अनाथ (क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
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मैं ने फिर प्रश्न किया- ‘तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?’
‘मैं क्या बोलूं? मैं तो आपसे आंखों मिलाने लायक भी नहीं रहा, लेकिन परिस्थितियों ने मुझे ऐसा कुकृत्य करने पर विवश कर दिया। न चाहते हुए भी मुझे ऐसा घिनौना काम करना पड़ा और आपकी प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा दिया। मैं आपसे माफी मांगने लायक भी नहीं हूं।’ वह उदास स्वर में बोला।
‘मैं जानता हूं कि समय और परिस्थिति ने तुम्हें ऐसा करने पर विवश किया होगा। तुम एक अनाथ जरूर हो, पर चोर-उचक्का नहीं। इंसान तो परिस्थितियों का दास है। समय और परिस्थितियां इंसान से क्या कुछ नहीं करवा देती है। तुम्हारी आंखें साफ बयां कर रही है कि ऐसा करने के पीछे जरूर कोई कारण था। आखिर ऐसा क्या हुआ, जो तुम्हें कंपनी के रूपये लेकर भागना पड़ा? मुझे सब बताओ।’ मैं उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला।
‘आज मैं जो भी हूं आपकी बदौलत। आपने ही हम दोनों भाई-बहन का जीवन संवारा। मैं रूपये लेकर भागना नहीं चाहता था, लेकिन मैं अपनी बहन की जिंदगी बर्बाद होते नहीं देख सकता था। मेरे चाचा ने मेरी बहन की शादी एक ऐसे व्यक्ति से करना चाहते थे, जो उसके योग्य नहीं था। वे मेरी बहन की शादी नहीं, अपितु उसका रूपयों की खातिर सौदा कर रहे थे। मैं अपनी आंखों के आगे बहन की जिंदगी बर्बाद होते नहीं देख सकता था। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि मैं अपनी बहन की जिंदगी बर्बाद होने से कैसे बचाऊं? काफी सेच-विचार के बाद मैंने निर्णय कर लिया कि अपनी बहन जिंदगी सुखी बनाने के लिए चाहे चोरी ही क्यों न करनी पड़े, मैं करूंगा? और उस दिन मुझे कंपनी का एक लाख रूपया बैंक में जमा करने के लिए दिया गया। मैं रूपये लेकर सीधा घर आया और अपनी बहन को साथ लेकर इस शहर से दूर चला गया। मेरे इस कृत्य से आपके दिल को ठेस जरूर पहुंची होगी, लेकिन मैं क्या करता? बहन की शादी के लिए पैसे चाहिए थे। कौन मुझे रूपये देता? मेरे चाचा तो मेरी बहन का सौदा ही कर रहे थे। परिस्थितियों के आगे मैं विवश था। मैं जानता था कि मेरे इस कृत्य के कारण लोग मुझे घृणा की दृष्टि से देखेंगे और मुझे न जाने क्या-क्या कहेंगे? इन बातों को दरकिनार कर मेरी आंखों के आगे अपनी बहन का भयावह भविष्य घूम रहा था। इन पैसों से मैंने अपनी बहन की शादी एक सभ्य घराने में कर दी। लड़का भी नौकरी करता है। मेरी बहन को भी सरकारी स्कूल में शिक्षिका के पद पर नौकरी लग गयी है। वो अपना सुखी जीवन बिता रही है। मुझे भी सरकारी नौकरी लग गयी है। मैंने आपके विश्वास को तोड़ा है। मुझे माफ कीजिएगा। मैंने ऐसा जान-बूझकर नहीं किया है। यदि मैं ऐसा नहीं करता तो मेरी बहन का भविष्य अंधकारमय हो जाता। आपके कारण ही हम दोनों का भविष्य संवर पाया है, अन्यथा ...।’ और उसने एक लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया।
‘यह क्या है?’ मैने प्रश्न किया।
‘ये एक लाख रूपये हैं। इसे आप रख लीजिए, क्योंकि कम्पनी ने आपकी तनख्वाह से वह रूपये काटे होंगे। मैं इस पाप से मुक्त होना चाहता हूं।’ वह आंसू बहाते हुए बोला।
मैं उसके आंसू पोंछते हुए बोला- ‘रमेश! तुमने कोई पाप नहीं किया है। अनाथ होते हुए भी तुमने एक भाई का फर्ज निभाया है। कठिन परिस्थितियों से डटकर मुकाबला करते रहे, लेकिन कभी उफ ! तक नहीं किया। तुमने पाप नहीं, एक अतुलनीय कार्य किया है, जो हर कोई नहीं कर सकता। तुम अनाथ जरूर हो, लेकिन ईमानदार और संघर्षशील हो। तुम जीवन में और तरक्की करो यही ईश्वर से कामना करता हूं।’
और वह मेरे गले से लिपट गया। उसकी आंखों में अपनापन और खुशी का भाव साफ झलक रहा था।
(समाप्त)
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