एकजुट होने की कवायद


भाजपा विरोधी पक्षों ने एक बार पुन: एकजुट होने की कवायद शुरू कर दी है। ऐसा यत्न उन्होंने वर्ष 2014 तथा उसके बाद 2019 के चुनावों के दौरान भी किया था परन्तु उस समय ये यत्न आधे-अधूरे ही रह गये थे। उस समय इन राजनीतिक पार्टियों को इस बात का भी एहसास नहीं था कि आगामी समय में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा इस सीमा तक मज़बूत हो जायेगी तथा वह अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में लगातार स़फल भी होती जाएगी। विगत 9 वर्ष की अवधि में देश तथा विश्व ने ऐसा घटित होते देखा है। बहुत-से मामलों पर बड़े विवाद भी पैदा हुए हैं। देश के समक्ष बड़ी चुनौतियां उभर कर सामने आती रही हैं परन्तु इस पूरे काल में भारतीय जनता पार्टी की पकड़ मज़बूत होती गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कद-बुत्त भी बढ़ता गया है।
आगामी वर्ष देश में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसे देख कर ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां सहमी हुई प्रतीत हो रही हैं। ऐसे सहम से ही वे एक बार पुन: भाजपा तथा नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध एकजुट होने के लिए यत्नशील हुई हैं। उन्हें इस बात का भी एहसास होता जा रहा है कि अब एकजुट होकर ही भाजपा जैसी मज़बूत शक्ति का मुकाबला किया जा सकता है। श्रीमती इन्दिरा गांधी के प्रधानमंत्री होते हुये भी देश भर में ऐसी गतिविधियां शुरू हुई थीं। उस समय प्रबुद्ध नेता जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार से आन्दोलन शुरू हुआ था। अब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उसी बात को दोहराया है कि इस बार भी यह संघर्ष बिहार से ही शुरू किया जाना चाहिए। विगत काफी अवधि से इस बात के लिए बिहार  के मुख्यमंत्री नितीश कुमार सक्रिय भी दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने इस संबंध में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ भी मुलाकात की थी तथा उन्हें एक महा-गठबंधन बनाने के लिए प्रेरित किया था। इसी तरह ही ममता बनर्जी भी विगत दिवस समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव तथा ओडीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मिली थीं। उसके बाद वह कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री तथा जनता दल (सैक्युलर) के नेता एच.डी. कुमारस्वामी को भी मिल चुकी हैं। अब नितीश कुमार जो  जनता दल (युनाइटिड) के प्रमुख हैं, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव जो बिहार के उप-मुख्यमंत्री हैं, को साथ लेकर ममता बनर्जी को मिलने कोलकाता गये थे। उन्होंने ममता को यह अपील की कि सभी पार्टियों को एकजुट होकर भाजपा के मुकाबले में उतरना चाहिए। इन सभी नेताओं को इस बात का एहसास ज़रूर है कि आज के हालात में नरेन्द्र मोदी को राजनीतिक चुनौती दे पाना आसान नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि आज देश में बेरोज़गारी बढ़ रही है तथा महंगाई ने लोगों के नाक में दम कर दिया है तथा यह भी कि केन्द्र सरकार इन्हें हल करने में असमर्थ साबित हुई है।
चाहे ऐसी गतिविधियों की ज्यादातर विपक्षी दलों तथा नेताओं ने सराहना की है परन्तु क्रियात्मक रूप में किसी गठबंधन को तैयार कर पाना बेहद जटिल होगा। बड़ा सवाल नेतृत्व का होगा तथा इसके साथ-साथ सैद्धांतिक तौर पर भी समरसता बनाई जानी ज़रूरी होगी। नि:सन्देह आज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन जिसका नेतृत्व भाजपा कर रही है, में उसके बहुत कम सहयोगी रह गये हैं तथा वे भी ऐसे जिनका कुछ प्रदेशों में ही बड़ा आधार है परन्तु इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी का लोकसभा में भारी बहुमत है, जिसे आगामी चुनावों में कम किया बहुत मुश्किल होगा। फिर भी विपक्षी दलों की एकजुटता के यत्नों को लोकतंत्र की मज़बूती के पक्ष से अच्छा ही माना जाएगा। अब समय ही बतायेगा कि विपक्षी दल इसमें किस सीमा तक सफल होते हैं। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द