसे वरिष्ठ सांसद होने के बाद भी मेनका गांधी को इस बार मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलने से वह खुद को पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रही हैं। भाजपा की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे सिंधिया, उमा भारती, मेनका गांधी की नाराज़गी का असर अगले चुनावों में देखने को मिल सकता है। भाजपा आलाकमान को समय रहते उनके गिले-शिकवे पर चर्चा कर उनका समाधान करना चाहिए। तीनों ही महिला नेता अपने-अपने प्रदेशों की राजनीति में प्रभावशाली तो हैं ही, इनके साथ बड़ा समर्थक वर्ग भी जुड़ा हुआ है।  (अदिति)