फसली विभिन्नता के लिए नरमे की काश्त

 

नरमा पंजाब में खरीफ की अहम फसल है। फसली विभिन्नता लाने के लिए पंजाब सरकार द्वारा बासमती के साथ इसे अहम स्थान दिया गया है। कपास पट्टी में यह सफेद सोने के नाम से जानी जाती व्यापारिक फसल है। इसकी औद्योगिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में भी अहम भूमिका है। किसानों के अतिरिक्त खेत मज़दूरों तथा उनके परिवारों के लिए भी यह रोज़गार का साधन है। किसी समय यह फसल राज्य की कृषि आधारित आर्थिकता की सीढ़ी मानी जाती थी। इसका उत्पादन कम होने के कारण इसकी काश्त के अधीन रकबा लगातार कम होता गया और वर्ष 2016-17 में 2.78 लाख हैक्टेयर रह गया। 
पंजाब सरकार ने इस वर्ष नरमे की काश्त के अधीन रकबा गत वर्ष के 2.5 लाख हैक्टेयर से बढ़ा कर 3 लाख हैक्टेयर करने का फैसला किया है। इसलिए कपास पट्टी के ज़िलों के प्रत्येक गांव में एक किसान मित्र नियुक्त कर दिया गया है, जो उत्पादकों को आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराएगा और नरमे की काश्त बढ़ाने संबंधी पूर्ण प्रयास करेगा। ये किसान मित्र गांवों के किसानों में से ही चुने गए हैं और इन्हें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में योग्य प्रशिक्षण दिया गया है। किसान मित्रों के कार्य को देखने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने सुपरवाइज़र भी नियुक्त किए हैं। 
पंजाब सरकार द्वारा उन किसान ंिमत्रों को, जिनका कार्य बहुत अच्छा होगा, एक महीने का अतिरिक्त भत्ता दिया जाएगा। प्रत्येक किसान मित्र को प्रति माह 5000 रुपये मान-भत्ता (आनरेरियम) देने का फैसला किया गया है। कृषि व किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर गुरविन्दर सिंह के अनुसार नरमे का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रत्येक यत्न किया जा रहा है ताकि इसकी काश्त के अधीन रकबा बढ़ा कर नरमे को फसली विभिन्नता के लिए बासमती के साथ एक अहम फसल बनाया जाए। उत्पादन बढ़ाने के लिए सबसे अहम है समय पर बिजाई करना। इसलिए उत्पादकों को नहरी पानी 15 अप्रैल से भी पहले से उपलब्ध कर दिया गया है। 
मुक्तसर, फाज़िल्का, मानसा, बठिंडा आदि ज़िलों में समय पर बिजाई शुरू हो गई है। किसानों को बिजाई का कार्य हर हालत में 15 मई तक समाप्त करने के लिए कहा गया है। बरनाला, मोगा, फरीदकोट तथा संगरूर ज़िलों में भी नरमे की काश्त को उत्साहित किया जाएगा। 
अधिकतर किसान गत कुछ वर्षों से कपास-नरमे से अधिक धान की फसल को प्राथमिकता देने लग पड़े थे, क्योंकि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता था। परन्तु इस वर्ष नरमे की कीमत अच्छी रहने के कारण किसानों की कपास पट्टी में धान की ओर रूझान कम होगा। विशेषज्ञ कहते हैं कि किसानों को नरमे की बिजाई बागों में या इनके निकट नहीं करनी चाहिए और न ही इस फसल को मूंग, बैंगन, टमाटर, कद्दू जाति आदि की फसलों के निकट बीजना चाहिए क्योंकि ये फसलें सफेद मक्खी के प्रति आकर्षण रखती हैं। देसी कपास की फसलें अवश्य सफेद मक्खी के हमले को सहन करने की समर्था रखती हैं।
 बीमारियों से मुक्त रखने के लिए तथा अधिक उत्पादन की प्राप्ति के लिए नरमे की बिजाई समय पर करनी चाहिए, जिसके लिए अब अप्रैल माह उचित समय है। देरी से बोई गई फसल जिसकी विशेषकर 15 मई के बाद बिजाई की जाएगी, पर सफेद मक्खी का हमला अधिक होने की सम्भावना है। नरमे की फसल को सूखा भी नहीं लगने देना चाहिए। फसल को आवश्यक पौष्टिक तत्व सही मात्रा में तथा सही समय पर डाल देने चाहिएं ताकि फसल किसी कमी के कारण कमज़ोर न रहे तथा बीमारियों का शिकार न हो। प्राकृतिक तौर पर मित्र कीड़ों को दृष्टिविगत नहीं करना चाहिए। 
दवाइयों का सिफारिश से कम या अधिक मात्रा में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। गेहूं की कटाई के बाद खेत को दो-तीन बार डिस्कों के साथ जोत कर भारी रौणी कर देनी चाहिए क्योंकि नरमे की बिजाई के लिए ज़मीन नरम तथा भुरभुरी होना चाहिए। बीज का संशोधन भी बीमारियों को रोकने के लिए बहुत ज़रूरी है। इसलिए लुंई वाले सूखे बीज को 8 घंटे दवाइयों वाले घोल में भिगो कर रखना चाहिए। बिजाई से पहले लूंई वाले भीगे बीज को बारीक मिट्टी, गोबर या राख के साथ रगड़ कर अलग-अलग लेना चाहिए ताकि एकसार बिजाई की जा सके। मिट्टी, पानी की परख के आधार पर ही रासायनिक खादों की सही मात्रा डालनी चाहिए। 
पानी बचाने के लिए नरमे की बिजाई करने वाली मशीन से बट्टों पर भी इसकी बिजाई की जा सकती है। नाइट्रोजन खाद सिफारिश  की गई मात्रा से अधिक नहीं डालनी चाहिए और यदि गेहूं को पूरा फास्फोरस डाला हो तो नरमे की फसल को फास्फोरस डालने की ज़रूरत नहीं। स्वयं तैयार किये कीटनाशकों के मिश्रण नहीं इस्तेमाल करने चाहिएं। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए पी.ए.यू. की सिफारिश के अनुसार मैग्नीशियम सल्फेट का इस्तेमाल कर लेना चाहिए।