क्या भारत में फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली लागू हो सकती है?

अभी हाल ही में दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल ने आरोप लगाया था कि उप-राज्यपाल उनके शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड जाने में बाधा डाल रहे हैं। इससे फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था प्रति लोगों में उत्सुकता पैदा हुई है। आखिर फिनलैंड की शिक्षा पद्धति है क्या और वह अन्य देशों की शिक्षा व्यवस्था से भिन्न क्यों है। हम यह भी जनाने का प्रयास करेंगे कि क्या अन्य देशों विशेष रूप से भारत में वहां की शिक्षा व्यवस्था लागू हो सकती है या नहीं? अगर हम दुनिया के बेहतरीन स्कूलों के बारे में गूगल पर सर्च करें तो फिनलैंड सबसे ऊपर मिलता है। यहां की शिक्षा प्रणाली अमरीका, ब्रिटेन या अन्य विकसित देशों की तुलना में बिल्कुल अलग है। फिनलैंड आज से नहीं बल्कि दशकों से इस मामले में बहुत आगे रहा है। वस्तुत: फिनलैंड उत्तरी यूरोप में बसा एक छोटा सा देश है जो क्षेत्रफल में राजस्थान से  छोटा है और इसकी जनसंख्या लगभग 60 लाख है। विश्व की शिक्षा पद्धतियों में सबसे अच्छी शिक्षा पद्धति फिनलैंड की मानी जाने के कारण विश्व भर से शिक्षा विशेषज्ञ, राजनीतिज्ञ और पत्रकार इस देश की शिक्षा व्यवस्था को जानने के लिए वहां जाते रहते हैं। 
विश्व में शत-प्रतिशत साक्षरता वाले देशों में फिनलैंड भी शामिल है। वहां के छात्र दुनिया के सबसे अच्छे पढ़ाकू माने जाते हैं। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर यहां कोई बच्चा फेल नहीं होता। प्रोग्राम फार इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट जो कि 15 साल से कम आयु के बच्चों को अन्तराष्ट्रीय मानक पर गणित, विज्ञान और पढ़ाई में स्तर पर खती है, की सूची में फिनलैंड शीर्ष पर ही रहता है। 
वहां 7 साल की उम्र के बाद ही स्कूल में दाखिला दिया जाता है। तब तक बच्चों को उनका बचपन जीने दिया जाता है। 6 साल के बच्चों के लिए प्री-स्कूल की भी व्यवस्था है लेकिन वहां पढ़ाई नहीं होती बल्कि खेलना-कूदना, नए दोस्त बनाना, दूसरे बच्चों को समझना, उनसे परस्पर सहयोग बनाते हुए रिश्ते बनाना, आदि के साथ बच्चों को स्कूल के एक अलग माहौल के लिए तैयार किया जाता है।  लगभग 20 बच्चों को ही एक कक्षा में रखा जाता है। स्कूल का समय भी बहुत कम होता है। प्रतिदिन लंच ब्रेक के समय के साथ 4 घंटे ही स्कूल चलता है। पढ़ाई में कमज़ोर बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि वे औसत बच्चों के स्तर में आ सकें। अगर ज़रूरत महसूस होती है तो उन्हें विशेष कक्षाओं में भी भेजा जाता है। वहां की शिक्षा व्यवस्था विद्यार्थी को अच्छा शिक्षित व्यक्ति बनाने  के साथ-साथ एक अच्छा इन्सान बनाने पर भी ज़ोर देती है। वहां अधिक नंबरों के लिए दौड़ है ही नहीं। फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था में कोशिश की जाती है कि हर बच्चे की ऊर्जा को पहचाना जाए। वहां के बच्चे कभी घर पर गृह कार्य नहीं करते हैं। शिक्षकों को पूरी छूट होती है कि वे अपने तरीके से बच्चों को इस तरह पढ़ा सकते हैं जिससे उनकी पढ़ाई आसान हो और परीक्षण का भी विकल्प मिलता रहे। यह इस तरह का होता है कि बच्चा खुशी-खुशी पढ़ने में दिलचस्पी लेता रहे।फिनलैंड बुद्धिमत्ता और शिक्षा सुधारों के मामले में दुनिया में भी सबसे आगे माना जाता है। वहां मुकाबले को बहुत अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता। बहुत ही कम लोगों को वहां शिक्षक बनाया जाता है। शिक्षक बनने के लिए मास्टर डिग्री की ज़रूरत होती है। साथ ही अच्छी योग्यता और अच्छी मोटिवेशन क्षमता भी ज़रुरी होती है।
वहां की शिक्षा व्यवस्था में परीक्षा नहीं ली जाती, इसीलिए विद्यार्थी परीक्षा का तनाव झेलने के बजाय सीखने में ध्यान लगा पाते हैं। 9 साल की प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद जब विद्यार्थी 16 साल का हो जाता है, तब ही उसे एक बार राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा देनी पड़ती है। आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए यह परीक्षा पास करना ज़रुरी होता है। उसके बाद मैट्रिक का पाठ्यक्र म तीन साल का है हालांकि कक्षा 9 के बाद बच्चे को विकल्प मिलता है कि वह क्या करना चाहता है, वह कालेज जायेगा या प्रोफेशनल कोर्स में। अगर बच्चा कालेज की उच्च शिक्षा के लिए जाना चाहता है तो फिर उसका दाखिला अपर सैकेंड्री स्कूल में होता है जहां उसे तीन साल तक मैट्रिक की पढ़ाई करनी होती है। फिर वह यूनिवर्सिटी में जाता है। अगर बच्चा वोकेशनल स्कूल में जाना चाहता है तो भी वहां उसे रुचि के करियर के हिसाब से 3 साल का कोर्स करना होता है। हालांकि इसके बाद भी अगर उसका मन हो तो उसे मैट्रिकुलेशन करने के लिए दरवाज़े खुले मिलते हैं। यूनिवर्सिटी में दाखिला मैट्रिक में बालक की विषय प्रवीणता के आधार पर उसी विषय में दिया जाता है। समय-समय पर बच्चों की मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग और व्यक्तिगत मार्गदर्शन भी होता है। कुल मिलाकर प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था ऐसी है जहां अध्यापक बच्चे में यह क्षमता पैदा करता है कि वह अपना मूल्यांकन खुद ब खुद कर सके। फिनलैंड के स्कूलों को मुख्य तौर पर स्थानीय नगरपालिका नियंत्रित करती है लेकिन उसकी कार्य व्यवस्था का प्रारूप केंद्रीय सरकार बनाती है। जहां तक पाठ्यक्र म का प्रश्न है तो स्कूलों को अपने हिसाब से भी इन्हें तय करने की छूट मिलती है।
फिनलैंड में स्कूलों का समय सुबह 9 से लेकर 9.45 बजे तक होता है ताकि बच्चा नींद पूरी करके ही स्कूल आए। स्कूल की छुट्टी दोपहर 2 बजे से 2.45 बजे के बीच होती है। वहां पढ़ाई के घंटे तो लम्बे होते हैं लेकिन उनके बीच के ब्रेक भी लम्बी होती है। आम तौर पर दूसरे देशों में हर साल अगली कक्षा में बच्चों के अध्यापक बदल जाते हैं लेकिन फिनलैंड में ऐसा नहीं होता। वहां अध्यापक 6 साल तक वही रहते हैं। दिल्ली में ऐसी प्रणाली सफल हो पाएगी, यह सम्भव नहीं लगता है। एक विकसित देश की विकसित प्रणाली अगर विकासशील देश में लागू हो जाए तो इससे अच्छा क्या हो सकता है। (अदिति)