कश्मीर में पंडितों व प्रवासी कामगरोंं की सुरक्षा बड़ी चुनौती

कुछ समय की शांति के बाद एक बार फिर कश्मीर में अशांति एवं आतंक के बादल मंडराने लगे हैं। धरती के स्वर्ग की आभा पर लगे ग्रहण के बादल छंटते दिखाई देने लगे थे कि एक बार फिर कश्मीर के पुलवामा के अचन गांव में एक कश्मीरी पंडित की हत्या ने अनेक सवाल खडे़ कर दिये हैं जैसे-या कश्मीरी पंडितों की हत्याओं के सिलसिले का कभी अंत हो पाएगा? या अचन गांव में एक और कश्मीरी पंडित की हत्या भी अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खियां बनकर ही रह जाएगी? या कश्मीर घाटी का अमन-चैन वापस लौटेगा? कश्मीर पहले की तरह धरती का स्वर्ग कब बनेगा? इन सवालों का जवाब सिर्फ  कश्मीर की जनता ही नहीं, बल्कि देश के साथ पूरी दुनिया भी जानने को उत्सुक है। यह सही है कि घाटी में सुरक्षा बलों और सैन्य ठिकानों पर हमले अब काफी कम हो गए हैं, लेकिन आम नागरिकों और खासकर कश्मीरी पंडितों और प्रवासी कामगारों की सुरक्षा से जुड़े सवाल अब भी अहम एवं कायम हैं।
वैसे तो कश्मीर घाटी अनेक बार जंग का मैदान बनी है, लेकिन इस बार चुनाव का मैदान है। बुलेट की जगह है बैलेट। जंग कोई भी हो खतरा तो उठाना ही पड़ता है। जंग कैसी भी हो, लड़ता पूरा राष्ट्र है। भारत की इज्जत और प्रतिष्ठा है कश्मीर। कितनी कीमत चुका दी है और अब भी चुका रहे हैं। वहां राजनीतिज्ञों की मांग है-स्वायाता। जनता ही मांग है-शांति। दोनों चाहते हैं वहां लोकतंत्र लौटे।
तीन दशक से कश्मीर घाटी में अशांति व दहशत का माहौल बना हुआ है। वर्ष ख्क्ब् में भाजपा की सरकार बनने के बाद से वहां शांति एवं विकास का वातावरण बना है। केन्द्र सरकार के सामने अब बड़ी चुनौती है वहां पूर्ण तौर पर शांति बहाल करना है, लेकिन उससे पहले कश्मीरी पंडितों के पलायन को रोकना ज्यादा ज़रूरी है। उनकी जीवन-रक्षा ज्यादा मूल्यवान है। अब ताजा घटना में मारे गए कश्मीरी पंडित का परिवार भी पलायन की सोच रहा है। सरकार पंडितों पर खतरे से अनजान नहीं है। यहां लबे समय से योजनाबद्ध तरीके से कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया जा रहा है। इसे रोक पाने में सरकार को विशेष सफलता मिलती नहीं दिख रही है। लक्षित हमलों में अतूबर ख्ख्क् से अब तक पांच पंडितों की हत्या की जा चुकी है। इनमें से चार ऐसे थे, जिन्होंने क्-- में आतंक के भयावह दौर में भी घाटी से पलायन नहीं किया था। अचन गांव के साठ पंडित परिवारों में से उनसठ तभी पलायन कर गए थे। मारे गए व्यति को पुलिस ने जान के खतरे बारे पहले ही आगाह कर दिया था, जिसके बाद वह पिछले तीन-चार महीने से अपने काम पर नहीं जा रहा था। घर के पास सुरक्षा के लिए पुलिस की भी तैनाती थी। पूरी सावधानी के बावजूद उसकी हत्या हो जाने से लगता है कि आतंकियों के पास स्थानीय समर्थन है, जिससे उन्हे पूरी जानकारी मिल जाती है। इन आतंकी गिरोहों के पास ज्यादा मज़बूत खुफिया तंत्र है। इन हत्याओं से आम पंडितों और प्रवासी कामगारों को यह लगना स्वाभाविक है कि सरकार उनकी सुरक्षा में विफल हो रही है और वे फिर पलायन की सोच सकते हैं। आतंक के पोषक और उनके आका भी यही चाहते हैं कि घाटी में बचे-खुचे पंडित भी डर कर पलायन कर जाएं और दशकों पहले घर-बार छोड़ कर जा चुके पंडित घर वापसी के बारे में कतई न सोचें। सरकार घर-बार छोड़कर जा चुके पंडितों की घाटी में वापसी चाहती है। पर वे लोग, जिन्होंने नबे के दशक में आतंक के दौर में भी घाटी को नहीं छोड़ा, अब चुन-चुन कर मारे जा रहे हैं। ऐसे में जमू या देश के अन्य हिस्सों में रह रहे पंडितों को वापसी के लिए कैसे मनाया जा सकता है। असुरक्षा की भावना अब भी उतनी ही है, जितनी पहले थी।
देश के लिए कश्मीर सिर्फ  ज़मीन का एक टुकड़ा मात्र नहीं है, यह देश की शान है। यह सही है कि आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए चुनौती बना हुआ है, लेकिन या कश्मीर में इसे जड़ से उखाड़ कर नहीं फेंका जा सकता? आतंकी घटनाओं पर देश में होने वाली राजनीति भी इस दिशा में नकारात्मक पहलू माना जा सकता है। सब जानते हैं कि पिछले साढ़े तीन दशक में दिल्ली और कश्मीर की साा पर भाजपा भी काबिज रही है और कांग्रेस भी। नेशनल कॉन्फ्रैंस, पीडीपी, समाजवादी पार्टी और राजद जैसे दल भी सहयोगियों की भूमिका में रह चुके हैं, लेकिन विपक्ष में जो भी दल होता है, सरकार पर निशाना साधने से न चूका है और न चूकेगा।
पाकिस्तान लगातार आतंकवाद को पोषित करता रहा है, अपनी इन कुचेष्ठाओं के चलते वह कंगाल हो चुका है, आर्थिक बदहाली में कटोरा लेकर दुनिया घूम आया, अब कोई मदद को तैयार नहीं, फिर भी उसकी घरेलू व विदेश नीति 'कश्मीर' पर ही आधारित है। कश्मीर सदैव उसकी प्राथमिक में रहा है। कश्मीर को अशांत करने का कोई मौका वह खोना नहीं चाहता। आज के दौर में उठने वाले सवालों में ज्यादातर का जवाब केंद्र सरकार को ही देना है। यह बात भी सही है कि इस मसले को दलगत राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। ऐसे वत में जब कश्मीर में लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बनाने की तैयारियां चल रही हों, वहां शांति स्थापित करना सभी की प्राथमिकता होनी चाहिए। आए दिन की हिंसक घटनाएं आम नागरिकों में भय का माहौल ही बनाती हैं। माना कि रोग पुराना है, लेकिन ठोस प्रयासों के जरिए इसकी जड़ का इलाज होना ही चाहिए। इनमें जनता की सुरक्षा के प्रति भरोसा जगाना सरकार की पहली ज़िमेदारी है। घाटी में सक्रिय आतंकियों के खात्मे में सुरक्षा तंत्र ने काफी सफलता हासिल की है। आतंकी संगठनों में नए भर्ती हुए युवाओं और उनके मददगारों की शिनात ज़रूरी है, ताकि लक्षित हत्याओं के उनके इरादों को नाकाम किया जा सके। घाटी में हालात सुधरने के केंद्र सरकार के दावों की सत्यता इसी से परखी जाएगी कि घाटी में अल्पसंयक पंडित और प्रवासी कामगार खुद को कितना सुरक्षित महसूस करते हैं।
-मो. -98110-51133