ऐमीनैंस स्कूलों की खुलती पोल


पंजाब में अच्छी और बेहतर शिक्षा के दावे और शिक्षा के  क्षेत्र में कुछ अलग करने की आम आदमी पार्टी की घोषणाओं की पोल उस समय खुल गई जब भगवंत मान सरकार के गठन के तत्काल बाद ही ऐसी शिक्षा प्रदान करने के लिए खोले जाने वाले ऐमीनैंस स्कूलों में अध्यापकों और ़गैर-शिक्षण धरातल वाले स्टाफ में भारी कमी के समाचार सामने आए हैं। इन समाचारों की सत्यता तब पता चली जब प्रदेश सरकार के एक उच्च स्तर के अधिकारी ने लिखित तौर पर स्वयं स्वीकार किया कि प्रदेश की भगवंत मान के नेतृत्व वाली मौजूदा ‘आप सरकार’ द्वारा स्तरोन्नत किये गये स्कूल्स ऑफ ऐमीनैंस में स्टाफ की कमी है। इस अधिकारी ने यह भी दावा किया कि मौजूदा सत्र की पढ़ाई स्कूलों में अभी शुरू नहीं हुई है किन्तु बहुत शीघ्र जब पढ़ाई का सत्र शुरू होगा, तो स्टाफ की कमी की इस समस्या पर पार पा लिया जाएगा। बेशक उन्होंने इस तथ्य की तो स्वीकारक्ति की, किन्तु इस कमी को पूरा करने की योजना और प्रक्रिया का कोई संकेत नहीं दिया। आम आदमी पार्टी की ओर से विधानसभा चुनावों से पूर्व प्रचार के दौरान और फिर सरकार के गठन के बाद, प्रदेश की शिक्षा नीति में परिवर्तन एवं सुधार हेतु बड़े-बड़े दमगजे हांके गये थे, किन्तु भगवंत मान की सरकार के गठन के एक वर्ष बाद भी, इन स्कूलों में शिक्षण स्टाफ की कमी का होना, ‘घर के भाग ड्योढ़ी से प्रतीत होने’ जैसी कहावत को ही चरितार्थ करते प्रतीत होता है। यहां तो आ़गाज़ ही अच्छा नहीं प्रतीत होता, अंजाम के बारे में तो सचमुच ़खुदा ही जानता होगा। स्थितियों की त्रासदी यह भी है कि ऐसे स्कूलों में केवल शिक्षण स्टाफ की ही कमी नहीं, अपितु ़गैर-शिक्षण धरातल पर भी स्टाफ की भारी कमी का पता चला है। इसके साथ ही शिक्षण धरातल से जुड़े विज्ञान संबंधी उपकरणों, प्रयोगशालाओं आदि की कमी भी इन स्कूलों की सफलता के पथ पर अखरती है। ऐसे कई स्कूलों में विज्ञान विषय की शिक्षा की समुचित व्यवस्था न होने से, दाखिले में भी दिक्कतें आ रही हैं।
पंजाब में मौजूदा ‘आप सरकार’ के गठन के बाद प्रदेश में चयनित लगभग 117 स्कूलों को स्तरोन्नत किए जाने की घोषणा के साथ, स्कूल्स ऑफ ऐमीनैंस की चेपी उनके माथे पर चस्पां कर दी गई थी, किन्तु ऐमीनैंस शब्द की व्याख्या के अनुरूप इन स्कूलों में रत्ती भर भी सुधार और परिवर्तन दृष्टिगोचर नहीं हुआ। एक ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार इन 117 स्कूलों में उच्च-स्तरीय शिक्षण कार्य हेतु कुल 5303 शिक्षकों की आवश्यकता होनी थी किन्तु प्रारम्भ में ही इनमें 987 पद खाली होने की वास्तविकता का वज्रपात हुआ, तो इन स्कूलों के एक भविष्य की एक धुंधली-सी तस्वीर स्वत: सामने आने लगती है। यह स्थिति भी आम आदमी की चिन्ताओं को बढ़ाने के लिए काफी है कि ऐसे अपग्रेड किये गये 117 स्कूलों में ़गैर-शिक्षण धरातल पर 46 प्रतिशत अर्थात 606 पद खाली पड़े हैं। जिस नीति के तहत प्रदेश के विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा देने के बड़े-बड़े दावे किये गये हों, उसे लागू करने हेतु समुचित संख्या में शिक्षक ही नहीं होंगे, तो परिणाम कैसे होंगे, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। भगवंत मान की मौजूदा ‘आप सरकार’ की इस योजना के अन्तर्गत पैसा लुटाये जाने के तथ्य को इस एक अनुमान से भी जाना जा सकता है कि प्रदेश के एक बड़े शहर अमृतसर में ऐसे चार स्कूलों को स्तरोन्नत किये जाने हेतु 11 करोड़ रुपये खर्च किये जाने हैं हालांकि एक ठोस हकीकत यह भी है कि भगवंत मान सरकार के ऐमीनैंस स्कूल, पिछली सरकारों के स्मार्ट स्कूलों एवं मेरिटोरियस स्कूलों की पूर्व-तैयार नींव पर ही खड़े किये जा रहे हैं। यहां यक्ष प्रश्न यह है कि इतना खर्च करके भी, यदि इन स्कूलों में पर्याप्त शिक्षण स्टाफ ही नहीं होगा, तो पढ़ाई का स्तर सुधारे जाने की आम आदमी पार्टी की घोषणाओं का कैसा हश्र होगा।
दूसरी ओर ‘सिर मुंडाते ही ओले पड़ने’ की कहावत भी चरितार्थ होते प्रतीत होती है जब पहले ही सत्र में इस नीति का मुखर विरोध भी होने लगा है। शिक्षा क्षेत्र में गठित एक संगठन डैमोक्रेटिक टीचर फ्रंट ने इस फैसले को भेदभावपूर्ण करार देते हुए कहा है कि इससे प्रदेश के स्कूलों में ऊंच-नीच का भेदभाव उपजेगा। सरकार को कमज़ोर बच्चों की शिनाख्त करके, सभी के साथ एक समान व्यवहार करना चाहिए, न कि लायक बच्चों को और आगे लाने के यत्न होने चाहिएं। इससे विद्यार्थियों के एक वर्ग में हीन भावना भी उपजने का अंदेशा है। हम समझते हैं कि पंजाब की ‘आप सरकार’ को यदि प्रदेश के शिक्षा ढांचे में सुधार करना है, अथवा शिक्षा नीति में कोई परिवर्तन करना है, तो वह सामूहिकता के धरातल पर सर्वाकालिक होना चाहिए, न कि भिन्नता पैदा करने वाला हो। हम समझते हैं कि नि:सन्देह क्रियान्वयन के धरातल पर पंजाब की मौजूदा मान सरकार की ऐमीनैंस स्कूल नीति औंधे मुंह गिरती प्रतीत होती हैं। आशंका यह भी है कि इन स्कूलों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की नियति कहीं ‘न इधर के रहे, न उधर के’ वाली न हो जाए। सरकार को यदि सचमुच प्रदेश के शिक्षा ढांचे में क्रांति कार्य करना है, तो प्रदेश को सामूहिकता के धरातल पर एक इकाई मान कर आगे बढ़ना चाहिए। हम समझते हैं कि ऐसी भेदभावपूर्ण नीति और कार्य-प्रणाली से पंजाब के विद्यार्थी वर्ग के लिए परेशानी अधिक होने की सम्भावना बढ़ती है।