इन्सानों की नहीं, पशुओं की अधिक चिंता

 

देश भर में बेलगाम आवारा पशुओं के कारण रोज़ाना सैकड़ों हादसे हो रहे हैं। कहीं सड़कों पर पशुओं की वाहनों से टक्कर के कारण बड़ी दुर्घटनाएं हो रही हैं। कहीं बिगड़ैल सांड लोगों को अपने कोप का शिकार बना रहे हैं। पूरे देश का किसान कहीं आवारा पशुओं द्वारा उनकी फसल तबाह किये जाने से दु:खी है तो कहीं नील गाय उसकी फसल तबाह कर रही है। हिमाचल व उत्तराखंड जैसे राज्यों में बंदरों के प्रकोप से किसान व फल उत्पादक परेशान हैं। तमाम किसानों ने तो इन जानवरों से दु:खी होकर अपना मुख्य व्यवसाय खेती ही त्याग दिया है। दूसरी ओर आवारा कुत्ते आये दिन अनेक लोगों को अपनी क्रूरता का शिकार बना रहे हैं। झारखण्ड, असम व केरल जैसे कई राज्यों में हाथियों के झुंड कभी किसी की फसल तबाह कर देते हैं, कभी लोगों के मकान गिरा देते हैं कभी फलदार वृक्ष गिरा देते हैं, तो कभी किसी की जान ले लेते हैं। हाथियों की दहशत से तो कई जगह लोग इनके प्रकोप से बचने के लिये इनकी पूजा भी करते हैं। निश्चित रूप से ऐसे बेलगाम जंगली व आवारा पशुओं की क्रूरता से पहुंचने वाली पीड़ा को वही किसान, आम लोग या उनके परिवार समझ सकते हैं जो ऐसे पशुओं के प्रकोप से पीड़ित व प्रभावित हैं। ऐसे प्रभावित लोगों के समर्थन व हमदर्दी में कभी कोई आवाज़ नहीं उठती जबकि आवारा पशुओं व गली के कुत्तों तक के समर्थन में उठने वाले स्वर काफी बुलंद होते हैं। अनेक ़गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) इन्हीं पशुओं से प्रेम करने का पाठ भी पढ़ाते हैं। जबकि सच तो यह है कि जो लोग अपने घरों में पक्षियों द्वारा घोंसले बनाया जाना पसंद नहीं करते, जिन्हें चिड़ियों की चहचहाना नहीं भाता बल्कि उन्हें चिड़ियों की बीट, उनके द्वारा अपने मकान में घोंसले हेतु इकट्ठे किये जाने वाली सामग्री खर-पतवार से ऩफरत है वह लोग गलियों के आवारा कुत्तों से प्यार करने का पाठ पढ़ाते हैं। और स्वयं को ‘संभ्रांत’ एवं पशु प्रेमी के रूप में पेश करते हैं। इन्हीं कुत्ता व आवारा पशु प्रेमियों ने यदि पक्षियों से प्रेम किया होता तो आज गोरैया जैसा हर परिवार का प्रिय पक्षी विलुप्त होने की कगार पर न पहुंचता। प्राय: देखा जाता है कि कुछ लोग बिस्कुट या रोटी आदि लेकर गली के कुत्तों को खिलाने निकल पड़ते हैं।        
पशुओं से प्रेम करना नि:संदेह बहुत अच्छी बात है। कोई भी व्यक्ति पशु पक्षियों व पेड़ पौधों यानी कि प्रकृति से प्रेम भाव अवश्य रखेगा। गत दिनों हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने भी चरड़ी दादरी में आयोजित राज्य स्तरीय पशुधन प्रदर्शनी मेले में अपने सम्बोधन में कहा है कि ‘पशुओं के साथ कदापि हिंसात्मक व्यवहार न करने, पशुओं के साथ प्रेमवत रवैया अपनाने पर ज़ोर दिया और कहा कि पशुओं में भी संवेदनाएं होती हैं।’ परन्तु  इंसान तो पशुओं से भी संवेदनशील होता है? अत: प्रत्येक प्रकृति व पशु पक्षी प्रेमी का सर्वप्रथम मानव प्रेमी होना भी तो ज़रूरी है? इंसानों से भेद-बैर या ऩफरत अथवा उपेक्षा की शर्त पर बेलगाम आवारा पशुओं की हिमायत करना यह आखिर मानवता की कौन सी श्रेणी है? राह चलते किसी व्यक्ति को पीछे से सांड आकर सींग मारकर घायल कर दे या जान ले ले या किसी बड़ी दुर्घटना का कारक बन जाये, इसमें इंसान का आखिर क्या दोष है? रास्ता चलते लोगों को यहां तक कि छोटे-छोटे बच्चों को कुत्ते काट लेते हैं, प्राय: स्कूटर, बाइक या साइकिल सवार के पीछे कुत्ते भोंकते हुये दौड़ने लगते हैं। लोग अपनी जान बचाने के लिये अपने वाहन की गति अचानक तेज़ कर देते हैं, जिससे कई बार दुर्घटना भी हो जाती है। परन्तु समाज का कोई भी वर्ग या संगठन इन बेलगाम आवारा पशुओं के प्रकोप के शिकार लोगों के पक्ष में खड़ा होता नज़र नहीं आता।
पशु प्रेम के मामले में प्राय: हम पश्चिमी देशों के लोगों की नकल भी करने लगते हैं। बेशक वे पशुओं से बेहद प्रेम करते हैं। परन्तु इसी के साथ वे पहले इंसानों से भी प्रेम करते हैं। मिलावटखोरी, कम तौलना इंसानों को इंसानों द्वारा ही ठगना पश्चिमी देशों की संस्कृति का हिस्सा नहीं। वहां उपभोक्ता हो या बाज़ार, अस्पताल से लेकर स्कूल सड़क हो या यातायात, न्याय हो या प्रशासनिक निर्णय हर जगह मानव व मानवीय मूल्यों की कद्र होते देखी जा सकती है।  ऐसे सैकड़ों सच्चे व कड़वे उदाहरण हैं जो इस नतीजे पर पहुंचने  के लिये काफी हैं कि हमारे दिखावा करने, दोहरा मापदंड अपनाने व सस्ते में पुण्य कमाने की चाहत रखने वाले समाज में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जिसे इंसानों से ज्यादा पशुओं की कथित चिंता सताये रहती है। यह बात कितनी उचित व प्रासंगिक है यह तय करना भी समग्र भारतीय समाज की ही ज़िम्मेदारी है।