तबाही ला सकता है जैव आतंक

 

दहशत फैलाने और शत्रुओं का सफाया करने के लिए जैव आतंकवाद की अवधारणा कोई नई नहीं है। सन् 1346 में के्रमियन प्रायद्वीप, ब्लैक सी और इटली में, प्लेग संक्र मित शवों को उछाल कर फैंका गया। 1518 में लातिन अमरीका में छोटी चेचक के जीवाणुओं को स्पेन ने फैलाया। 1710 में रशिया-स्वीडन युद्ध के दौरान रशियन सैनिकों ने प्लेग संक्र मित शवों को नगरों की दीवारों पर फेंका था। 1763-67 में पोंटियाक युद्ध में ब्रिटिश सैनिकों ने चेचक के विषाणुओं से संक्र मित कंबलों को विरोधी सैनिकों के विरूद्ध प्रयोग किया था। 1914-18 में जैविक अस्त्रों के विकसित स्वरूप को सबसे पहले जर्मन सैनिकों ने एंथ्रेक्स और ग्लैंडर्स के जीवाणुओं द्वारा तैयार कर, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान प्रयोग किया था। 
1930 और 40 में जापान-चीन युद्ध के दौरान, जापानियों ने सामान्य नागरिकों पर प्लेग संक्र मित खाद्य पदार्थों के प्रयोग किए थे। 1984 में अमरीका के ऑरेगान में रजनीश के अनुयायियों ने सलाद को सैलमोनेला टाइफिमुरियम द्वारा संक्र मित कर जैव आतंक फैलाया था। 1993 में जापान के टोक्यो शहर में धार्मिक समूह ओम शिनरिक्यो ने छतों से एंथ्रेक्स का छिड़काव किया था। 2001 अमरीका के कई स्टेट्स में एंथ्रेक्स आक्र मण की घटनाएं हुई थीं। 2009 में अल्जीरिया में प्लेग से अलकायदा का एक प्रशिक्षण शिविर खत्म हो गया था। विशेषज्ञों के अनुसार शिविर के लगभग 40 आंतकियों की मौत ‘जैविक हथियार’ विकसित करने के दौरान हुई थी। 
जैव आतंक की आशंका को दर्शाती एक रिपोर्ट ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट में लंदन पर होने वाले कल्पित जैव आतंकवाद के आक्र मण से दो हफ्तों के भीतर इसके वैश्विक संक्र मण के संभावित मानचित्र को प्रस्तुत किया गया है। वास्तव में शक्तिशाली देश अमरीका सहित दुनिया के बाकी देश भी इसी तरह जैविक हमले के शिकार हो सकते हैं। दरअसल कुछ वर्ष पहले विकिलीक्स के रहस्योद्घाटन में भी भारत में जैव आतंक फैलाए जाने की आशंका का खुलासा हुआ था। अमरीका ने भी इस पर चिंता जताई थी। दरअसल, दुनिया के देशों से बेहतर कनेक्टिविटी वाले किसी भी हवाई अड्डे पर ऐसा कोई जैव आक्र मण होता भी है तो रोगाणु का सुराग लगने से पहले ही अमरीका जैसे दूसरे कई राष्ट्र भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। 
जुलाई 2013 के ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में बोस्टन स्थित नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के एक शोध में कहा गया है कि जैव आतंक का आक्र मण होते ही संक्र मण पकड़ में आने से पहले ही विभिन्न महाद्वीपों में फैल सकता है। रपट में लंदन को बतौर उदाहरण पेश करते हुए कहा गया है कि यदि आतंकवादियों का एक छोटा-सा समूह खुद को चेचक के विषाणु से संक्र मित कर लंदन में चहलकदमी करे, तो कम से कम चार राष्ट्रों में चिकित्सकों की पकड़ आने से पहले ही चेचक के रोगाणु फैल सकते हैं। रिपोट र्के साथ संक्र मण फैलने संबंधित विश्व का नक्शा भी जारी हुआ है। रपट में इस बात का उल्लेख भी किया गया है कि विकसित राष्ट्राें के पास जैव आक्र मण से लड़ने के लिए आकस्मिक योजनाएं हैं, पर विकासशील राष्ट्रों में ऐसे संसाधन की गैर मौजूदगी में रोगाणु बेहद तेज गति से फैलेंगे। ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स‘ में इस अध्ययन के हिस्सों को अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के सारोकार की वजह से प्रकाशित नहीं किया गया है। 
तीन साल पहले ‘गार्जियन’ में एक रिपोर्ट के प्रकाश में आते ही विश्व के खुफिया दफ्तर सक्रि य हो गए थे। रिपोर्ट में गोपनीय संदेशों में एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक के संवाद थे जो उसने 2006 में अमरीकी राजनयिक से कहे थे कि जैविक हथियारों की चिंताएं ज्यादा दिनों तक सैद्धांतिक नहीं रहने वाली हैं क्योंकि आतंकी संगठन जैविक युद्ध के बारे में गहन चर्चा कर रहे हैं। यह रहस्योद्घाटन विकिलीक्स ने 24 मई 2006 को किया था, जिसमें विदेश मंत्रलय के तत्कालीन अतिरिक्त सचिव के.सी.सिंह ने कहा था कि अलकायदा भारत पर जैविक हमला करने की फिराक में है। उन्हाेंने उस वक्त अलकायदा के दूसरे क्र म के नेता अयमान अल जवाहिरी के एक वीडियो का जिक्र  करते हुए यह आशंका व्यक्त की थी। केबल में ये भी जिक्र  था कि भारत के जिहादी संगठन देश में जैव आतंक फैलाने के लिए जीवविज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में पीएचडी करने वाले युवाओं की तलाश में हैं। इसी तरह अक्तूबर, 2010 में किसी अनाम संगठन ने इंडियन मुजाहिदीन का नाम लेकर असम में जैव आक्र मण करने की धमकी पत्र के माध्यम से दी थी। 
पिछले कई वर्षों से आतंकी गुट नए-नए तरीकों और हथकंडों की खोज करने में लगे हैं। अलकायदा के जैविक हथियार विशेषज्ञ मिधात कुर्सी अलसईद उमर ने केमिकल बायोलॉजिकल वारफेयर पर पांच हजार पेज का मैनुअल तैयार किया था। माना जाता है कि उमर 28 जुलाई 2008 को एक अमरीकी ड्रोन हमले में मारा गया था। दो साल पहले 2007 में यूके स्थित कॉमनवेल्थ एग्रीकल्चर ब्यूरो इंटरनेशनल ने अमरीका में उगाए गए सेबों में संभावित 184 कीटों को सूचीबद्ध करते हुए इनमें से 94 के लिए फाइटोसैनिटरी उपाय जरूरी बताए थे। इसके बाद भारत सरकार ने अमरीका से आयातित सेबों में ‘क्वारंटीन पेस्ट’ की खबरों को निराधार बताया था। बाद में एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डवलपमेंट अथॉरिटी के निदेशक एस.दवे ने इस संबंध में सजग रहने पर बल दिया था।
2010 में नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान जैव आक्र मण से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल ने एंथ्रेक्स रोगाणु रोकथाम और नर्व गैस मारक का इंतजाम कर रखा था। विकसित राष्ट्रों की अपेक्षा हमारे देश में जैव संक्र मण या आक्र मण की स्थिति में सार्वजनिक स्थलों की बजाय सुरक्षा उपाय प्रयोगशाला तक ही सीमित हैं। हालांकि विकिलीक्स के खुलासे और अमरीका सरकार की चिंता के बाद भारत सरकार ने 2007 में जैव आतंकवाद से निबटने की पहल करते हुए ‘स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर्स’ को निरूपित किया। इस माध्यम से जैव आक्र मण की घटना के बाद माहौल पर नियंत्रण किया जा सकता है। नैनो तकनीक पर आधारित बायो राडार बनाने का जिम्मा देश की डिफेंस बायोइंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रोमेडिकल लेबोरेट्री को दिया गया। इन राडार के जरिए देश में किसी भी जैविक या रासायनिक आक्र मण के खतरे को समय रहते पकड़ा जा सकता है। (अदिति)