भारतीय उद्योग में बढ़ रहा चीनी निवेश चिन्ता का विषय

तथाकथित सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद भारत में चीनी औद्योगिक निवेशकों की बढ़ती संख्या भारतीय आकाश पर चीनी जासूसी गुब्बारों (जिसका अमरीका द्वारा पता लगाया गया) और इसके क्षेत्रीय जल के करीब जासूसी जहाज़ों की तुलना में अधिक खतरनाक है। यह चीनी औद्योगिक निवेशक देश की वित्तीय और सामरिक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा हैं।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है और अब ऐसा लगता है कि चीन भारत में अपनी उपस्थिति मज़बूत करने के लिए बेताब है, जो इसके निर्यात और वित्तीय प्रत्यावर्तन का बढ़ता स्रोत है। भारत से लाभ और अन्य आय का वार्षिक प्रत्यावर्तन तेजी से बढ़ रहा है। भारत में कई चीनी कम्पनियां कथित रूप से स्थानीय नियमों और विनियमों को तोड़ रही हैं, जबकि भारतीय निवेशकों को चीन में पैर जमाने में बेहद मुश्किल हो रही है।
अब समय आ गया हो सकता है कि भारत सरकार चीन में स्वतंत्र रूप से संचालित पंजीकृत भारतीय कम्पनियों की संख्या, चीन में कम्पनियों के बोर्ड में भारतीय निदेशकों और चीन से भारतीय फर्मों द्वारा लाभ और अन्य आय के प्रत्यावर्तन के संबंध में एक तथ्य पत्रक सार्वजनिक करे। भारत में सभी विदेशी कम्पनियां कानूनी रूप से लाभ और अन्य आय को लाभांश, शेयर बायबैक, शेयर पूंजी में कमी, तकनीकी सेवाओं की फीस, परामर्श सेवाओं या व्यापार सहायता सेवाओं की फीस और रॉयल्टी के माध्यम से प्रत्यावर्तित कर सकती हैं। चीनी निवेशक ऐसे प्रावधानों का पूरा फायदा उठा रहे हैं।
इस साल की शुरुआत में सरकार ने एक बयान में कहा था कि भारत में ऐसी कई कम्पनियां हैं जिनमें चीनी निदेशक हैं। लोकसभा में एक लिखित जवाब में, कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि 174 चीनी कम्पनियां हैं जो देश में विदेशी कम्पनियों के रूप में पंजीकृत हैं, जिनका भारत में कारोबार है। एक आधिकारिक डेटाबेस के अनुसार भारत में 3,560 कम्पनियां हैं जिनमें चीनी निदेशक हैं। चीनी निवेशकों/शेयरधारकों वाली कम्पनियों की संख्या देना संभव नहीं है क्योंकि डेटा को कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की प्रणाली में अलग से नहीं रखा जाता है। कॉरपोरेट डेटा मैनेजमेंट (सीडीएम) पोर्टल को मंत्रालय द्वारा इन-हाउस डेटा एनालिटिक्स और बिजनेस इंटेलिजेंस यूनिट के रूप में विकसित किया गया है।
सरकार ने कंपनी अधिनियम 2013 के तहत निर्धारित कुछ नियमों और रूपों में संशोधन किया था ताकि कम्पनियों के निगमन, निदेशकों की नियुक्ति, प्रतिभूतियों के जारी करने और हस्तांतरण को विनियमित करने और उन मामलों में समझौता, व्यवस्था और समामेलन किया जा सके जहां संस्थाएं भूमि सीमा वाले देशों से हैं, जैसे कि चीन। इस तरह के संशोधनों के माध्यम से ऐसे मामलों में विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गैर-ऋण साधन) नियम 2019 के तहत प्राप्त सरकारी अनुमोदन के बारे में या गृह मंत्रालय, भारत सरकार से सुरक्षा मंजूरी प्राप्त करने के लिए प्रकटीकरण हेतु नयी आवश्यकताएं प्रदान की गयी हैं। जो भी हो, कंपनी अधिनियम का संशोधन वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने में स्पष्ट रूप से विफल रहा है, विशेष रूप से चीन से संबंधित। भारत के सीमावर्ती देश के व्यवसायी ऐसे नियमों से निपटने के लिए बहुत चतुर हैं। वे अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली और कथित बेईमान मध्यस्थों का इस्तेमाल करते हैं। अधिनियम में संशोधन के बाद सरकार को नये एफडीआई नियमों को दरकिनार करने वाली चीनी कंपनियों, कॉर्पोरेट व्यक्तियों और सेवा पेशेवरों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए।
सरकार ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों और नियामकों को सुरक्षा कारणों और कर एवं सीमा शुल्क चोरी के लिए भारत में कारोबार करने वाली चीनी कंपनियों की जांच करते समय एक-दूसरे के साथ अपनी जानकारी साझा करने का निर्देश दिया है। भारत के औद्योगिक क्षेत्र में चीनी निवेश बढ़ रहा है। भारत ने 29 जून, 2022 तक चीनी संस्थाओं से जुड़े 80 से अधिक एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी दी थी। भारत द्वारा चीन से एफडीआई पर प्रतिबंध लगाये जाने के बाद से सरकार को चीनी संबद्ध संस्थाओं से 380 से अधिक प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं।
चीनी कम्पनियां कथित तौर पर अपनी सरकार और व्यापार के लाभ के लिए बड़ी संख्या में भारतीयों का व्यक्तिगत डेटा एकत्र कर रही थीं। कई चीनी कम्पनियां हाल ही में कर चोरी और वित्तीय गैर-अनुपालन के लिए सरकारी जांच के दायरे में आयीं। अप्रैल 2022 में सरकार ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंट्स और कंपनी सेक्रेटरीज़ (संशोधन) विधेयक पारित किया, जिसे भारत में प्रतिबंधित चीनी निवेश पर कार्रवाई करने के प्रयास के रूप में देखा गया। इसका उद्देश्य चार्टर्ड एकाउंटेंट और कम्पनी सचिवों की जवाबदेही बढ़ाना  है। (संवाद)