ग्रामीण भारत में बदलाव की सूत्रधार हैं अग्रणी महिलाएं

ग्रामीण भारत में अग्रणी महिलाएं लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाकर स्वच्छ भारत निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं और दूसरों को भी अपने जैसा बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं।       
यह नारी सशक्तिकरण का युग है। यह वास्तव में हमारे लिए अपने समाज में महिलाओं की शक्ति को पहचानने और स्वीकार करने का सही समय है। लेकिन यह केवल खेलए राजनीतिए सिनेमा, सशस्त्र बलों, कॉर्पोरेट व्यवसायों या अन्य क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं के बारे में नहीं है, अपितु यह ग्रामीण भारत की आम महिलाओं के बारे में है, जो पुरुषों जैसे समान अवसरों और विशेषाधिकारों के बिना भी स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण या एसबीएम-जी जैसी पहलों के कारण हमारे ग्रामीण समुदायों के लिए अग्रणी व्यक्तियों और बदलाव के माध्यम के रूप में विभिन्न भूमिकाएं निभा रहीं हैं।
वर्तमान में एसबीएम-जी अपने दूसरे चरण में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्तूबर, 2014 को इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जिसके प्रमुख उद्देश्यों में से एक था। भारत को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) करना। एसबीएम-जी चरण-2 का उद्देश्य, ओडीएफ की स्थिति को बनाए रखने के साथ ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन है। इसमें गोबरधन सहित जैविक रूप से अपघटित होने वाला अपशिष्ट प्रबंधन, जैविक रूप से अपघटित नहीं होने वाले अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए उन्नत तरीकों तक पहुंच, घरों से निकलने वाले गंदे पानी का प्रबंधन और मल कीचड़ प्रबंधन शामिल है, ताकि परिदृश्य को स्वच्छ बनाया जा सके।
एसबीएम-जी का मुख्य परिप्रेक्ष्य केवल धन देना और अलग-अलग घरों में शौचालयों का निर्माण करना नहीं था, बल्कि लोगों के सामूहिक व्यवहार में बदलाव सुनिश्चित करना था। इसलिए इस प्रमुख उपलब्धि को हासिल करने की दिशा में हमारा दृष्टिकोण समुदाय आधारित संपूर्ण स्वच्छता (सीएलटीएस) की रूप-रेखा पर आधारित था। यह एक ऐसा दृष्टिकोण था, जिसे पिछले 15-20 वर्षों की अवधि में कई देशों में आज़माया और परखा गया था। सीएलटीएस दृष्टिकोण ने समुदाय की भागीदारी को प्रोत्साहित किया और उनके मूल्यांकन के आधार पर समाधान किए गए। इसने स्थानीय महिलाओं को उदासीनता के खिलाफ  आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित किया। घर में शौचालय का अभाव न केवल उनकी निजता और सुरक्षा को खतरे में डालता है, बल्कि यह उनके मूल अधिकारों पर भी एक हमला है।
महिलाएं ओडीएफ  अभियान की सबसे बड़ी लाभार्थी हैं और इस कारण बड़ी संख्या में महिलाएं इस अभियान का नेतृत्व करने के लिए आगे आईं और कार्यक्रम की सफलता की कुंजी बन गईं। स्वच्छाग्रहियों के रूप में जानी जाने वाली 30 से 40 प्रतिशत महिला स्वयंसेवकों ने अग्रणी भूमिका निभाते हुए सामूहिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया की शुरुआत की। महिला निगरानी समितियों ने खुले में शौच पर पूर्ण प्रतिबंध सुनिश्चित किया। मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा इस अभियान की अगुवाई करने के साथ महिला स्वयं सहायता समूह, महिला समाख्या समूह तथा अन्य संगठन भी इस अभियान के साथ जुड़ गए। पंचायती राज संस्थाओं में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों ने भी कई स्थानों पर सक्रिय भूमिका निभाई। इन स्थितियों में नि:संदेह यह कहा जा सकता है कि पहले के स्वच्छता अभियानों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी ने एसबीएम-जी की सफलता को सुनिश्चित किया। एक समूह द्वारा समर्थित अग्रणी महिलाओं ने पितृसत्तात्मक समाज, जहां महिलाओं को नेतृत्व-भूमिका में स्वीकार नहीं किया जाता, में भी सामुदायिक व्यवहार में बदलाव लाने में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।
यहां एसबीएम-जी के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली कुछ महिलाओं के उदाहरण दिए गए हैं, जिन्होंने समुदायों के व्यवहार और सोच में व्यापक बदलाव लाने में सफलता हासिल की है।
त्रिची जिले के पुल्लमबाड़ी ब्लॉक के कोवंडाकुरिची ग्राम पंचायत की टी.एम. ग्रेसी हेलेन एक विशिष्ट स्वच्छाग्रही या एक अग्रणी महिला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक हैं, जिन्होंने अपने समूह के अंदर और बाहर दोनों ही जगह कई लोगों को प्रेरित किया है। 
श्रीमती एस.ई. पनघाटे इस बात का एक और उदाहरण हैं कि कैसे एक आम महिला अपने दृष्टिकोणए प्रतिबद्धता और दृढ़ता से समुदायों में परिवर्तन ला सकती है। पनघाटे महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के कोरपाना तालुका के पिंपलगांव की हैं और उन्हें 21 आदिवासी गांवों को खुले में शौच मुक्त बनाने का श्रेय दिया जाता है। 
इन अग्रणी महिलाओं ने एसबीएमजी के प्रचार में असाधारण प्रदर्शन किया है और उनके जैसे कई अन्य वर्तमान में स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण को दूसरों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल बनाने की दिशा में अथक प्रयास कर रहे हैं। 
(जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की सचिव हैं।)