जारी है अवैध खनन का सिलसिला

पंजाब में रेत और बजरी के अवैध खनन को लेकर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय की ताज़ा टिप्पणी जहां जन-साधारण की पूर्व-व्याप्त चिन्ताओं को और घनीभूत करती है, वहीं इससे प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर सरकार द्वारा किये जाते दावों की पोल खुलते भी प्रतीत होती है। उच्च न्यायालय ने दो-टूक शब्दों में कहा है कि इस अदालत की कठोर टिप्पणियों एवं प्रशासनिक सख्ती के आदेशों के बावजूद पंजाब और हरियाणा में अवैध खनन की प्रक्रिया पर रोक नहीं लग रही है। यह स्थिति देश और समाज दोनों के लिए गम्भीर चिंता की बात है। अदालत ने अवैध खनन को देश की सुरक्षा एवं प्रदेश की कानून-व्यवस्था हेतु ़खतरा करार देते हुए किसी भी प्रकार से इस क्रिया पर रोक लगाये जाने का आह्वान किया है। अदालत की नज़रों में यह स्थिति कितनी खराब है, इसका अनुमान इस एक तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि माननीय न्यायाधीश ने अवैध खनन को सम्पूर्ण मानवता के लिए ही ़खतरा करार दे दिया है। अदालत ने घग्गर नदी पर अवैध खनन के विरुद्ध कार्रवाई करने हेतु गए एक सरकारी अधिकारी पर खनन माफिया द्वारा किये गये हमले पर भी चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि अवैध खनन पर आधारित माफिया के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई करके इसे नेस्त-ओ-नाबूद किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने अवैध खनन संबंधी एक मामले में आरोपी द्वारा ज़मानत हेतु थोड़ी रियायत दिये जाने संबंधी याचिका को भी रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसे आरोपी किसी प्रकार की दया के पात्र नहीं हैं।
हम समझते हैं कि अवैध खनन को लेकर पानी नि:सन्देह अब किनारों को तोड़ कर बहने लगा है। यह भी कि अवैध  खनन वाली नदियों में भी काफी पानी बह गया है, और कि अदालत ने इसी निष्कर्ष के दृष्टिगत अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाये जाने और रेत की खुदाई को सीमित एवं प्राकृतिक नियमानुसार किये जाने की महती आवश्यकता पर बल दिया। अदालत के अनुसार पर्यावरण के संरक्षण और देश एवं समाज की सुरक्षा व्यवस्था को सुनिश्चित बनाये रखने के लिए भी यह अत्यावश्यक हो गया है। सीमावर्ती क्षेत्रों और खास तौर पर सैनिक महत्ता वाले क्षेत्रों में से होकर बहते नदी-नालों से असीमित हद तक खुदाई किये जाने से इस पर बने पुलों के स्तम्भों को भी ़खतरा पैदा हो गया है। इससे सैनिक वाहनों के आवागमन में बाधाएं उत्पन्न होने की सम्भावना बन जाती है। इस कारण सैनिक बंकरों का अस्तित्व भी ़खतरे में पड़ता है और कि इससे सीमाओं की सुरक्षा का म़कसद ही प्रभावित होने लगता है। इस मुद्दे को लेकर यह अदालत पहले भी सार्वजनिक रूप से चिन्ता व्यक्त कर चुकी है। नि:सन्देह अनियोजित और अनियंत्रित तरीके से नदियों से रेत का खनन किये जाने से नदियों की धारा का रुख मुड़ने का खतरा भी बनता है। इस कारण किनारों की मिट्टी का क्षरण होने से कृषि भूमि से उत्पादन और सीमा-रेखा, दोनों प्रभावित होते हैं। अदालत की यह चिन्ता भी बड़े सार्थक मायने रखती है कि इन हालात के दौरान यदि कभी युद्ध जैसी स्थिति बनती है तो भारतीय सेना के लिए यह एक नाज़ुक अवसर बन सकता है।
अवैध खनन से निश्चित रूप से सरकार का राजस्व भी प्रभावित होता है, किन्तु करोड़ों रुपये की इस क्षति के बावजूद सरकारों और उनके प्रशासनिक तंत्र का सक्रिय न होना, और कि इसके विरुद्ध कोई प्रभावशाली कार्रवाई न किया जाना भी संदेह के घेरों को बढ़ाता है। नि:सन्देह इतने बड़े और व्यापक स्तर पर होने वाली कर-चोरी और अवैध खनन को राजनीति और प्रशासनिक तंत्र की ओर से संरक्षण प्राप्त होने के आरोप को पूर्णतया निराधार करार नहीं दिया जा सकता। स्थिति की गम्भीरता को इस एक तथ्य से भी आंका जा सकता है कि आम आदमी पार्टी के एक बड़े नेता ने अवैध खनन को लेकर अपनी ही सरकार पर बड़ी उंगली उठाई है। अवैध खनन की समस्या नई भी कदापि नहीं है। पूर्व सरकारों के शासन में भी अवैध रेत-खुदाई की समस्या विकराल होती रही है, और अक्सर सत्तारूढ़ दल के नेताओं और यहां तक कि मंत्रियों की ओर भी अवैध रेत-खुदाई हेतु उंगलियां उठती रही हैं। प्रदेश की मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार तो इसी एक मामले को राजनीतिक धरातल पर उछाल कर ही सत्तारूढ़ हुई थी, किन्तु यह सरकार भी इस मुद्दे पर नितांत असफल सिद्ध हुई है। इसके विपरीत स्थिति आज यहां तक पहुंच गई है कि उच्च अदालत को भी कड़ी टिप्पणी करनी पड़ी है।
नि:सन्देह देश और समाज-हित के पक्ष को लेकर प्रदेश के नदी-नालों में से रेत के अवैध खनन को रोकने के लिए प्रत्येक धरातल पर कठोर राजनीतिक और प्रशासनिक फैसले लिये जाने की महती आवश्यकता है। पंजाब की मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिए भारी-भरकम कज़र्े लेने की नीति पर ही चल रही है।  इससे प्रदेश के सिर पर कज़र् की गठरी का बोझ 3.27 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। सरकार यदि अवैध खनन माफिया पर अंकुश लगाने में सफल होती है, तो राजस्व में सैकड़ों करोड़ रुपये की वृद्धि हो सकती है, किन्तु पूर्व सरकारों की भांति मौजूदा सरकार के कुछ मंत्रियों एवं राजनीतिज्ञों के हाथ भी इस काली कमाई से रंगे हुए हैं। बेशक सरकार यदि इस महारोग पर नियंत्रण करना चाहे तो उसे सर्वप्रथम अपने ही लोगों पर शिकंजा कस कर उनके विरुद्ध कानूनी प्रक्रिया के अन्तर्गत कठोर कार्रवाई करनी होगी। हम समझते हैं कि मुख्यमंत्री भगवंत मान की सरकार यदि ऐसा नहीं कर पाती, तो वह भी उन्हीं आरोपों के कटघरे में घिरेगी जिनकी आड़ लेकर उसने विधानसभा में 92 सीटों का बहुमत हासिल किया था।