तालमेल की कमी से कमज़ोर होता विपक्ष

वर्तमान समय में देश में विपक्षी दलों में आपसी तालमेल नहीं होने के कारण दिन प्रतिदिन विपक्ष कमज़ोर होता जा रहा है, ऐसी स्थिति में साा पक्ष का ज़ोर बढ़ना स्वाभाविक है। एक समय ऐसा था जब मुद्दों को लेकर विपक्ष एकजुट होकर विरोध करता, परन्तु आज मुद्दें तो हैं, परन्तु विपक्ष एकजुट नहीं, जिसकी वजह से दिन प्रतिदिन दिन साा पक्ष विपक्ष पर भारी होता जा रहा है।
साा पक्ष की राजनीतिक चाल में विपक्ष की एकता उलझ गई है। आज कुछ स्थिति बदली-बदली सी नज़र आने लगी है, जहां विपक्ष बिखरा ही नहीं, एक-दूसरे का तमाशा भी देख रहा है। इस स्थिति को ज़रा नज़दीक से देखें जहां भ्रष्टाचार के मामले को लेकर साा पक्ष की अधीनस्थ कार्यरत देश की जांच एजेंसियों का घेरा विपक्ष के किसी एक राजनीतिक दल की ओर बढ़ता है, तो दूसरा राजनीतिक दल जांच एजेंसी के इस कदम का विरोध करने के वजाय उसे सही ठहराते हुये साा पक्ष की ताकत को मज़बूत करता नज़र आता है परन्तु जब वहीं राजनीतिक दल जांच एजेंसियों की चपेट में आता है तो उसे विपक्षी एकता याद आने लगती है। जब विपक्ष एक नहीं हो पाता तो उसका लाभ साा पक्ष के होता है। इस तरह की स्थिति ने आज विपक्ष को इस तरह कमज़ोर बना दिया है कि साा पक्ष से टकर लेना आसान नहीं रह गया। आज के परिवेश में इन्हीं कारणों से देश में ज्वलंत मुद्दे महंगाई एवं बेराज़गारी होने के बावजूद केन्द्र की साा पक्ष का देश में प्रभाव बना हुआ है। एक ओर विपक्ष जांच एजेंसियों के चंगुल में फंसता जा रहा तो दूसरी ओर साा पक्ष अपनी राजनीतिक चाल में सफल होता जा रहा है। इस कारण फिर से साा उसी के पास आती नज़र आ रही है।
जब केन्द्रीय जांच एजेंसियों ने कांग्रेस के पूर्व अघ्यक्ष राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी पर कार्रवाई को तो 'आप' के नेता तमाशबीन बने रहे। आज जब 'आप' के वरिष्ठ नेता दिल्ली के उप-मुयमंत्री मनीष सिसोदिया जांच के घेरे में आये तो कांग्रेस के कुछेक नेताओं के खुश होने की खबर आई। इस तरह के परिवेश का राजनीतिक लाभ साा पक्ष को स्वतः ही मिलता जा रहा है। जांच एजेंसियों की कार्यवाही को विपक्ष साा पक्ष के इशारे पर की जा रही कार्यवाही बता रहा है तो साा पक्ष इसे कानून अनुसार बता कहर रही है।
केन्द्रीय जांच एजेंसियों की जांच प्रक्रिया भले ही अपनी जगह पर सही हो सकती है परन्तु जांच एजेंसियों की कार्यवाही केवल विपक्ष के खिलाफ हो और साा पक्ष इस तरह की कार्यवाही से बचा रहे, से संदेह के दायरा बढ़ना स्वाभाविक है। जब केन्द्रीय जांच एजेंसियों की कार्यवाही चुनाव से पूर्व विपक्ष को घेरे में लेता नज़र आये तो साा पक्ष के इशारे पर की जा रही कार्यवाही को नकारा नहीं जा सकता। ऐसा पहले भी होता रहा है जहां साा पक्ष अपने हित में जनता द्वारा दी गई शति का दुरूपयोग जांच एजेंसियों के माध्यम से करता रहा है और आज भी हो रहा है। इस तरह की प्रक्रिया से लोकतंत्र की नींव कमज़ोर होती है परन्तु लोकतंत्र मज़बूत रहे, इस बारे में कोई नहीं सोचता। जिसके हाथ साा होती है वह इसका दुरुपयोग अपने हित में करता ही है। इस तरह के परिवेश को आज नकारा नहीं जा सकता तभी तो जांच एजेंसियों के घेरे में केवल विपक्ष नज़र आता है जबकि साा पक्ष में भी अनैतिक कार्य करने वाले कुछेक लोग हो सकते हैं। विपक्ष भी आज मुखर होकर साा पक्ष पर आरोप लगा रहा है जांच एजेंसियों के घेरे में आये विपक्ष के नेता अगर साा पक्ष से हाथ मिलाते हैं तो वे आरोपों से बरी हो जाते। इस तरह की गतिविधियों से आज जहां विपक्ष कमज़ोर होरहा है, वहीं पक्ष का जोर बढ़ाता जा रहा है। (एजैंसी)